आतंकियों ने कश्मीर में तीन पुलिस कर्मियों को फिर उतारा मौत के घाट। पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ सुषमा स्वराज क्यों कर रही हैं मुलाकात।
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पाकिस्तान की सेना ने 19 सितम्बर को ही बीएसएफ के जवान नरेन्द्र सिंह की बर्बर हत्या की तो 21 सितम्बर को कश्मीर पुलिस के तीन जवान कुलदीप सिंह, फिरदौस तथा निसार अहमद के शव बरामद हुए। आतंकियों ने 20 सितम्बर को ही तीनों पुलिस कर्मियों को अगवा किया था। असल में पाकिस्तान समर्थित आतंकी नहीं चाहते हैं कि कश्मीर का कोई नागरिक पुलिस में काम करें। इसलिए चुन चुन कर पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। एक तरफ हमारे कश्मीर में पाकिस्तान ने आग लगा रखी है तो दूसरी और भारत की विदेशी मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि न्यूयार्क में 21 सितम्बर को होने वाले यूएनओ के अधिवेशन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पाकिस्तान के विदेशी मंत्री शाह महमूद कुरैशी से मुलाकात करेंगी। इस मुलाकात की घोषणा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा हमारे पीएम नरेन्द्र मोदी को लिखी चिट्ठी के बाद की गई है। इमरान ने दोनों देशों के बीच वार्ता की पेशकश की थी। सब जानते है कि इमान खान तो पीएम का मोहरा है, लेकिन पाकिस्तान में असली शासन सेना का है। सेना दिखाने के लिए प्रधानमंत्री को आगे कर देती है तथा कश्मीर में आतंक को जारी रखती है। अब जब कश्मीर में रोजाना हमारे जवान मर रहे हैं तब पाकिस्तान से मुलाकात का क्या तुक है? क्या विदेश मंत्रियों की मुलाकात से कश्मीर में आतंक रुक जाएगा? पाकिस्तान जब तक आतंक को नहीं रोकता, तब तक किसी भी स्तर पर मुलाकात वार्ता नहीं होनी चाहिए। भाजपा और नरेन्द्र मोदाी जब विपक्ष में थे, तब स्वयं इसी नीति के पक्ष धर थे। तब भाजपा की ओर से कहा जाता था कि आतंक और वार्ता एक साथ नहीं हो सकती। सवाल उठता है कि अब भारत मुलाकात करने के लिए इतना उतावला क्यों हो रहा है? पाकिस्तान यदि कश्मीर में आतंक को नहीं रोकता है तो हमें पहले कश्मीर में आतंकियों का सफाया करना चाहिए। हमारे जवानों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकियों के खात्मे पर पूरा देश सरकार के साथ खड़ा है। देश का कोई भी नागरिक आतंकियों के साथ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान भरोसे के काबिल नहीं है। जब जब भरोा किया, तब तब पाकिस्तान ने धोखा दिया। इमरान खान तो वो ही करेंगे तो सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा कहेंगे।