अजमेर जिले में अपने दम पर राजनीति करते हैं भंवर सिंह पलाड़ा और रामचन्द्र च ौधरी।

अजमेर जिले में अपने दम पर राजनीति करते हैं भंवर सिंह पलाड़ा और रामचन्द्र च ौधरी। चुनाव के दौर में सबसे ज्यादा चर्चा।
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7 दिसम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अजमेर जिले में एक बार फिर भंवर सिंह पलाड़ा और रामचन्द्र च ौधरी की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। च ौधरी गत 25 वर्षों से अजमेर डेयरी के अध्यक्ष हैं तो पलाड़ा भी अपनी पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाडा के माध्यम से अजमेर और राजस्थान की राजनीति में दखल बनाए हुए हैं। श्रीमती पलाड़ा पहले जिला प्रमुख और इस समय मसूदा से विधायक हैं।
पहले बात पलाड़ा कीः
पलाड़ा के समर्थक अजमेर जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में मिल जाएंगे, गत बार भी पलाड़ा को ऐन मौके पर मसूदा से उम्मीदवार बनाया गया। पलाड़ा को कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के साथ-साथ भाजपा के बागी और कांग्रेस के बागी वाजिद चीता से भी मुकाबला करना पड़ा। चुनाव में भाजपा की स्थिति कमजोर होने के बाद भी पलाड़ा को जीत मिली, पिछले पांच वर्षों में पलाड़ा दम्पत्ति ने मसूदा विधानसभा क्षेत्र के लोगों से निरंतर सम्पर्क बनाए रखा। यही वजह है कि इस बार भी पलाड़ा मसूदा से ही दावेदारी जता रहे हैं, लेकिन उनके समर्थकों का दावा है कि पलाड़ा केकड़ी, पुष्कर और अजमेर उत्तर से भी भाजपा को जीत दिलवा सकते हैं। पलाड़ा का प्रभाव सिर्फ राजपूत और रावणा राजपूत समाज पर ही नहीं है बल्कि धर्म प्रेमी होने की वजह से सभी वर्गों में पलाड़ा की पहचान हैं। माना जाता है कि पलाड़ा किसी की एप्रोच केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से हैं। हालांकि प्रदेश की सीएम वसुंधरा राजे से पलाड़ा की पटरी नहीं बैठी, लेकिन सीएम भी मानती है कि श्रीमती पलाड़ा की मसूदा में अच्छी पकड़ है। कथित सरकार विरोधी माहौल में पलाड़ा जैसे दबंग राजनेता ही मुकाबला कर सकते हैं। इसे पलाड़ा की राजनीतिक दबंगता ही कहा जाएगा कि मुख्यमंत्री के आगमन पर पलाड़ा हवाई पट्टी पर हाथ में गुलदस्ता लेकर खड़े नहीं होते। पलाड़ा अपने दम पर राजनीति करते हैं और भाजपा के सम्मान को बढ़ाते हैं। पलाड़ा ने पिछले पांच वर्ष में मसूदा में जो कार्यशैली दिखाई उससे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी खुश है। संघ की ओर से पलाड़ा को जो लक्ष्य दिया गया उसे सौ प्रतिशत हासिल किया। यदि किन्हीं कारणों से पलाड़ा को मसूदा से उम्मीदवार नहीं बनाया जाता है तो तीन या चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का गणित गड़बड़ा सकता है। यह बात भाजपा के प्रदेश के नेताओं को भी पता है।
रामचन्द्र च ौधरीः
गत 25 वर्षों से डेयरी के अध्यक्ष पद पर काबिज होने की वजह से रामचन्द्र च ौधरी की जिले भर में अच्छी पहचान है। कोई 600 दुग्ध उत्पादक सरकारी समितियों के माध्यम से गांव-गांव में च ौधरी की मजबूत स्थिति है। भले ही वे तीन बार विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाए, लेकिन उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। डेयरी के अध्यक्ष का चुनाव भी पांच वर्ष में होता है। हार बर च ौधरी ही चुने जाते हैं। चूंकि डेयरी का नेटवर्क जिले भर में हैं, इसलिए च ौधरी के समर्थक सब जगह हैं। च ौधरी अजमेर के एक मात्र ऐसे राजनेता है जो अपने दम पर पचास हजार ग्रामीणों को एकत्रित कर सकते हैं। उनकी दबंगता किसी से भी नहीं छीपी है। कांग्रेस में होते हुए भी गत विधानसभा के चुनाव में उन्होंने भाजपा की जनसभा में उपस्थिति दर्ज करवाई और वसुंधरा राजे के सामने कहा कि अजमेर जिले की आठों सीटे भाजपा को दिलवाउंगा। च ौधरी अपने वायदे पर खरे उतरे भी। लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद भी उन्हें अपेक्षित सम्मान नहीं दिया। पांच वर्ष तक च ौधरी भाजपा के मंत्रियों और विधायकों को माला पहनाते रहे। यहां तक कि सीएम के आने पर हैलीपेड पर भाजपा नेताओं के साथ गुलदस्तां लेकर खड़े भी रहे, लेकिन भाजपा की सरकार ने च ौधरी का राजनीतिक कद बढ़ाने का कोई कदम नहीं उठाया गया। भाजपा के नेताओं ने भी च ौधरी का सहयोग नहीं किया। यही वजह है कि अब च ौधरी का भाजपा से मोह भंग हो गया है। च ौधरी घर वापसी पर विचार कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो चुनाव में जिले भर में भाजपा को झटका लगेगा। वहीं कांग्रेस की स्थिति भी मजबूत होगी। चूंकि कांग्रेस के नेताओं को प्रदेश में सरकार बनने की उम्मीद है इसलिए च ौधरी जैसे नेताओं को वापस लाने के प्रयास हो रहे हैं। च ौधरी गत पांच वर्षों तक भले ही भाजपा में चिपके रहे हो, लेकिन उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण नहीं की। कभी कांग्रेस और कभी भाजपा के साथ रहने पर च ौधरी का कहना है कि उन्होंने हमेशा अजमेर के दुग्ध उत्पादकों का हित देखा है। यही वजह है कि आज अजमेर के दुग्ध उत्पादकों को सबसे ज्यादा खरीद मूल्य मिल रहा है। दुग्ध उत्पादक सरकारी समितियों के कार्यालयों में कम्प्यूटराइज्ड मशीने लगाई गई है। जहां दूध की गुणवत्ता की जांच भी कम्प्यूटर पर होती है। दूध लेने पर समितियों को कम्प्यूटराइज्ड पर्ची ही दी जाती है। इस पर्ची में दूध का फैट और प्रति फैट कीमत भी लिखी होती है। च ौधरी का कहना है कि वह किसानों के लिए और किसानों के हित में राजनीति करते हैं।
एस.पी.मित्तल) (09-10-18)
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