हमारे सुरक्षा बलों के हत्यारों की पैरवी कितनी उचित?
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रकरण में टीवी चैनलों पर खुलेआम देशद्रोह।
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सोशल मीडिया पर यदि कोई व्यक्ति किसी नेता या अधिकारी के खिलाफ टिप्पणी कर देता है तो पुलिस उसे आईटी एक्ट में गिरफ्तार कर लेती है, लेकिन इन दिनों टीवी न्यूज चैनलों पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रकरण में खुलेआम देशद्रोह वाली टिप्पणियां की जा रही है, लेकिन ऐसे देशद्रोह के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो रही। ऐसी बहसों को देखकर तो देश की भयावह तस्वीर नजर आती है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती से लेकर अनेक मुस्लिम स्काॅलर, मौलवी आदि खुलेआम आतंकी मन्नान वानी की पैरवी कर रहे हैं तथा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मं उन कश्मीरी छात्रों के साथ खड़े हैं जिन्होंने मन्नान वानी के लिए शोक सभा की। यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने कुछ छात्रों को नोटिस भी जारी किया है। लेकिन अब यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले सभी 1500 कश्मीरी छात्र एक जुट हो गए हैं और अपने साथियों के विरुद्ध जारी नोटिस को वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे हैं। इस दबाव में यूनिवर्सिटी के गैर कश्मीरी छात्र भी शामिल हैं। महबूबा मुफ्ती से लेकर मुस्लिम स्काॅलर तक टीवी चैनलों की डिबेट में कश्मीरी छात्रों के पक्ष में बयान दे रहे हैं। सब जानते है। कि इस यूनिवर्सिटी में मामूली फीस पर पढ़ाई होती है। कश्मीर में मारा गया आतंकी मन्नान वानी भी इसी यूनिवर्सिटी का छात्र था। आतंकी बनने क बाद वानी हिजबुल मुजाहिद्दीन के लिए हमारे सुरक्षा बलों से मुठभेड़ कर रहा था। यदि कोई व्यक्ति थाने के सिपाही से भी झगड़ता है तो उसे राजकाज में बाधा का आरोपी मानकर जेल भिजवा दिया जाता है। किसी की भी हिम्मत ऐसे आरोपी का बचाव करने की नहीं होती, क्योंकि उसने थाने के एक सिपाही पर हमला किया। लेकिन कश्मीर में तो आतंकी खुले आम सुरक्षा बलों की हत्याएं कर रहे हैं। जब ऐसे आतंकियों और उनके लिए शोक सभा करने वाले छात्रों का समर्थन किया जाता है। तो क्या यह देशद्रोह नहीं है? मन्नान वानी के लिए जिस तरह यूनिवर्सिटी के छात्र लामबंद हो रहे हैं यह अपने आप में देश की भयावह तस्वीर है। महबूबा मुफ्ती जैसे नेता चाहते हैं कि कश्मीर घाटी में आतंकियों के हाथों सुरक्षा बल मरते रहे और यही सुरक्षा बल जवाब देंगे तो फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शोक सभा की जाएगी। ऐसे नेता शोक सभा करने वाले छात्रों पर कार्यवाही भी नहीं होने देंगे। माना कि देश में लोकतंत्र है और सभी को बोलने की आजादी है, लेकिन यदि आजादी के नाम पर देश को तोड़ने वाली ताकतों का समर्थन किया जाता है तो फिर देश के हालात बेहद ही खराब माने जाएंगे।