राहुल गांधी ने राजस्थान में कांग्रेस का सब कुछ दांव पर लगाया।
बड़े नेता अब विधायक बन कर दिखाएं। सांसद की उम्मीदवारी का विरोध भी।
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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान के उम्मीदवारों की सूची में भले ही विलम्ब करवाया, लेकिन 15 नवम्बर की आधी रात को जब 152 उम्मीदवारों की सूची जारी की तो पता चला कि राजस्थान में कांग्रेस का सब कुछ दांव पर लगा दिया है। जो बडे़ बडे़ नेता अपने आप को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर का समझते थे। उनके सामने 2 लाख मतदाताओं वाले विधानसभा चुनाव को जीतने की चुनौती खड़ी कर दी है। मुख्यमंत्री का ख्वाब देखने वाले अशोक गहलोत और सचिन पायलट से भी कहा गया है कि वे पहले कम से कम विधायक तो बने। जनवरी में हुए लोकसभा के उपचुनाव में विजयी रहे अलवर के सांसद डाॅ. करण सिंह को मंडावर तथा अजमेर के सांसद रघु शर्मा को केकडी से मैदान में उतार दिया है। दो दिन पहले ही भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में गए दौसा के सांसद और राज्य के पूर्व डीजीपी हरीश मीणा को देवली से विधायक बनने के लिए कहा गया है। कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बन कर स्वयं को राष्ट्रीय नेता समझने वाले सीपी जोशी के सामने नाथद्वारा से विधायक बनने की चुनौती खड़ी कर दी है। कई बार केन्द्र में मंत्री रहीं और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष गिरिजा व्यास को उदयपुर से मैदान में उतार दिया है। अशोक गहलोत के समर्थन में बयानबाजी करने वाले पूर्व केन्द्रीय मेंत्री लालचंद कटारिया को भी जयपुर से मैदान में उतारा गया है। पैराशूट उम्मीदवारों को लेकर भले ही राहुल गांधी अपनी जुबान पर खरे नहीं उतरे हो, लेकिन हबीबुर्ररहमान को नागौर से ही उम्मीदवार बनाकर भाजपा के सामने संकट खड़ा कर दिया है। राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि जिन नेताओं ने पूर्व में सत्ता की मलाई खाई है वे मुसीबत के दिनों में पार्टी के लिए त्याग की भावना रखे। यदि सीपी जोशी गिरिजा व्यास, लालचंद कटारिया जैसे नेता चुनाव हार गए तो दिल्ली में अपने आप भीड़ कम हो जाएगी और जीतते हैं तो विधायक बन कर संतुष्ट रहना पड़ेगा। बड़े नेताओं को उम्मीदवार बनाने का मतलब यह नहीं है कि बहुमत मिलने पर सीएम पद के लिए होड़ मच जाएगी। सीएम तो वो ही बनेगा, जिसे राहुल चाहेंगे। वैसे उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को अपनी बिसात का अंदाजा हो गया है। कांग्रेस में अब अपने वजूद का बनाए रखना आसान नहीं होगा। पहले जहां नारों से चुनाव जीत लिया जाता था, वहां अब जमीन पर अपना दमखंभ दिखाना होगा। निःसंदेह कई स्थानों पर कांग्रेस ने भाजपा के लिए चुनौती खड़ी की है। बड़े नेताओं से साफ कहा गया है कि वे प्रदेशभर का दौरा करने के बजाए अपने निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादा ध्यान लगाए,ं ताकि कांग्रेस को जीत मिल सके। जीत के लिए कई पूर्व सांसदों को भी उम्मीदवार बनाया गया है। भंवर जीतेन्द्र सिंह जैसे दो चार नेताओं को छोड़ कर शेष नामी गिरामी सभी नेताओं को राहुल गांधी ने विधायक के चुनाव उतार दिया है। साफ संकेत है कि अब नाम से नहीं काम से ही नेतागिरी चलेगी। जानकारों की माने तो कई पूर्व केन्द्रीय मंत्री विधायक का चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन राहुल गांधी ने चुन चुन कर मैदान में उतार दिया। ऐसे नेताओं को भी अब पता चलेगा कि वे अपने क्षेत्र में कितने लोकप्रिय हैं।
अब सीट बदलना चाहते हैं सांसद यादवः
डाॅ. करण सिंह यादव ने भले ही लोकसभा का उपचुनाव जीत लिया हो,लेकिन अब उन्हें अलवर जिले के मंडावर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने में डर लग रहा है। यही वजह है कि किशनगढ़बांस से उम्मीदवारी चाहते हैं। इसके लिए भंवर जीतेन्द्र सिंह के माध्यम से सीधा पायलट और राहुल गांधी से एप्रोच लगवाई जा रही है। यादव बहुल्य मंडावर में डाॅ. करण सिंह की उम्मीदवारी को लेकर विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं।