अजमेर में छठे दिन भी रेजीडेंट डाॅक्टरों की हड़ताल, मरीज परेशान। चुनावी मौसम में कोई सुनने वाला नहीं है। आखिर कहां चली गई सरकार?
========
20 नवम्बर को अजमेर के सरकारी जेएलएन अस्पताल में छठे दिन भी रेजीडेंट डाॅक्टर हड़ताल पर रहे। इससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अजमेर का सरकारी अस्पताल संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है। पिछले दिनों रेजीडेंट डाॅक्टरों और मरीज के परिजन के बीच जो विवाद हुआ था, उसी को लेकर रेजीडेंट डाॅक्टर हड़ताल पर हैं। अब कहा जा रहा है कि अजमेर के मुद्दे को लेकर जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर आदि में भी रेजीडेंट डाॅक्टर हड़ताल पर चले जाएंगे। पिछले दिनों ही जनाना अस्पताल में भर्ती एक महिला ने डाॅक्टरों पर छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया था। अब इन दोनों ही मामलों को लेकर रेजीडंेट डाॅक्टर गुस्से में हैं। डाॅक्टरों को भी पता है कि मरीजों को कितनी परेशानी हो रही है। दिखाने के लिए अस्पताल के बाहर ओपीडी लगाई गई है, लेकिन अस्पताल के अंदर हड़ताल होने की वजह से मरीज भर्ती नहीं किए जा रहे हैं। सरकारी अस्पताल में हड़ताल होने से निजी अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। गंभीर बात तो यह है कि छह दिनों से चल रही डाॅक्टरों की हड़ताल पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। यह माना कि इन दिनों अजमेर और प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के पद पर अभी भी वसुंधरा राजे विराजमान हैं और वैधानिक दृष्टि से राजस्थान में भाजपा की सरकार कायम है। लेकिन हड़ताल को खत्म करवाने के लिए सरकार की ओर से कोई प्रयास शुरू नहीं किए गए हैं। अजमेर शहर के दोनों भाजपा उम्मीदवार वासुदेव देवनानी और अनिता भदेल अभी भी मंत्री हैं। लेकिन इन दोनों मंत्रियों ने भी हड़ताल को तुड़वाने की कोई पहल नहीं की है। चुनाव आचार संहिता में राजनेता कोई राजनीतिक लाभ नहीं ले सकते, लेकिन जनता की समस्याओं के समाधान के लिए आचार संहिता ने किसी को भी नहीं रोका है। जहा ंतक अजमेर के प्रशासन का सवाल है तो उसने रेजीडेंट डाॅक्टरों की हड़ताल को भगवान भरोसे छोड़ दिया है।
रेजीडेंट डाॅक्टरों की एकता की वजह से प्रशासन कोई जोखिम भरा निर्णय नहीं ले रहा है। जिला कलेक्टर आरती डोगरा रोजाना अस्पताल के प्रिंसिपल अनिल जैन से रिपोर्ट तो लेती हैं, लेकिन हड़ताल को तुड़वाने की कोई का र्यवाही नहीं की जाती। जहां तक अस्पताल प्रबंधन का सवाल है तो वह रेजीडेंट डाॅक्टरों के मामले में कोई कार्यवाही नहीं कर पा रहा है। जिस तरह से प्रशासन और सरकार पंगु बने हुए हैं उससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालत इतने खराब है कि बीमार मरीज अस्पताल के बाहर तड़पता रहता है, लेकिन उसका समुचित इलाज नहीं हो पाता है।