अजमेर में टाटा पावर की वजह से विद्युत निगम को 150 करोड रुपए का फायदा।

अजमेर में टाटा पावर की वजह से विद्युत निगम को 150 करोड रुपए का फायदा। इसलिए सरकारें देती हैं निजी क्षेत्र को काम। चुनाव में सरकार ले रही है शाबाशी।
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आमतौर पर यह सवाल उठता है कि जानता के वोट से चुनी सरकारें निजी क्षेत्र को काम क्यों देती है? निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए श्रमिक संगठन भी सरकार की आलोचना करते हैं, लेकिन इन सवालों का जवाब अजमेर में टाटा पावर कंपनी ने दे दिया है। कंपनी के कारपोरेट हैड आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि अजमेर में बिजली वितरण का कार्य कंपनी ने एक जुलाई 2017 को संभाला था। कंपनी के एक वर्ष के कामकाज का अनुमान लगाया जाए तो विद्युत निगम को करीब 150 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। इसमें से 90 करोड रुपए तो बिजली की खरीद और बिक्री की राशि का अंतर ही है। स्टाफ और अन्य खर्चों की वजह से निगम को कोई 60 करोड रुपए खर्च नहीं करने पड़े। इस 150 करोड़ के फायदे में कंपनी का लाभ शामिल नहीं है क्योंकि अभी तो कंपनी अपने संसाधन बढ़ाने में लगी हुई है। तीन वर्ष बाद कंपनी का लाभ सामने आएगा। श्रीवास्तव ने कहा कि हमने खर्चों में कटौती तथा बिजली चोरी को रोकने के उपाय किए साथ ही वितरण व्यवस्था को भी ठीक किया। अब बिजली बंद होने की शिकायतें बहुमत कम आती है तथा रख रखाव के लिए जब बिजली बंद की जाती है तो पहले उपभोक्ता को सूचना दी जाती है। बिजली का बिल आॅन लाइन जमा करवाने पर ईनाम भी दिए जा रहे हैं। आने वाले समय में कंपनी में डिजीटीइलाजेशन को ओर बढाया जाएगा। उपभोक्ताओं की शिकायतों का प्राथमिकता के साथ निराकरण किया जा रहा है।
सरकारी ले रही शाबाशी: 
इन दिनों राजस्थान में विधानसभा के चुनाव का शोर है। विद्युत कंपनियों के घाटे को कम करने का श्रेय सीएम वसुंधरा राजे अपनी सरकार को दे रही है। भाजपा सरकार ने गत वर्ष में अजमेर कोटा, अलवर सहित कई शहरों की बिजली व्यवस्था निजी कंपनियों को दी है। जब अकेले अजमेर में एक वर्ष में 150 करोड रुपए का फायदा सरकार को हुआ है तो फिर पूरे प्रदेश के फायदे का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि यह फायदा कंपनियों की वजह से हुआ है, लेकिन चुनाव में वसुंधरा सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है। जबकि हकीकत यह है कि सरकार इसमें भी दलाल की भूमिका में है। सरकार सस्ती बिजली खरीद कर कंपनियों को महंगी दर पर देती है। यही वजह है कि इसका बोझ उपभोक्ताओं को उठाना पड़ता है। प्रदेश के जिन शहरों में बिजली वितरण का कार्य ठेके पर दिया गया है। उन शहरों के उपभोक्ता बिल अधिक आने की शिकायतें कर रहे हैं। लेकिन करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाने वाली सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही है। कंपनियों का नजरिया पूरी तरह व्यावसायिक होता है।
एस.पी.मित्तल) (03-12-18)
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