राजस्थान में भाजपा 30 वर्षो की परंपरा को तोड़ पाएंगे?
क्या सचिन पायलट का सीएम बनने का ख्वाब पूरा होगा।
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राजस्थान में 199 सीटों के लिए सात दिसम्बर को मतदान होगा। प्रदेश में पिछले तीस वर्षों से यह परंपरा रही है कि एक बार कांग्रेस और एक भाजपा की सरकार बनती है। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद यह पहला अवसर है जब राजस्थान में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले अमितशाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। प्रदेश की जनता ने देखा कि इस बार का चुनाव प्रचार अलग हट कर था। अमितशाह हो या नरेन्द्र मोदी, किसी ने भी जिला स्तर तक चुनावी सभा करने से परहेज नहीं किया। सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक का भरपुर इस्तेमाल किया गया। अमितशाह की कारपोरेट स्टाइल ने यह बताने की कोशिश की इस बार तीस वर्षों की परंपरा टूट जाएगी। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर फिल्म स्टार हेमामालिनी तक का उपयोग राजस्थान में किया गया। जिस सीट पर जिस प्रवृत्ति के नेता की जरुरत रही उस सीट पर वैसा ही किया गया। यानि भाजपा ने चुनाव जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चूंकि भाजपा ने सीएम के चेहरे के तौर पर पहले ही वसुंधरा राजे का नाम घोषित कर रखा है इसलिए भाजपा को बहुमत मिलने पर राजे ही सीएम बनेगी। यह बात अलग है कि यदि 11 दिसम्बर को परिणाम वाले दिन भाजपा को बहुमत नहीं मिलती है और सरकार बनने के लिए छोटे दलों अथवा निर्दलीय विधायकों की जरुरत पड़ती है तो वसुंधरा राजे का मुख्यमंत्री का पद खतरे में पड़ सकता है। यह सही है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का मामला हो या फिर विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों का, भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को राजे की बात को मानना पड़ा है। लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व यह भी जानता है कि राजे की कार्यशैली कई नेताओं को पसंद नहीं है। ऐसे में यदि समर्थन देेने वाले विधायक चेहरा बदलने की मांग करते हैं तो फिर राष्ट्रीय नेतृत्व को सोचना पड़ेगा। हालांकि अभी तक भाजपा के नेताओं का यही दावा है कि पूर्ण बहुमत मिल जाएगा। लेकिन जिस तरह से दस माह पहले दो लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम सामने आए उससे प्रतीत होता है कि विधानसभा के परिणाम भाजपा की उम्मीद के अनुकूल नहीं आएंगे। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया। पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने तो एक साथ छह नेताओं के नाम गिनाकर बता दिया कि कांग्रेस में एक नहीं अनेक नेता सीएम के दावेदार हैं। लेकिन सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री के पद पर प्रबल दावेदारी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट की है। सचिन पायलट कई बार कह चुके हैं कि पिछले पांच वर्ष से वे ही राजस्थान में संघर्ष कर रहे हैं। पायलट का कहना रहा कि जब वे प्रदेश अध्यक्ष बने थे तब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल था और 200 में से मात्र 21 विधायक कांग्रेस के थे। ऐसी बुरी दशा में उन्होंने अध्यक्ष का पद संभाला और विधानसभा चुनाव तक प्रदेश भर के माहौल को कांग्रेस के पक्ष में कर दिया। हालांकि पायलट का भी यही कहना है कि मुख्यमंत्री का फैसला विधायक दल की बैठक में होगा। लेकिन राजनीति में सब जानते हैं कि पद की लालसा कितनी होती है। यदि पायलट के सामने सीएम की कुर्सी नहीं होती तो वे प्रदेश में इतनी मशक्कत नहीं करते। जहां तक गहलोत का सवाल है तो यह बात साफ है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व जो कहेगा वो ही गहलोत करेंगे। यदि गहलोत को दिल्ली में राष्ट्रीय राजनीति में बुलाया जाता है तो गहलोत चुपचाप दिल्ली में अपना डेरा जमाएंगे, लेकिन यदि गहलोत को राजस्थान की बागडोर संभालने के कहा जाता है तो गहलोत पहले से ही तैयार हैं। जानकारों की माने तो कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने पर पायलट सीएम पद के एक मात्र प्रबल दावेदार होेंगे, लेकिन यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और जुगाड़ से सरकार बनानी पड़ती है तो फिर बागडोर गहलोत के हाथ में आ सकती है। फिलहाल कांग्रेस में गहलोत और पायलट दो चेहरे हैं, जबकि भाजपा में अकेली वसुंधरा राजे हैं।