शेर मोहम्मद का शव दफन होने के लिए भी तरस गया।
मौत के बाद इंसान की पहचान कितना मायने रखती है।
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माना तो यही जाता है कि जिन्दगी का असली सुकून मौत के बाद ही मिलता है। जब शव मिट्टी मिलता है तो उसको कोई पहचान भी नहीं होती। पहचान सिर्फ इंसान के तौर पर होती है। लेकिन इन सब हकीकतों और मान्यताओं से परे 16 दिसम्बर को राजस्थान के उदयपुर में 70 वर्षीय शेर मोहम्मद का शव कब्रिस्तान में दफन होने के लिए तरस गया। शेर मोहम्मद का इंतकाल 15 दिसम्बर की रात को हुआ। सुबह उदयपुर के सबिना मोहल्ले के घर से जनाजा उठता इससे पहले ही हिदायत आ गई कि शव को निकटवर्ती सबिना और चेतक कब्रिस्तान में न दफनाया जाए। कहा गया कि शेर मोहम्मद देवबंदी जमात से ताल्लुक रखता है इसलिए उदयपुर शहर के किसी भी कब्रिस्तान में दफन नहीं हो सकता। शेर मोहम्मद के पुत्र आसिफ ने हाथ जोड़ कर कहा भी कि उसके पिता का शव घर में यूं ही रखा है और परिजन भी रात से ही परेशान हो रहे हैं। इसलिए जल्द से जल्द शव को दफनाना है। विवाद बढ़ने पर मामला पुलिस थाने पर पहुंच गया, पुलिस के अधिकारियों को चेतावनी दे दी गई कि शेर मोहम्मद के शव को जबरन दफनाने की कोशिश नहीं की जाए। समूह की एकजुटता को देखते हुए पुलिस ने लाचारी जताई और मृतक के परिजन को सलाह दी कि शव को डूंगरपुर के किसी कब्रिस्तान में दफना दिया जाए। उदयपुर शहर में तीन हजार देवबंदी जमात के लोग रहते हैं। हो सकता है कि कड़कड़ाती सर्दी की वजह से कुछ बीमार बुजुर्गों का दो-चार दिन में इंतकाल भी हो जाए, यदि शेर मोहम्मद को उदयपुर में नहीं दफनाने दिया तो आने वाले दिनों में ऐसे परिवारों को और परेशानी होगी। देवबंद जमात के प्रतिनिधियों ने पुलिस को बताया कि शव के दफन को लेकर हाईकोर्ट का निर्णय भी है, लेकिन समूह की एजुटता के आगे भी कोर्ट का आदेश भी धरा रह गया। 16 दिसम्बर को सायं चार बजे तक शेर मोहम्मद का शव दफन नहीं हो सका। शेर मोहम्मद के परिजन रात्रि से ही परेशान हो रहे हैं, लेकिन उनकी इस परेशानी पर किसी को भी दया नहीं आ रही हैं। विरोध करने वालों का कहना है कि यदि शेर मोहम्मद के शव को उदयपुर के किसी कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति दी जाती है तो फिर कई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। समाज की मान्यताओं और परंपराओं का निर्वाह सभी को करना चाहिए। समाज से उपर कोई जमात नहीं हो सकती। जो भी हो इंतकाल के बाद भी शेर मोहम्मद की पहचान उसका पीछा नहीं छोड़ रही है।