बहुत मायने रखता है पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का विधानसभा में रोजाना उपस्थिति दर्ज करवाना। अशोक गहलोत भी बने हुए हैं संगठन के राष्ट्रीय महासचिव।
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राजस्थान की पूर्व सीएम और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने 18 जनवरी को भी विधानसभा में विधायक के नाते अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। राजे 15वीं विधानसभा की शुरुआत से ही प्रतिदिन सदन में आ रही हैं। पहले यह माना गया कि सदन में शपथ लेने के बाद राजे नहीं आएंगी, लेकिन पिछले चार दिनों में देखा गया कि चाहे विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव का अवसर हो या फिर राज्यपाल का अभिभाषण। सभी मौकों पर राजे उपस्थिति रहीं। 18 जनवरी को राज्यपाल के अभिभाषण पर भी राजे एक विधायक के तौर पर बैंठी रहीं। विधानसभा का यह सत्र 23 जनवरी तक चलेगा। राजे की विधानसभा में लगातार उपस्थिति राजनीतिक दृष्टि से मायने रखती है। 11 दिसम्बर को प्रदेश में भाजपा की हार के बाद से ही राजे के राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं। विगत दिनों राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। तब यही माना गया कि राजे अब राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होगी, लेकिन विधानसभा में लगातार उपस्थिति दर्ज करवा कर राजे ने कुछ अलग ही संकेत दिए हैं। हालांकि भाजपा विधायक दल की बैठक में राजे को नेता बनाने की मांग भी की गई, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्णय के अनुरूप गुलाबचंद कटारिया को नेता चुना गया। सब जानते हैं कि वसुंधरा राजे सिर्फ भाजपा विधायक के नाते विधानसभा में रोजाना नहीं आएंगी। 2008 में चुनाव हारने के बाद भी राजे विधानसभा में बहुत कम आईं। उनके इंग्लैंड चले जाने पर भी चर्चाएं हुई। हालांकि तब उनको राष्ट्रीय स्तर पर कोई पद नहीं दिया गया था। लेकिन 2013 के चुनाव आते आते राजे एक फिर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गईं। पहले प्रतिपक्ष की नेता और फिर भाजपा की प्रदेशाध्यक्ष बनीं। चुनाव में जीत हासिल कर सीएम भी बन गईं। 2018 का चुनाव भाजपा ने वसुंधरा राजे के चेहरे पर ही लड़ा और हार का सामना करना पड़ा। देखना होगा कि 2018 की हार के बाद वसुंधरा राजे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होती हैं या फिर प्रदेश की राजनीति में अपनी सक्रियता बनाए रखती हैं। अलबत्ता रोजाना विधानसभा में उपस्थिति दर्ज करवा कर राजे ने तो संकेत दिए हैं।
गहलोत ने भी नहीं छोड़ा है महासचिव का पद:
सीएम बन जाने के बाद भी अशोक गहलोत ने भी कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव का पद नहीं छोड़ा है। इसे राजस्थान विधानसभा का महत्व ही कहा जाएग कि जहां भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर वसुंधरा राजे बैठी हैं। वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अशोक गहलोत भी विराजमान है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व में गहलोत का कितना दबदबा है इसका अंदाजा उनके महासचिव बने रहने से लगाया जा सकता है। यह बात अलग है कि डिप्टी सीएम बनने के बाद भी सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हुए हैं।