तो क्या ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल को भारत से अलग मानती है? 

तो क्या ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल को भारत से अलग मानती है? 
लोकतंत्र में एक मुख्यमंत्री के लिए इतना घमंड उचित नहीं। 
आखिर क्यों डर रही है सीबीआई की जांच से?
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भारत के संविधान निर्माताओं ने पश्चिम बंगाल जैसे हालातों की कभी कल्पना नहीं की होगी, इसलिए राज्यों को कानून व्यवस्था जैसा महत्वपूर्ण अधिकार दिया। यदि संविधान बनाने वालों को यह पता होता कि कोई मुख्यमंत्री अपने कानून व्यवस्था वाले अधिकार का दुरुपयोग केन्द्र सरकार को चुनौती देने के लिए करेगा तो राज्यों को कभी भी इतने अधिकार नहीं दिए जाते। सवाल यह नहीं है कि शारदा और रोजवेली चिटफंड घोटाले में पश्चिम बंागल की सीएम ममता बनर्जी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को जांच से बचा रही हैं, सवाल यह है कि ममता बनर्जी सीधे केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रही हैं। यह माना कि सीबीआई केन्द्र सरकार के अधीन काम करती है , लेकिन सीबीाई के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर शारदा और रोजवेली चिटफंड घोटाले की जांच कर रहे हैं। 3 फरवरी को ममता ने कोलकाता में सीबीआई के अफसरों को पुलिस हिरासत में लिया, इसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता है। क्या सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पश्चिम बंगाल में जांच भी नहीं कर सकती है? इसे ममता बनर्जी का घमंड ही कहा जाएगा कि उन्होंने सीबीआई के अधिकारियों को भी अपनी पुलिस से पकड़ा कर थाने में बैठा दिया। इससे पहले थल सेना के वाहनों के आवागमन पर भी ममता ने एतराज जताया था और अब विरोधी नेताओं के हेलीकाॅप्टर को उतरने की अनुमति भी नहीं दी जा रही है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को मोबाइल फोन से सभा को संबोधित करना पड़ा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को यात्रा भी नहीं निकालने दी गई। यानि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अपना कानून चलाना चाहती हैं। देश के संघीय ढांचे के लिए ममता का रवैया घातक है। ममता को यह समझना चाहिए कि वे जनता के वोट से सीएम बनी हैं और लोकतंत्र में सभी संविधान की संस्थाओं के अपने अपने अधिकार हैं। यदि ममता को यह लगता है कि सीबीआई केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के दबाव में काम कर रही है तो उन्हें सीबीआई के खिलाफ अदालत की शरण लेनी चाहिए। लेकिन यदि ममता बनर्जी अपने कानून से ही सीबीआई के अफसरों को हिरासत में लेंगी तो फिर संघीय ढांचे का क्या मतलब रहेगा? ममता ने अपने रवैए से पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन जैसे हालात कर दिए हैं। बंगाल पुलिस का इस्तेमाल ममता बनर्जी अपनी सुरक्षा के लिए कर रही हैं।
आखिर डर किस बात का है?ः
3 फरवरी को जब सीबीआई के अधिकारी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए उनके निवास पर पहुंचे तो ममता बनर्जी भी पुलिस कमिश्नर के आवास पर पहुंच गई। देश के इतिहास में यह पहला अवसर होगा, जब एक अफसर को जांच से बचाने के लिए मुख्यमंत्री को स्वयं आना पड़ा। असल में शारदा और रोजवेली चिटफंड घोटाले की जांच के लिए ममता बनर्जी से जो एसआईटी गठित की थी उसके मुखिया राजीव कुमार सीएम ममता के कितने पसंदीदा अफसर हैं। इसका अंदाजा कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के पद पर नियुक्ति से लगाया जा सकता है। चिटफंड घोटाले से पूर्व में ममता बनर्जी की टीएमसी के नेताओं और सरकार के मंत्रियों की भी गिरफ्तारी हुई, लेकिन ममता ने भी धरना नहीं दिया, लेकिन सीबीआई ने जब राजीव कुमार से पूछताछ का प्रयास तो ममता बनर्जी धरने पर बैठ गई है। आखिर राजीव कुमार से पूछताछ को लेकर ममता को इतना डर क्यों लग रहा है? क्या राजीव कुमार ने वाकई दस्तावेज नष्ट कर दिए हैं? क्या इन  दस्तावेजों से जांच का दायरा ममता तक बढ़ता है?
तो राजीव कुमार को पछताना पड़ेगा-सुप्रीम कोर्टः
3 फरवरी को कोलकाता में जो कुछ भी हुआ उसको लेकर 4 फरवरी को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। सीबीआई ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर पर जांच में बाधा डालने का आरोप लगाया। साथ ही घोटाले के सबूत नष्ट करने की बात भी कही। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना रहा कि सबूत नष्ट करने वाले साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएं। कोर्ट ने कहा कि यदि साक्ष्य मिलेंगे तो हम ऐसी कार्यवाही करेंगे, जिससे पुलिस कमिश्नर को पछताना पड़ेगा। सीबीआई की अर्जी पर 5 फरवरी को सुनवाई होगी।
किस बात का धरनाः
जिन ममता बनर्जी को सीबीआई की जांच पसंद नहीं वो ममता बनर्जी अब कोलकाता में धरना दे रही हैं। इसे लोकतंत्र का मजाक ही कहा जाएगा कि जब 4 फरवरी को बंगाल विधानसभा में राज्य का बजट पेश हो रहा था। तब मुख्यमंत्री अपने अधिकांश मंत्रियों के साथ धरने पर बैठी थीं। अब अखिलेश यादव से लेकर लालू प्रसाद और राहुल गांधी तक ममता के समर्थन में आ गए हैं। लालू पहले ही जेल में हैं और लालू के परिवार के सभी सदस्यों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अदालत से जमानत ले रखी है। अच्छा हो कि धरना देने के बजाए ममता बनर्जी और विपक्षी दल संवैधानिक तरीके से मुकाबला करें।
एस.पी.मित्तल) (04-02-19)
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