तो अजमेर कांग्रेस सरकार भी कर्नल बैंसला को कोई महत्व नहीं दे रही है। 

तो अजमेर कांग्रेस सरकार भी कर्नल बैंसला को कोई महत्व नहीं दे रही है। 
आईएएस नीरज के पवन ही बने हुए है सरकार के प्रतिनिधि।
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14 फरवरी को आठवें दिन भी पांच प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला रेल ट्रेक पर बैठे रहे। सवाई माधोपुर जिले के मलारना डूंगर स्टेशन के निकट ट्रेक पर बैठने से दिल्ली-मुम्बई का रेल मार्ग पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है। उम्मीद थी कि 13 फरवरी को विधानसभा में आरक्षण का बिल पास होने के बाद सरकार की ओर से कोई गंभीर प्रयास होंगे, ताकि बैंसला को रेल ट्रेक से उठाया जा सके। लेकिन 14 फरवरी को आईएएस नीरज के पवन ही बैंसला के पास पहुंचे और स्वीकृत बिल की प्रतिलिपि दी। बैंसला ने कहा कि अब वे बिल के प्रावधानों को पढ़ेंगे और रात तक कोई निर्णय लेंगे। बैंसला से वार्ता करने के लिए राज्य सरकार ने तीन मंत्रियों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी का कोई भी सदस्य 14 फरवरी को बैंसला से नहीं मिला। सरकार की ओर से जो कुछ भी कार्यवाही हुई उसे आईएएस पवन ने ही निभाया। बैंसला को बिल की प्रति सौंपते हुए पवन ने कहा कि गत चार बार विधानसभा में जो बिल पास हुए उससे यह बिल अलग है। संविधान में संशोधन के लिए राजस्थान विधानसभा ने सहमति दे दी है और इसी प्रकार ओबीसी का कोटा 21 से बढ़ा कर 26 प्रतिशत कर दिया गया है ताकि गुर्जरों को पांच प्रतिशत आरक्षण अलग से मिल जाए। पवन ने कहा कि वे कोई राजनेता तो नहीं है लेकिन एक जिम्मेदार अधिकारी होने के नाते यह कह सकते हैं कि जब केन्द्र सरकार गरीब सवर्णों को संविधान में संशोधन कर दस प्रतिशत आरक्षण दे सकती है तो फिर गुर्जरों को भी पांच प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद अब पचास प्रतिशत आरक्षण की बाध्यता समाप्त हो गई है। इस मुद्दे पर आईएएस पवन कुछ भी कहे, लेकिन हकीकत ये है कि मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले संसद का अंतिम सत्र खत्म हो चुका है और संसद के बगैर संविधान में कोई संशोधन नहीं हो सकता है। ऐसे में गुर्जरों को पांच प्रतिशत आरक्षण कैसे मिलेगा यह अभी नहीं कहा जा सकता है। राज्य सरकारों ने इस तरह के विधेयक पहले भी सर्वसम्मति से स्वीकृत किए हैं। लेकिन हाईकोर्ट की रोक के बाद आरक्षण का लाभ गुर्जर समुदाय को नहीं मिल सका है। असल में कर्नल बैंसला भी यह जानते हैं कि 13 फरवरी को कांग्रेस सरकार ने जो विधेयक स्वीकृत करवाया है उससे राजस्थान में गुर्जरों को आरक्षण नहीं मिल सकता है। इसलिए बैंसला ने अब गुर्जर पंचायत बुलाने की बात कही है। सरकार को इस बात का आभास हो रहा है कि धीरे धीरे कर्नल बैंसला का आंदोलन भी नरम पड़ रहा है। शुरू में प्रदेशभर में जो नेशनल हाईवे जाम हो रहे थे, उसमें भी अब कमी आ गई है। इसी प्रकार मलारना डूंगर स्टेशन के निकट रेल पटरियांे पर बैठने वाले आंदोलनकारियों की संख्या में भी कमी आई है। हालांकि इस बार के आंदोलन का नेतृत्व कर्नल बैंसला के पुत्र विजय बैंसला ने किया है। कर्नल बैंसला कह चुके हैं कि अब युवाओं का जमाना है इसलिए आंदोलन का नेतृत्व युवा वर्ग ही कर रहा है। इस बीच कर्नल बैंसला पर आरोप लगते रहे कि वे अपने पुत्र को लोकसभा का चुनाव लड़वाना चाहते हैं, इसलिए आरक्षण की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं। हलांकि ऐसे सभी आरोपों से कर्नल बैंसला ने इंकार किया है। अब देखना है कि सरकार की बेरुरखी के बाद कर्नल बैंसला कब तक रेल टेªेक से बाहर निकलते हैं। दिल्ली-मुम्बई रेल ट्रेक जाम होने से हजारों यात्रियों को रोजाना परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यदि सरकार कर्नल बैंसला के आंदोलन को लेकर चिंतित होती तो 14 फरवरी को एक आईएएस अफसर को भेजने के बजाए मंत्रियों की कमेटी को भेजा जाता। कर्नल बैंसला के व्यवहार को लेकर पर्यटन मंत्री और सरकार के प्रमुख पेरोकार विश्वेन्द्र सिंह पहले ही नाराजगी जता चुके हैं। जबकि कमेटी के एक और मंत्री रघु शर्मा तो एक बार भी कर्नल बैंसला से मिलने के लिए धरना स्थल पर नहीं गए।
एस.पी.मित्तल) (14-02-19)
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