अच्छा हुआ हमारा विंग कमांडर वापस आ गया। नहीं हो विपक्ष खुश हो जाता।

अच्छा हुआ हमारा विंग कमांडर वापस आ गया। नहीं हो विपक्ष खुश हो जाता।
इमरान को शांति का मसीहा बताने वाले पत्रकारों और नेताओं को शर्म आनी चाहिए।
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एक मार्च को इस्लामाबाद में पाकिस्तान के अधिकारियों ने हमारे विंग कमांडर अभिनंदन को सकुशल भारतीय दूतावास के अधिकारियों को सौंप दिया। अब लाहौर और वाघा बाॅर्डर से अभिनंदन भारत पहुंच रहे हैं। यह तो अच्छा हुआ कि विंग कमांडर पाकिस्तान के चंगुल से निकल आया। यदि नहीं आता या आने में विलम्ब होता तो विपक्ष के नेता खुश हो जाते। 27 फरवरी को जब अभिनंदन पाकिस्तान में फंस गया था, तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने चिंता जता दी थी। पुलवामा हमले के बाद विपक्ष ने पीएम नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर दिया।  पूछा गया कि 56 इंच की छाती वाला प्रधानमंत्री कहां गया? लेकिन जब 26 फरवरी को मोदी सरकार के फैसले पर पीओके में सैन्य कार्यवाही की गई तो विपक्ष के नेताओं ने वायु सेना को सलाम कर दिया। यह सही है कि हमारे जांबाज पायलटों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकियों को ढेर किया, लेकिन जब पुलवामा हमले में मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है तो फिर पीओके पर कार्यवाही के लिए श्रेय क्यों नहीं दिया जाता? भारत में जो राजनीतिक हालात हैं उन्हें देखते हुए यह अच्छा हुआ कि अभिनंदन वापस आ गया, नहीं तो विपक्ष के नेता लोकसभा चुनाव में इसको मुद्दा बनाते और इसी में अपनी जीत की संभावनाएं तलाशते। अनेक टीवी चैनलों और अखबारों ने एक दिन में अभिनंदन को लेकर माहौल गर्म कर दिया। ऐसा लगा कि अभिनंदन की सबसे ज्यादा चिंता इन्हीं पत्रकारों को है। ऐसे ही पत्रकार अब अभिनंदन की रिहाई पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को शांति का मसीहा बता रहे हैं। पुलवामा हमले में 46 जवानों की शहादत पर जिस इमरान खान ने अफसोस तक जाहिर नहीं किया उसे शांति का मसीहा बताया जा रहा है। सब जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद ही इमरान को पाकिस्तान की संसद में अभिनंदन की रिहाई की घोषणा करनी पड़ी। यह मोदी सरकार की कूटनीति ही रही कि आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग किया गया। जो पत्रकार और नेता इमरान को शांति का मसीहा बता रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि हमारे विंग कमांडर को लेकर पाकिस्तान पहले ब्लैकमेलिंग कर रहा था। लेकिन भारत दबाव में नहीं आया तो बिना शर्त रिहाई की घोषणा की। आखिर किस मुंह से इमरान की तारीफ की जा रही है। 28 फरवरी को ही हमारी सेनाओं के अधिकारियों ने बताया कि 27 फरवरी को पाकिस्तान के 2 विमानों ने हमारी सीमा में प्रवेश किया। इन विमानों में एफ16 विमान भी शामिल था। इसी विमान में मिसाइल भी लगी हुई थी। यह तो अच्छा हुआ कि विंग कमांडर अभिनंदन ने मिग21 से उड़ान भर कर पाकिस्तान के एफ16 को नष्ट कर दिया। यदि एफ16 को नष्ट नहीं किया जाता तो मिसाइल हमारे सैन्य ठिकानों पर गिरती। जो इमरान हमारे देश पर मिसाइल दाग रहा है, वह शांति का मसीहा कैसे हो सकता है? इतना ही नहीं पाकिस्तान ने इस्लामिक सहयोग संगठन के अधिवेशन का इसलिए विरोध किया कि भारत को विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। यदि इमरान खान की भारत के प्रति सहानुभूति होती तो वे अधिवेशन बहिष्कार नहीं करते। इमरान के हिमायतियों को पाकिस्तान के भारत विरोधी रवैये को समझना चाहिए। कुछ पत्रकारों और मीडिया घरानों को नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत नाराजी हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आतंकी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ हमदर्दी दिखाई जाए।  ऐसे पत्रकार समझ लें कि अब भारत तेजी से बदल रहा है।
एस.पी.मित्तल) (01-03-19)
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