सूफी संत बाबा अरशद अली को लगी भगवान कृष्ण की लगन। 

सूफी संत बाबा अरशद अली को लगी भगवान कृष्ण की लगन। 
कहा-ख्वाजा साहब की दरगाह में दिखता है सनातन संस्कृति का मंजर।
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इन दिनों अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स का जश्न चल रहा है। छह दिवसीय उर्स का समापन 14 मार्च को कुल की रस्म के साथ होगा। लम्बे अर्से के बाद यह पहला अवसर है जब उर्स के छह दिनों में शुक्रवार नहीं आएगा। मान्यता के अनुसार ख्वाजा साहब मुस्लिम माह रजब की पहली तारीख को इबादत के लिए अपनी कोठरी में गए थे। कोठरी में जाते वक्त मुरीदों से कहा कि उन्हें कोई परेशान न करें। यानि इबादत में कोई खलल न डाले। जब पांच दिनों तक ख्वाजा साहब बाहर नहीं निकले तो छठे दिन कोठरी का दरवाजा तोड़कर देखा गया। तब पता चला कि ख्वाजा साहब अल्लाह की शरण में चले गए है। चूंकि निश्चित तारीख का पता नहीं चला, इसलिए अब प्रतिवर्ष रजब माह की एक तारीख से लेकर  छह तारीख तक उर्स मनाया जाता है। यही वजह है कि दरगाह के आस-पास कोई दस किलोमीटर के दायरे में ख्वाजा की गूंज हो रही है। ऐसे ही सूफियाना माहौल में मेरी मुलाकात दरगाह के निकट खुश्तर मंजिल में रहने वाले सूफी संत बाबा अरशद अली साहब से हुई। बाबा साहब पिछले पचास वर्षों से पीड़ितों को राहत देने का कार्य कर रहे हैं। बीमार को सेहतमंद तथा परेशान को सुकून वाला बनाने के लिए बाबा साहब हमेशा तत्पर रहते हैं, यही वजह है कि उनके दर पर हमेशा मुरीदों की भीड़ लगी रहती है। बाबा साहब के विचारों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दरगाह में प्रतिवर्ष सर्वधर्म सम्मेलन करवाते हैं, जिसमें सभी धर्मो के विद्वान अपने विचार रखते है। यह सम्मेलन भी 48 वर्षों से लगातार हो रहा है। ऐसे सूफियाना माहौल में ही मेरी मुलाकात बाबा साहब से हुई। रामायण की चैपाई और गीता के श्लोक सुनाकर बाबा अरशद अली ने अपने सर्वधर्म विचारों को प्रकट किया। सभी धर्म मानवता की सीख देते हैं, लेकिन कुछ लोग जो धर्म के विरुद्ध मानवता की हत्या करते हैं। ऐसे लोग इंसान नहीं बल्कि शैतान हैं, जिन्हें खुदा कभी माफ नहीं करेगा। बाबा साहब ने माना कि भगवान कृष्ण से उनका विशेष लगाव है। मीरा के भक्तिमय गीत उन्हें बेहद सुकून देते हैं।
ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन।
वो तो गली गली हरि गुन गाने लगी।
जैसे भजन तो मन मस्तिष्क पर गहरा असर डालते हैं। ईश्वर और भक्त में कृष्ण और मीरा जैसा संबंध होना चाहिए तभी ईश्वर के साथ होने का अहसास किया जा सकता है। वे अक्सर मथुरा वृंदावन जाकर भगवान कृष्ण के होने का अहसास करते हैं। परिवहन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सत्येन्द्र नामा जब अपनी मधुर आवाज में मीरा के भजनों की प्रस्तुति देते हैं तो पूरा माहौल सूफियाना हो जाता है। बाबा अरशद अली साहब का कहना है कि ख्वाजा साहब की दरगाह में खासकर उर्स के दौरान सनातन संस्कृति का मंजर देखने को मिलता है। उर्स में दरगाह के अंदर और आसपास के क्षेत्रों में जश्न जैसा माहौल होता है। दरगाह में स्थापित दोनों देगों में शुद्ध शाकाहारी तबर्रुख (प्रसाद) तैयार होता है। इस प्रसाद को मुसलमान भी पूरी अकीदत के साथ ग्रहण करता है। दरगाह में ऐसे अनेक रिवाजे हैं जो सनातन संस्कृति से मेल खाती है। वसंत का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है तथा दरगाह  परिसर में सरल शब्दों वाली कव्वाली होती है। रमजान माह में रोजा अफ्तार की रस्म के समय भी खाद्य सामग्री शाकाहारी होती है। असल में ख्वाजा साहब ने अपने जीवनकाल में सूफीवाद को सामने रखकर प्यार मोहब्बत का पैगाम दिया। यही वजह है कि आज ख्वाजा की चैखट पर 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हिन्दू आ रहे हैं। किन्हीं कारणों से गुमराह होकर जो युवा आतंकवाद  का सहारा ले रहे हैं उन्हें ख्वाजा साहब के सूफीवाद से ही रास्ते पर लाया जा सकता है। आज देश का आम मुसलमान सुकून के साथ रह रहा है। इस्लाम में हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं है। बाबा अरशद अली से मोबाइल नम्बर 9772829551 तथा लैंड लाइन नम्बर 0145.2622616 पर उनकी सुविधानुसार संवाद किया जा सकता है।
एस.पी.मित्तल) (11-03-19)
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