अजमेर में जियारत करने आए पाकिस्तान के राजदूत सोहेल ने न्यूजीलैंड की मस्जिदों में हमले को आतंकी बताया। तो फिर कश्मीर की घटनाओं को आतंकी क्यों नहीं मानता पाकिस्तान? क्यों संरक्षण दे रहा है मसूद जैसे आतंकियों को?
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16 मार्च को पाकिस्तान के भारत स्थित राजदूत सोहेल महमूद ने अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में सूफी परंपरा के अनुसार जियारत की। हालांकि इस बार ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में पाकिस्तान से जायरीन दल नहीं आया, लेकिन विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए सोहेल महमूद ने ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत की। सोहेल के लिए दरगाह में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए। शहर भर का यातायात रोक कर सोहेल को सुरक्षित जियारत करवाई गई। जियारत के बाद मीडिया से संवाद करते हुए सोहेल ने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान की सरकार और अवाम की ओर से चादर पेश की है। भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर तो सोहेल ने कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन 15 मार्च को न्यूजीलैंड में दो मस्जिदों में हुए हमले को सोहेल ने आतंकी हमला बताया। न्यूजीलैंड में ब्रेटन टेरेंट नामक एक युवक ने दो मस्जिदों में फायरिंग कर करीब पचास व्यक्तियों को मौत की नींद सुलाया दिया। सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान के राजदूत न्यूजीलैंड के हमले को आतंकी मानते है तो फिर कश्मीर में जो रही हिंसक घटनाओं को पाकिस्तान आतांकी क्यों नहीं मानता? 14 फरवरी को पुलवामा में तो आतंकी घटना में ही सीआरपीएफ के चालीस जवान शहीद हो गए, लेकिन पाकिस्तान ने पुलवामा हमले को भी आतंकी नहीं माना। इतना ही नहीं पाकिस्तान में जो आतंकी भारत के खिलाफ षड़यंत्र कर रहे हैं उनको भी पाकिस्तान संरक्षण देता है। पुलवामा हमले की जिम्मेदारी मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली, लेकिन इसके बावजूद भी पाकिस्तान सबूत मांग रहा है। असल में आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान का हमेशा दोहरा चरित्र रहता है। यह माना कि न्यूजीलैंड की मस्जिदों का हमला बेहद ही शर्मनाक है और किसी भी धर्म में ऐसे हमलों की इजाजत नहीं है। लेकिन जब पाकिस्तान जैसा देश न्यूजीलैंड के हमले को तो आतंकी मानता है, लेकिन भारत के कश्मीर में हो रही घटनाओं को आतंकी नहीं मानता। अच्छा हो कि पाकिस्तान उन आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करे, जो पाकिस्तान में बैठ कर भारत में हिंसक वारदातें करवाते हैं।