वाकई राजनीति बड़ी गंदी चीज है। 

वाकई राजनीति बड़ी गंदी चीज है। 
450 साल बाद फिर उठा अकबर और मानसिंह की दोस्ती का विवाद।
अब इसी मुद्दे पर जयपुर राजघराने की दीयाकुमारी की उम्मीदवार का राजसमंद में विरोध।
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे हैं जयपुर घराने के साथ।
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एक कहावत है कि कुंभ मेले में खोए हुए किसी बच्चे को बड़ा होने पर यदि अपने माता-पिता का पता लगाना है तो उसे किसी चुनाव में खड़ा हो जाना चाहिए। प्रतिद्वंदी उसकी सात पीढ़ियों का हिसाब किताब निकाल लाएंगे। ऐसा ही कुछ राजस्थान के जयपुर घराने की राजकुमारी दीया कुमारी के साथ हो रहा है। दीयाकुमारी राजसमंद संसदीय क्षेत्र से भाजपा टिकिट पर दावेदारी जता रही हैं। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी चाहती हैं कि दीया को भाजपा का उम्मीदवार बना दिया जाए। चूंकि राजसमंद सीट राजपूत बहुल्य मानी जाती है, इसलिए दीया की जीत को भी आसान माना जा रहा है। लेकिन जो लोग दीया का टिकिट कटवाना चाहते हैं वे 450 साल पुराना इतिहास खंगाल लाए हैं। टिकिट कटाऊ भाजपा नेताओं ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बड़े पदाधिकारियों के माध्यम से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह को सूचना भिजवाई है कि यदि दीया कुमारी को राजसमंद से उम्मीदवार बनाया जाता है कि देशभर में भाजपा की राष्ट्रवादी छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। भाजपा अभी तक मुगल बादशाहों को आक्रमणकारी ही मानती है। मुगल बादशाहों को भारत की सनातन संस्कृति को नष्ट करने वाला माना जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अयोध्या में बाबरी मस्जिद का बनना है। सब जानते हैं कि सनृ 1576 में मुगल बादशाह अकबर से राजस्थान के शूरवीर महाराणा प्रताप ने बहुचर्चित हल्दी घाटी युद्ध लड़ा था। तब जयपुर घराने के राजा मानसिंह ही अकबर की सेना के सेनापति थे। अकबर का साथ देने की वजह से भारतीय इतिहास में राजा मानसिंह को योद्धा नहीं माना जाता। इतिहास गवाह है कि यदि राजा मानसिंह अकबर की सेना के सेनापति नहीं होते तो अकबर चित्तौड़ पर कब्जा नहीं कर सकता था। महाराणा प्रताप की छोटी सेना ही अकबर की मुगल सेना को हराने में सक्षम थी। आज भी राजस्थान के मेवाड क्षेत्र के लोगों के सामने हल्दी घाटी का नाम आता है तो उनका खून खौल उठता है। हल्दी घाटी राजसमंद संसदीय क्षेत्र में ही आती है। पाली और राजसमंद के बीच वाले क्षेत्र को ही हल्दी घाटी माना जाता है। यदि दीयाकुमारी भाजपा की उम्मीदवार होंगी तो हल्दी घाटी युद्ध में जयपुर राजघराने की भूमिका का विवाद भी सामने आएगा। क्या राजसमंद के मतदाता उस घराने की सदस्य को वोट देंगे, जिसकी वजह से महाराणा प्रताप को जंगलों में जाना पड़ा और चित्तौड़ के किले पर अकबर का कब्जा हुआ? यह ऐसा भावनात्मक मुद्दा होगा जो भाजपा की हर लहर पर भारी पड़ेगा। जब दीया की दावेदारी पर ही यह मुद्दा इतना अछल रहा है, तब दीया के उम्मीदवार होने पर कितना उछलेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यह सही है कि दीया के समर्थन में पूर्व सीएम और धौलपुर घराने की महारानी (ग्वालियर घराने के सिंधिया परिवार की राजकुमारी) वसुंधरा राजे पूरा जोर लगा रही हैं। दीया कुमारी और जयपुर राजघराने के पारिवारिक विवादों को निपटाने में भी राजे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दीया ने हाल ही में अपने पति नरेन्द्र सिंह से आपसी सहमति से तलाक भी लिया है। दीया कुमारी सवाई माधोपुर से भाजपा की विधायक भी रह चुकी हैं। आमतौर दीया की छवि साफ सुथरी है। दीया का अपने क्षेत्र के मतदाताओं से भी सीधा सम्पर्क रहा है। यह बात अलग है कि उनके पूर्वजों की गलतियों का सामना उन्हें अब भी करना पड़ रहा है।
एस.पी.मित्तल) (24-03-19)
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