दो निर्दलीय विधायकों द्वारा कांग्रेस का दामन थामने पर भी आसान नहीं है अजमेर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस की जीत।
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अजमेर संसदीय क्षेत्र के दो विधायकों द्वारा कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा के साथ ही अब यह दावा किया जा रहा है कि 29 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति मजबूत होगी। इस दावे के पीछे सबसे बड़ा तर्क आठ में से चार विधायकों का समर्थन मिल जाना बताया जा रहा है। तीन माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के चार विधायक जीते थे, जबकि कांग्रेस के दो ही विधायक चुने गए। लेकिन अब दूदू के विधायक बाबूलाल नागर और किशनगढ़ के सुरेश टांक द्वारा भी समर्थन दे दिए जाने से कांग्रेस के पास भी चार विधायक हो गए हैं। यानि विधायकों की दृष्टि से बराबर का मुकाबला है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या जितने वोट नागर और टांक ने विधानसभा चुनाव में प्राप्त किए, उतने वोट लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दिलवा सकते हैं? इस महत्वपूर्ण सवाल के उत्तर के लिए ताजा राजनीतिक हालातों के मद्देनजर गत विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालनी आवश्यक है
दूदू विधानसभा क्षेत्रः
दूदू के निर्दलीय विधायक बाबूलाल नागर कांग्रेस पृष्ठभूमि के ही हैं, लेकिन एक आपराधिक मुकदमे के चलते नागर को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया गया। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर नागर ने 68 हजार से भी ज्यादा मत प्राप्त किए। दूसरे नम्बर पर भाजपा के डाॅ. प्रेमचंद बैरवा रहे जिन्हें 54 हजार से भी ज्यादा मत प्राप्त हुए, इस प्रकार नागर को 14 हजार से भी ज्यादा मतों से जीत हुई। यहां कांग्रेस के रितेश बैरवा को 27 हजार 700 तथा हनुमान बेनीवाल की आरएलपी के शंकर नारनोलिया को 19 हजार मत प्राप्त हुए। राजनीति के जानकारों के अनुसार बेनीवाल वाली पार्टी के वोट भाजपा के ही है। जबकि नागर के कांगे्रस में आ जाने से रितेश बैरवा को मिले 27 हजार 700 वोट कांग्रेस से छिटक जाएंगे। असल में विधानसभा का चुनाव नागर विरोधी हो गया था। ऐसे में नागर को अपने समुदाय के वोट एकजुट मिल गए। जानकारों की माने तो नागर के कांग्रेस में शामिल होने से प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट भी खुश नहीं है। नागर को सीएम अशोक गहलोत का समर्थक माना जाता है। नागर भी गहलोत की पहल पर ही कांग्रेस में आए हैं। वर्ष 2018 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रघु शर्मा को दूदू से मात्र 7 हजार 500 मतों की बढ़त मिली थी, यह तब था जब नागर और कांग्रेस ने यानि गहलोत और पायलट ने मिलकर चुनाव लड़ा। यदि विधानसभा चुनाव में भाजपा के मतों में विभाजन नहीं होता तो नागर की जीत नहीं हो पाती। यह भी सही है कि दूदू में कांग्रेस के नाम पर नागर ही है। लोकसभा का चुनाव भी दूदू में नागर बनाम भाजपा व अन्य होगा। कांग्रेस पूरी तरह नागर पर निर्भर है।
किशनगढ़ विधानसभाः
26 मार्च को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में जो 13 निर्दलीय विधायक कांग्रेस के समर्थन में आए, उनमें अजमेर संसदीय क्षेत्र के किशनगढ़ के सुरेश टांक भी शामिल हैं। हालांकि टांक भाजपा पृष्ठभूमि के हैं, लेकिन किशनगढ़ के विकास की दुहाई देकर कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की है। टांक को भी पता है कि विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरणों के कारण चुनाव में जीत हो पाई। टांक के पक्ष में भाजपा और कांग्रेस की विचारधारा वाले शहरी मतदाताओं ने वोट दिया। कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है कि उम्मीदवार नंदराम थाकड़ को 15 हजार 175 वोट मिले, बागी उम्मीदवार पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया को 22 हजार 821 मत मिले। इससे कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह जरूरी नहीं कि टांक को विधानसभा चुनाव में जिन लोगों का समर्थन मिला उनका लोकसभा चुनाव में भी समर्थन मिले। जहां तक भाजपा का सवाल है तो उम्मीदवार विकास च ौधरी को 65 हजार 226 मत प्राप्त हुए। टांक को 82 हजार 678 मत मिले थे। यानि जीत का अंतर 17 हजार 452 मतों का रहा। एक वर्ष पहले हुए लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस को किशनगढ़ में 4 हजार 700 मतों की बढ़त मिली थी।
दोनों विधानसभा क्षेत्रों के आंकड़े बताते हैं कि निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस को समर्थन देने से चुनाव में जीत की गारंटी नहीं है। दोनों निर्दलीय विधायकों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात देकर ही जीत हांसिल की। किशनगढ़ शहर मार्बल कारोबार से जुड़ा हुआ है। इस वजह से शहरी क्षेत्र में मोदी लहर मानी जा रही है। दोनों निर्दलीय विधायक अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को कितना फायदा पहुंचाते हैं, इसका पता 23 मई को चलेगा।
एस.पी.मित्तल) (27-03-19)