प्रधानमंत्री के स्मार्ट सिटी वाले अजमेर में स्थानीय समस्याएं नहीं बन रही है चुनावी मुद्दा। 

प्रधानमंत्री के स्मार्ट सिटी वाले अजमेर में स्थानीय समस्याएं नहीं बन रही है चुनावी मुद्दा। 
3 से 7 दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई।
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तीर्थ नगरी पुष्कर और सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह होने की वजह से अजमेर की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है। लेकिन इसे राजनीति का घालमेल ही कहा जाएगा कि लोकसभा चुनाव के मौके पर स्थानीय समस्याएं गौण हो गई है। नरेन्द्र मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने थे, तब देश में तीन शहरों को स्मार्ट सिटी योजना में चयनित किया था, इसमें अजमेर भी शामिल था। इस घोषणा के पीछे ख्वाजा साहब की दरगाह से जुड़े क्षेत्र का विकास भी था। केन्द्र सरकार ने इसके लिए दो हजार करोड़ रुपए की राशि भी दी, लेकिन राजस्थान और केन्द्र में भाजपा का शासन होने के बाद भी अजमेर शहर स्मार्ट नहीं बन सका। दो हजार करोड़ रुपए में से मुश्किल से 500 करोड़ रुपए की योजना ही बन पाई। इसमें 250 करोड रुपए ऐलीवेटेड रोड के हैं। आनासागर के किनारे पाथ-वे तो नजर आता है, लेकिन और कोई बड़ा कार्य नहीं। जबकि नगर निगम, जिला परिषद आदि सभी संस्थाओं में भाजपा का कब्जा रहा। वसुंधरा राजे की सरकार में शहर के दोनों भाजपा विधायक स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री रहे। इतना सब कुछ होने पर भी अजमेर स्मार्ट सिटी नहीं बन सका, इसलिए अब भाजपा नेता इस समस्या को चुनावी मुद्दा नहीं बनना चाहते। स्मार्ट सिटी की योजना में तो दरगाह क्षेत्र में एक ईंट भी नहीं लगी है। विकास को लेकर जो स्थिति ख्वाजा साहब की दरगाह की है, वहीं हिन्दुओं के तीर्थ पुष्कर की। पुष्कर सरोवर के विकास के नाम पर अब तक अरबों रुपया खर्च किया जा चुका है, लेकिन करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र पवित्र सरोवर बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहा है। हालात इतने खराब है कि ट्यूबवेल से पानी डाला जा रहा है ताकि श्रद्धालु कम से कम पूजा अर्चना तो कर सकें।  बड़े बड़े नेता पुष्कर आकर अपने पाप धोते हैं, लेकिन सरोवर में पानी रहे, इसकी चिंता कोई नहीं करता है। जब दरगाह और पुष्कर का यह हाल है तो लोगों की सस्याओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। मौजूदा समय में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन अजमेर के प्रति कांग्रेस सरकार का भी उपेक्षा का भाव है। यही वजह है कि भीषण गर्मी में शहरी क्षेत्रों में तीन दिन में और ग्रामीण क्षेत्रों में सात दिनों के अंतराल में पेयजल की सप्लाई हो रही है। बीसलपुर बांध की समस्या तो हमेशा रहेगी। सरकार को अब चम्बल नदी का पानी लाकर स्थायी समाधान करना चाहिए।
दोनों उम्मीदवारों के दावे:
अजमेर में 29 अप्रैल को मतदान होना है। भाजपा उम्मीदवार भागीरथ चौधरी और कांग्रेस के रिजु झुनझुनवाला के अपने अपने दावे हैं। कोई भी उम्मीदवार स्थानीय समस्याओं पर कुछ नहीं बोल रहा है। चौधरी अजमेर संसदीय क्षेत्र के किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे हैं तो रिजु को बाहरी प्रत्याशी बताया जा रहा है। जहां रिजु की छवि बड़े कारोबारी की है तो वहीं भाजपा के उम्मीदवार को जन साधारण से जुड़ा हुआ माना जा राहा है। चूंकि अभी कांग्रेस की सरकार है, इसलिए स्थानीय समस्याओं पर कांगे्रस प्रत्याशी चुप है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी के पास भी गिनाने को बड़ी उपलब्धि नहीं है। यही वजह है कि दोनों प्रत्याशी राष्ट्रीय मुद्दों पर ही भाषाणबाजी कर रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में जहां मोदी फैक्टर प्रभावी नजर आ रहा है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में राहुल गांधी का 72 हजार रुपए सालाना देने का वायदा आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
जातिगत समीकरण:
कांग्रेस उम्मीदवार को मुस्लिम मतों के साथ साथ वैश्य समुदाय के मतों पर भरोसा है। वहीं भाजपा के उम्मीदवार को जाट समुदाय के साथ साथ मोदी लहर पर भरोसा है। भाजपा उम्मीदवार चौधरी का कहना है कि इस बार जातिगत समीकरण मायने नहीं रखते हैं, क्योंकि देश की जनता नरेन्द्र मोदी को दोबारा से प्रधानमंत्री बनवाना है। चूंकि कांगे्रस के प्रत्याशी रिजु भीलवाड़ा से आकर चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए उन्हें अपने वैश्य समुदाय में भी पहचान बनानी पड़ रही है।
एस.पी.मित्तल) (16-04-19)
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