आतंकियों! प्रार्थना करने वालों को तो बख्शों।
कोलम्बो के चर्चों और होटलों में सीरियल ब्लास्ट।
150 से ज्यादा की मौत 500 जख्मी। जेहादी संगठनों का हाथ।
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21 अप्रैल को जब भारत के पड़ौसी देश श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो के चर्चों में ईस्टर पर्व की प्रार्थना हो रही थी, तब आतंकियों ने सीरियल ब्लास्ट करवा दिए। कोलम्बो की तीन फाइव स्टार होटलों में भी ब्लास्ट करवाए गए, ताकि विदेशी नागरिक खास कर अमरीका और इंग्लैंड के नागरिकों को मौत के घाट उतारा जा सके। छह स्थानों पर हुए आतंकी हमलों में 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है, जबकि 500 जख्मी अस्पतालों में भर्ती हैं। आतंकी हमला कट्टरपंथी सोच रखने वाले जेहादी संगठनों के द्वारा किया जाना बताया जा रहा है। हमले के पीछे अमरीका, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे ईसाई देशों को यह संदेश देना है कि अभी जेहादी संगठन कमजोर नहीं पडे हैं। जेहादी संगठन किस तरह से अपना वजूद कायम करें यह उन पर निर्भर है, लेकिन आतंकियों को कम से कम प्रार्थना करने वालों को तो बख्शना चाहिए। जो लोग अपनी सलामति के लिए परमपिता परमेश्वर से दुआ कर रहे हैं, यदि वो ही मारे जाए तो फिर प्रार्थना का क्या फायदा। ईसाई समुदाय में चर्च को ईश्वर का घर माना जाता है। यह मान्यता है कि चर्च में प्रभु ईशु स्वयं उपस्थित होकर आशीष देते हैं। यही भरोसे की वजह से पादरी जब प्रार्थना करते हैं तो बीमार व्यक्ति चंगा हो जाता है और परेशान व्यक्ति को राहत मिलती है। आतंकियों ने ईश्वर के प्रति इस भरोसे को तोडऩे का काम भी किया है। सीरिया, ईराक, ईरान आदि मुस्लिम देशों में अमरीका, फ्रांस, इंग्लैंड आदि देशों ने जो कार्यवाही की है उससे जेहादी संगठन नाराज हो सकते हैं। ऐसी नाराजगी निर्दोष लोगों से नहीं निकालनी चाहिए। जो ईसाई कोलम्बो के चर्चों में ईस्टर की प्रार्थना कर रहे थे, वे कभी लडऩे के लिए किसी भी मुस्लिम देश में नहीं गए, लेकिन फिर भी यदि उन्हें मौत के घाट उतारा जाता है तो यह ज्यादती ही मानी जाएगी। श्रीलंका में ईसाई समुदाय अल्पसंख्यक की श्रेणी में आता है। श्रीलंका में बोद्धधर्म के अनुयायी बहुसंख्यक हैं और बौद्धों और तमिलों में पूर्व में विवाद भी रहा, लेकिन 21 अप्रैल को यह पहला अवसर रहा, जब जेहादी संगठनों ने कोलम्बो में चर्चों और होटलों को निशाना बनाया। चूंकि कोलम्बो पर्यटन स्थल भी है, इसलिए यहां के होटल्स भी पर्यटकों से भरे रहते हैं।