सरकारी बंगला कब्जाने के मुद्दे पर अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे में कोई फर्क नहीं। 

सरकारी बंगला कब्जाने के मुद्दे पर अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे में कोई फर्क नहीं। 
पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं पर हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित। 
गहलोत के सीएम बनते ही याचिकाकर्ता का यू टर्न।
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9 मई को मुख्य न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट की अदालत में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं पर सुनवाई हुई। सरकार की ओर से महा अधिवक्ता एमएस सिंघवी और याचिकाकर्ताओं की ओर से विमल चौाधरी ने पक्ष रखा। दोनों पाक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश भट्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब किसी भी दिन हाईकोर्ट अपना फैसला सुना सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता मिलापचंद डाडिया और अन्य लोगों की ओर से ऐसी याचिकाएं तब प्रस्तुत की गई थी, तब वसुंधरा राजे प्रदेश की सीएम थीं। राजधानी जयपुर के सिविल लाइन में बंगला नम्बर आठ मुख्यमंत्री के लिए आरक्षित है, लेकिन राजे ने इस बंगले को अपना निवास नहीं बनाया। निवास के लिए राजे ने बंगला नम्बर 13 को अपने कब्जे में ले लिया। यानि राजे ने सीएम आवास के साथ साथ बंगला नम्बर 13 भी अपने पास रखा। 13 नम्बर बंगले को कब्जाने के पीछे तर्क दिया गया कि राजे पूर्व सीएम की हैसियत से भी एक बंगला अपने पास रख  सकती है। तब पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी वसुंधरा राजे के इस कृत्य की निंदा की। इशारा मिलते ही सामाजिक कार्यकर्ता मिलापचंद डांडिया हाईकोर्ट पहुंच गए। डांडिया ने अपनी जनहित याचिका में वो सब तर्क रखे जिससे राजे से बंगला नम्बर 13 छीन लिया जाए। लेकिन फैसला आते आते सीएम की कुर्सी पर अशोक गहलोत फिर से विराजमान हो गए। गहलोत सीएम बनते ही हाईकोर्ट में कहा गया कि यदि किसी पूर्व मुख्यमंत्री को विधायक होने के नाते सुविधा मिलती है तो कोई ऐतराज नहीं है। असल में पिछले बीस वर्षो से राजस्थान में गहलोत और राजे ही सीएम की कुर्सी पर अदला-बदली  कर रहे हैं। याचिका कर्ताओं के यू टर्न पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। असल में बंगला कब्जाने का जो रास्ता मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा राजे ने अपनाया, वही रास्ता अब मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपना रहे हैं। गहलोत को सीएम बने साढ़े चार माह हो गए, लेकिन गहलोत ने अभी तक भी सिविल लाइन का बंगला नम्बर 49 खाली नहीं किया है। जिस भाजपा के शासन में वसुंधरा राजे 8 नम्बर के साथ साथ 13 नम्बर पर भी काबिज रहीं, उसी प्रकार अब गहलोत भी 8 नम्बर के साथ साथ बंगला नम्बर 49 में काबिज है। राजे की तरह गहलोत का भी तर्क है कि उन्होंने बंगला नम्बर 8 को अपना निवास नहीं बनाया है। सत्ता का चरत्र एकसा होता है, इसका पता इससे भी चलता है कि राजे ने भी 8 नम्बर बंगले का उपयोग राजनीतिक गतिविधियों के लिए किया, इसी प्रकार गहलोत भी कांग्रेस की बैठकों के लिए मुख्यमंत्री आवास का उपयोग कर रहे हैं। दो बंगले कब्जाने को लेकर जो अशोक गहलोत वसुंधरा राजे की आलोचना करते रहे वो ही गहलोत खुद दो बंगलों पर कब्जा किए हुए हैं। लोकसभा चुनाव की आचार संहित बंगला छोडऩे में बाधक नहीं है। जो गहलोत स्वयं गांधीवादी होने का दावा करते है वो वसुंधरा राजे की तरह महलों की संस्कृति को स्वीकार कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश:
पूर्व मुख्यमंत्रियों को राजधानी में बंगला आदि की सुविधा नहीं मिले, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश दे रखे हैं। इन्हीं आदेशों के चलते यूपी में अखिलेश यादव, मायावती आदि से सरकारी बंगले जबरन खाली करवाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अंतर्गत तो राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिविल लाइन के बंगला नम्बर 13 को भी अपने पास नहीं रख सकती है। राजे ने तो दिसम्बर 2018 में सीएम की कुर्सी छोडऩे से पहले ही बंगला नम्बर 13 आवंटित करवा लिया था। सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद गहलोत इसलिए चुप रहे कि उन्हें भी वसुंधरा राजे की राह पर चलना था। अब जब हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। तब देखना है कि गहलोत और राजे पर कितना असर होता है। वैसे नेताओं से नैतिकता की उम्मीद करना बेमानी है।
एस.पी.मित्तल) (09-05-19)
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