आखिर सही दिशा मंदिर के पक्ष में है या मस्जिद के?

आखिर सही दिशा मंदिर के पक्ष में है या मस्जिद के?
मध्यस्थता कमेटी की भूमिका को 15 अगस्त तक बढ़ाया।
यानि नई सरकार बनने पर ही सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला लेगा। 
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10 मई को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद को लेकर सुनवाई हुई। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्सीय संविधान पीठ के समक्ष मध्यस्थता कमेटी के वरिष्ठ सदस्य जस्टिस एफ एम कल्लीफुल्ला ने कहा कि कमेटी के प्रयास उत्साहवर्धक रहे हैं और हमारे प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं। चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि कमेटी ने जो अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है, उससे प्रतीत होता है कि कमेटी को और समय दिया जाना चाहिए। विवाद के महत्व को देखते हुए संविधान पीठ ने कमेटी का समय 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया। अयोध्या में विवादित भूमि पर आपसी सहमति से मंदिर अथवा मंस्जिद बनवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यी मध्यस्थता कमेटी का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज कल्लीफुल्ला के साथ-साथ आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर और मशहूर वकील श्रीराम पंचू को कमेटी का सदस्य बनाया गया। कोई दो माह की मशक्कत में कमेटी ने सुन्नीवक्फ बोर्ड से लेकर श्रीराम जन्म भूमि न्यास के प्रतिनिधियों से लम्बी वार्ता की। इस वार्ता के बाद ही कमेटी को लगता है कि समझौते के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी के कार्यों की खबरों पर रोक लगा रखी है, इसलिए यह पता नहीं कि सही प्रयास मस्जिद के पक्ष में है या मंदिर के पक्ष में। लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि अयोध्या विवाद का हल आपसी समझौते से होना चाहिए, ताकि हिन्दू और मुसलमानों के बीच सद्भावना बनी रहे। हिन्दू पक्ष का कहना है कि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर तोड़ कर मुस्लिम शासक बाबर ने मस्जिद का निर्माण करवाया, इसलिए विवादित भूमि पर मंदिर ही बनना चाहिए। लेकिन मंदिर निर्माण का मुस्लिम पक्ष विरोध कर रहा है। जब यह विवाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा था, तब भी समझौते के प्रयास हुए थे। अब सुप्रीम कोर्ट भी एक बार फिर प्रयास कर रहा है। 15 अगस्त के बाद जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा, उसमें जस्टिस कल्लीफुल्ला की मध्यस्थता कमेटी के निर्णयों को भी शामिल किया जाएगा। अयोध्या मामले में पहले जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी, तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि सुनवाई को लोकसभा चुनाव तक टाल दिया जाए, क्योंकि निर्णय होने पर भाजपा को राजनीतिक फायदा होगा। तब किसी को भी भरोसा नहीं था कि कोर्ट का फैसला वाकई चुनाव के बाद आएगा, क्योंकि तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा रोजाना सुनवाई कर रहे थे। लेकिन जस्टिस मिश्रा के रिटायरमेंट के बाद से ही सुनवाई किसी न किसी कारण से टलती रही। हालांकि जस्टिस दीपक मिश्रा का साफ कहना था कि सुप्रीम कोर्ट मंदिर निर्माण पर सुनवाई नहीं कर रहा है। कोर्ट तो विवादित भूमि का मालिकाना हक तय करेगा। मध्यस्थता कमेटी की भूमिका 15 अगस्त तक बढ़ाने से जाहिर है कि अब कोर्ट का फैसला देश में नई सरकार बन जाने के बाद ही आएगा। 23 मई को परिणाम आने के बाद जून के प्रथम सप्ताह तक नया मंत्रिमंडल बन जाएगा।
एस.पी.मित्तल) (10-05-19)
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