राजस्थान की बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए सीएम अशोक गहलोत दिल्ली से लौटे। हाईकोर्ट ने भी लगाई फटकार।
एक थानेदार की अभिलाषा।
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राजस्थान में जब रोजाना बलात्कार, हत्या, दलित अत्याचार आदि की संगीन वारदातें हो रही हों, तब सूबे का मुखिया यदि दिल्ली में राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहेगा तो सवाल उठेंगे ही? पिछले कई दिनों से आपराधिक घटनाओं की खबरे अखबारों में छप रही हैं। 17 मई को राजस्थान पत्रिका में निकम्मेपन की हद शीर्षक से जो अग्र लेख प्रकाशित हुआ उसमें बताया गया कि कांग्रेस के तीन माह के शासन में बलात्कार के 63 मामले दर्ज हुए हैं। लेकिन कार्यवाही सिर्फ तीन मामलों में ही हुई। पत्रिका के इस आलेख को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया। कोर्ट ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लेते हुए आला अधिकारियों को नोटिस जारी कर 27 मई को तलब किया है। कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद सीएम अशोक गहलोत ने दिल्ली में ही पत्रिका के संवाददाता को बुलाकर इंटरव्यू दिया। इतना ही नहीं गहलोत स्वयं भी 18 मई को दिल्ली से लौट आए। जबकि पूर्व में उनका 23 मई तक दिल्ली में रहने का कार्यक्रम था। सवाल यह नहीं है कि मुख्यमंत्री दिल्ली में रहे या अपने प्रदेश में सवाल ये है कि प्रदेश में अमन चेन कायम रहना चाहिए। यदि बलात्कार हत्या दलित अत्याचार आदि की घटनाएं प्रतिदिन होंगी तो फिर सरकार की काबिलीयत पर सवाल उठेंगे ही। चार माह पहले तक जब प्रदेश में भाजपा का शासन था तब ऐसी घटनाओं पर अशोक गहलोत सीधे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जिम्मेदार ठहराते थे। गहलोत का कहना था कि वसुंधरा राजे महारानी प्रवृत्ति की है इसलिए कानून व्यवस्था बिगड़ी हुई है। प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से सचिन पायलट तो भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। लेकिन अब डिप्टी सीएम बनकर सचिन पायलट चुप है और अशोक गहलोत दिल्ली में ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि राजस्थान की जनता की सुरक्षा कौन करेगा? जहां तक पुलिस का सवाल है तो पुलिस की असलियत 16 मई की रात को टोंक में सामने आ गई। टोंक जिले के पीपलू थाने का एक सिपाही एक रात में डेढ़ लाख रुपए की वसूली के साथ गिरफ्तार किया गया। यानि पुलिस को बलात्कार हत्या, दलित अत्याचार आदि की घटनाओं से कोई सरोकार नहीं है पुलिस तो अपने थाना क्षेत्र से बजरी के ट्रक, ट्रेक्टर, डम्पर आदि सुरक्षित निकालने में लगी हुई है। मुख्यमंत्री गहलोत का कहना है कि पुलिस और प्रशासन में अब राजनीतिक दखल नहीं होगा। यानि विधायकों और मंत्रियों की सिफारिश से कलेक्टर और एसपी नियुक्त नहीं होंगे। गहलोत ने भले ही हाईकोर्टके दबाव में यह बात कह दी हो, लेकिन राजस्थान में ऐसे ताकतवर विधायक है जो अपने इलाके में थानेदार तक की नियुक्ति करवाते हैं। प्रशासन और पुलिस को राजनीतिक दखल से मुक्त करना आसान नहीं है। बल्कि विधायकों और मंत्रियों को अफसरों की नियुक्ति कर खुश रखा जाता है। सरकार कांगे्रस की हो या भाजपा की। सरकारें विधायकों की सिफारिशों के आधार पर चलती हैं। यदि कोई विधायक किसी एसडीओ अथवा डीएसपी की नियुक्ति करवा लाया है तो फिर उस अधिकारी की वफादारी जनता के बजाए संबंधित विधायक के प्रति होती है। अच्छा हो कि सीएम अशोक गहलोत अपने ही प्रदेश में रह कर जनता को राहत दिलाने का काम करें। यह माना कि कुछ सरकारी काम चुनाव आचार संहिता की वजह से भी बाधित हुआ है। लेकिन आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने से सरकार को किसी ने भी नहीं रोका है। जब अखबारों में यह छपने लगे कि निकम्मेपन की हद है तो फिर सरकार को अपनी इमेज का अंदाजा लगा लेना चाहिए। अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बने चार माह ही हुए हैं। ऐसे में सरकार के लिए निकम्मा लिखा जाना बेहद ही गंभीर बात है।
एक थानेदार की अभिलाषा:
टोंक जिले के पीपलू थाने पर एसीबी ने जिस तरह से चौथ वसूली करते एक सिपाही को गिरफ्तार किया, उस घटना को लेकर राजस्थान के एक कविहृदयी प्रशासनिक अधिकारी ने कविता लिखी है। यह कविता सुप्रसिद्ध कवि स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी की कविता ‘पुष्प की अभिलाषाÓ पर आधारित है। चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं इसी तर्ज पर एक कविता जन्मी जिसमें एक थानेदार की अभिलाषा को दर्शाया है।
‘थानेदार की अभिलाषाÓ
चाह नहीं मैं हत्या के उलझे केसों को सुलझाऊं।
चाह नहीं रेपिस्टों को जेलों के अंदर बलवाऊं।।
चाह नहीं अपराधियों के मन में भय पैदा कर पाऊं ।
चाह नहीं कानून – व्यवस्था को बेहतर कर इठलाऊं।।
मुझे भेज देना ‘टाइगर जी उस थाने में छांट के एक।
बजरी की गाड़ी और ट्रौले जिस पथ दिन में गुजरे अनेक।।