मंत्रिमंडल के गठन का असर राजस्थान की राजनीति पर पड़ेगा।
मंत्रिमंडल के गठन का असर राजस्थान की राजनीति पर पड़ेगा। बेनीवाल, किरोड़ी, कर्नल बैसला जैसे नेताओं को संभालना होगा। वसुंधरा राजे का क्या होगा ?
30 मई को हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल के गठन का असर राजस्थान की राजनीति पर पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने नजरिए से राजस्थान के तीन भाजपा सांसदों को मंत्री पद की शपथ तो दिला दी है, लेकिन इधर राजस्थान में कई भाजपा नेताओं की आंखें गर्म हो गई हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन देने वाली आरएलपी के अध्यक्ष और नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल तो मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल ही नहीं हुए, जबकि बेनीवाल सुबह अटल समाधि स्थल पर मौजूद थे। राज्यसभा सांसद डाॅ. किरोड़ी लाल मीणा मंत्री नहीं बनाए जाने से असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला को अपेक्षित सम्मान की उम्मीद थी। असल में इन तीनों नेताओं का समर्थन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की भावनाओं के विरूद्व जाकर लिया। मीणा तो विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा में शामिल हो गए थे जबकि बेनीवाल के साथ लोकसभा चुनाव के मौके पर समझौता किया गया। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट का असर गुर्जरों पर कम करने के लिए कर्नल बैसला का भी सहयोग लिया गया। भाजपा द्वारा बनाई रणनीति की वजह से कांग्रेस को प्रदेश की सभी सीटों पर हरा दिया गया, लेकिन मंत्रिमंडल के गठन के बाद राजस्थान में भाजपा की राजनीति में उबाल की संभावना है। प्रदेश भाजपा में फिलहाल ऐसा कोई नेता नहीं आ रहा है जो सबको एक सूत्र में बांध सके। जहां तक प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी का सवाल तो उनकी उपस्थिति सिर्फ दर्शनीय है। यदि प्रदेशाध्यक्ष का प्रभाव होता तो भाजपा के अन्य प्रदेशाध्यक्षों की तरह केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाते। सब जानते हैं कि सैनी को किन परिस्थितियों में अध्यक्ष बनाया गया था। यह माना कि लोकसभा चुनााव में नरेन्द्र मोदी की वजह से बंपर जीत मिली, लेकिन जिन नेताओं को मतदान से पहले लाया गया तो कीमत तो मांगेगे ही। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और राजस्थान में अशोक गहलोत के सामने मध्यप्रदेश के कमलनाथ जैसे हालात नहीं है। गहलोत सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। हालांकि किसी सांसद की नाराजगी से केन्द्र सरकार पर फर्क पड़ने वाला नहीं है, लेकिन फिर भी समर्थन देने वालों का सम्मान तो होना ही चाहिए।
कैलाश चैधरी को बनाया मंत्री:
बाडमेर जैसलमेर संसदीय क्षेत्र के सांसद कैलाश चैधरी को राज्यमंत्री बनाया गया है। हालांकि लोकसभा चुनाव में सभी जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए, लेकिन फिर भी चैधरी को जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व माना जा रहा है। यही बात नागौर के सांसद बेनीवाल और पाली के पीपी चैधरी को बुरी लग रही है। कैलाश चैधरी पहली बार सांसद बने है जबकि पीपी चैधरी दूसरी बार। पीपी तो मोदी एक में भी मंत्री रहे थे। बेनीवाल के समर्थक तो अपने नेता को सबसे बड़ा जाट नेता मानते है। बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल मंत्री बनने के बाद भ् ाी पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं बताए जाते। तीसरी बार सांसद बने और मोदी एक में मंत्री रहे। मेघवाल को उम्मीद थी कि केबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। लेकिन मेघवाल को स्वतन्त्र प्रभार का राज्यमंत्री भी नहीं बनाया गया है। अलबत्ता जोधपुर के सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत जरूरत संतुष्ट हैं। शेखावत को केबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई है। शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष न बनाए जाने की भरपाई की गई है।
राठौड़ हो सकते हैं प्रदेशाध्यक्ष:
जयपुर ग्रामीण के सांसद और मोदी एक में मंत्री रहे राज्यवर्धन सिंह राठौड़ अब भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष हो सकते हैं चूंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए पांच वर्षों तक संघर्ष करना पड़ेगा। इसके लिए ऊर्जावान नेता चाहिए। राठौड़ पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों का भरोसा है।
राजे का क्या होगा ?
राजस्थान की राजनीति में अब यह सवाल उठ रहा है कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का क्या होगा ? राजे की न तो लोकसभा चुनाव में और न मंत्रिमंडल के गठन में चली। यानि राजस्थान में भाजपा की राजनीति अब वसुंधरा राजे के बगैर चल रही है। पांच माह पहले विधानसभा चुनाव तक राजे के बगैर भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता था, लेकिन अब राजे के बगैर सब हो रहा है। राजे की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पांच बार के सांसद बेटे दुष्यंत सिंह को मंत्री नहीं बनवा सकी है, जबकि पहली बाार सांसद बने कैलाश चैधरी मंत्री बन गए हैं। इतना ही नहीं जिन गजेन्द्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने दिया, आज वो ही शेखावत केबिनेट मंत्री है। असल में राजे ने राजनीति में जो बोया, अब उसी को काट रही हैं। किसी भी राजनेता को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि उसके बगैर राजनीति नहीं होगी। यह बात अलग है कि वसुंधरा राजे की जिद्द की वजह से भाजपा को राजस्थान में सरकार गवानी पड़ी।
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