राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही का यू-ट्यूब पर सीधा प्रसारण होगा।
राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही का यू-ट्यूब पर सीधा प्रसारण होगा।
पत्रकार आएं तो स्वागत, न आएं तो भी स्वागत।
विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की दो टूक।
भास्कर और पत्रिका के बगैर कुछ भी नहीं।
28 जून को राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने दो टूक शब्दों में कहा कि सदन की कार्यवाही के दौरान पत्रकारों पर जो पाबंदियां लंगाई गई है उनमें कोई बदलाव नहीं होगा। जोशी ने सदस्यों को बताया कि सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण यू-ट्यूब पर लाइव होगा। आम जनता हर विधायक की बात को सुन सकेगी। पत्रकार कवरेज के लिए आएं तो स्वागत और न आएं तो भी स्वागत है। जो पाबंदियां लगाई गई है उस पर पत्रकारों की समिति के सदस्यों ने ही सहमति दी हैं। मैं अनुशासित अध्यक्ष बनना चाहता हंू लोकप्रिय अध्यक्ष नहीं। ऐसे भी पत्रकार है जिन्हें गत दस वर्षों से विधानसभा के स्थायी पास जारी हो रहे हैं। इस बार भी 600 पास पत्रकारों के लिए जारी किए गए हैं। वहीं जयपुर के पत्रकारों ने 28 जून को जोशी के रवैये के विरुद्ध मौन जुलूस निकाल कर राज्यपाल को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में आरोप लगाया कि विधानसभा में पत्रकारों के लिए इमरजेंसी जैसे हालात हो गए हैं।
भास्कर-पत्रिका के बगैर कुछ भी नहीं:
पत्रकारों ने 27 जून को विधानसभा परिसर में अध्यक्ष जोशी के कक्ष के बाहर धरना दिया था, लेकिन इस धरने का कोई असर नहीं हुआ। इसके विपरित जोशी ने 28 जून को दो टूक शब्दों में कह दिया कि पत्रकार न आएं तो भी स्वागत हैं। असल में जोशी को पता है कि कौन से पत्रकार विरोध कर रहे हैं और ऐसे पत्रकारों की क्या स्थिति हैं। असल में विधानसभा में प्रेस गैलरी से संबंधित पत्रकारों की जो समिति बनाई जाती है उसमें किसी पत्रकार की वरिष्ठता या अनुभव को नहीं देखा जाता है। यह समिति प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बैनर के अनुरूप बनाई जाती है। अब चूंकि यू-ट्यूब चैन पर लाइव प्रसारण हो रहा है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को कोई शिकायत है ही नहीं। जहां तक प्रिंट मीडिया में भास्कर और पत्रिका का सवाल है तो इन दोनों के हाथ बहुत लम्बे हैं। जो पत्रकार विरोध कर रहे हैं वे अच्छी तरह समझ लें कि भास्कर और पत्रिका समूह की सहमति के बाद ही विधानसभा में पाबंदियां लगाई गई हैं। अब यदि इन दोनों अखबारों का सहयोग नहीं मिल रहा है तो फिर कोई दबाव भी नहीं पड़ेेगा।
गत भाजपा की सरकार में जब काला कानून लाया गया तो राजस्थान पत्रिका ने अभियान चला कर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की खबरों का बहिष्कार कर दिया था। इसी प्रकार इस बिल की आलोचना करने में भास्कर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। यह बात यही है कि बिल को सोशल मीडिया और अन्य मीडिया संस्थानों ने भी विरोध किया, लेकिन असली दबाव पत्रिका और भास्कर का रहा, इसलिए भाजपा सरकार को बिल वापस लेना पड़ा। असल में राजधानी जयपुर में राज्य स्तर के कई पत्रकार संगठन बने हुए हैं। लेकिन ऐसे पत्रकार संगठनों में भास्कर और पत्रिका के पत्रकार शामिल नहीं है। ऐसे संगठनों से जुड़े पत्रकार ही चाहते हैं कि उन्हें पहले की तरह विधानसभा में पासेज मिले और इधर-उधर आराम से जा सके। जो वरिष्ठ पत्रकार इन दिनों किसी भी मीडिया संस्थान से जुड़े हुए नहीं है उन्होंने ने भी स्थाई पासेज जारी करवा रखे हैं। सवाल उठता है कि जिन पत्रकारों की खबरें मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित ही नहीं होती वे विधानसभा में क्या करते हैं? इस मामले में पत्रकार संगठनों को भी आत्मविश्लेषण करना चाहिए। यह कटू सत्य है कि जब किसी जिला स्तर पर कार्यरत पत्रकार के साथ कोई अप्रिय घटना होती है तो जयपुर में चल रहे राज्य स्तरीय संगठन के पदाधिकारी कोई मदद नहीं करते। जिला स्तर के पत्रकार को अपने दम पर ही संघर्ष करना होता है।
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