तीन तलाक पर बिखर गया विपक्ष।
यह देश के लिए सकारात्मक संदेश है।
किसी की हार और जीत नहीं देखी जानी चाहिए।
30 जुलाई को तीन तलाक बिल राज्यसभा में भी पास हो गया और अब राष्ट्रपति के आदेश के बाद बिल कानून बन जाएगा। जिस किसी मुस्लिम पुरुष ने एक साथ तीन बार तलाक कह कर अपनी पत्नी को घर से निकाला उसे अब जेल जाना होगा। यह तभी होगा जब उसकी पत्नी या रिश्तेदार पुलिस में मुकदमा दर्ज करवाए। अनेक मुस्ल्मि महिलाएं इस कानून की लम्बे अर्से से मांग कर रही थीं, लेकिन जो राजनीतिक मुसलमानों के वोट पर जीत कर आते हैं वे लगातार विरोध करते रहे। भाजपा एक मात्र राजनीतिक दल रहा जो तीन तलाक बिल के पक्ष में था। इसे भाजपा की रणनीति ही कहा जाएगा कि राज्यसभा में बहुमत नहीं होते हुए भी बिल को 84 के मुकाबले 99 मतों से पारिज करवा लिया। बिल को स्वीकृत करवाने में अखिलेश यादव की सपा, मायावती की बसपा, शरद पवार की एनसीपी, राहुल गांधी की कांग्रेस, ममता बनर्जी की टीएमसी, लालू प्रसाद की आरजेडी आदि पार्टियों के सांसदों का सहयोग मिला। यदि ये नेता अपने सांसदों को छूट नहीं देते तो 22 सांसद वोटिंग के समय अनुपस्थित नहीं रहते। भाजपा की सहयोगी अन्ना द्रमुक और जेडीयू ने बहिष्कार कर बिल को पास करवाने में मदद की। अब जब तीन तलाक बिल पर कांग्रेस से लेकर एनसीपी तक की पोल खुल गई तो यह माना जाना चाहिए कि यह देश के लिए एक सकारात्मक संदेश है। हर राजनीतिक चाहता है कि मुस्लिम महिलाओं को अधिकार मिले। अब इस मामले में किसी की हार और जीत नहीं तलाशी जानी चाहिए। भले ही भाजपा की रणनीति रही हो, लेकिन बिल को स्वीकृत करवाने में सभी दलों के सांसदों का सहयोग रहा है। इसलिए बिल को पास करवाने के लिए कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों का धन्यवाद किया जाना चाहिए। कुछ मुसलमानों को खुश करने के लिए कांग्रेस के गुलामनबी आजाद जैसे नेताओं ने राज्यसभा में विरोध का दिखावा किया हो, लेकिन ऐसे नेता भी बिल को पास करवाना चाहते थे। आजाद इस समय राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता है। यदि आजाद का सहयोग नहीं होता तो विपक्ष के 22 सांसद अनुपस्थित नहीं रहते। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बिल से तीन तलाक की पीडि़त महिलाओं को राहत मिलेगी। अब किसी मुल्ला-मौलवी के फतवे से आरोपी बच नहीं पाएगा। मुस्लिम महिला भी आरोपी पति के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा सकेगी।
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