एनएचएम भर्ती प्रकरण में अब चुप क्यों हैं राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा?
एनएचएम भर्ती प्रकरण में अब चुप क्यों हैं राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा?
ढाई हजार युवा नौकरी से वंचित। केन्द्र सरकार भी लगाएगी जुर्माना।
आईएएस समित शर्मा अपनी प्रक्रिया पर आज भी कायम।
नीट 2019 को लेकर भी सरकार की छवि खराब।
नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत कम्युनिटी हेल्थ वर्कर के ढाई हजार पदों पर भर्ती के लिए राजस्थान में गत 22 जून को लिखित परीक्षा होनी थी, लेकिन प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के विरोध के चलते परीक्षा को 20 जून को ही रद्द कर दिया गया। तब रघु ने और स्वास्थ्य सचिव समित शर्मा ने परीक्षा के लिए राज्य सरकार से कोई अनुमति नहीं ली। रघु का यह भी आरोप रहा कि परीक्षा की प्रक्रिया में पारदर्शिता और ईमानदारी नहीं है। रघु ने न केवल परीक्षा को रद्द करवाया, बल्कि जांच कमेटी भी गठित कर दी। इतना ही नहीं एनएचएम के एमडी समित शर्मा का तबादला भी करवा दिया। अब दो माह गुजर गए हैं, लेकिन रघु शर्मा ने चुप्पी साध रखी है। सवाल उठता है कि जब आरोप लगाए थे, तो अब साबित क्यों नहीं करते? असल में कुछ दिनों में रघु शर्मा के आरोपों की पोल खुल गई थी। रघु का यह बयान भी झूठा निकला कि उन्हें परीक्षा की जानकारी नहीं थी। परीक्षा को लेकर रघु ने चिकित्सा मंत्री की हैसियत से ट्वीटर पर टिप्पणी। इतना ही नहीं परीक्षा से पूर्व चिकित्सा कर्मियों के जो ज्ञापन प्राप्त हुए उन्हें रघु ने एनएचएम के एमडी समित शर्मा के नाम मार्क किया। झूठ बोल कर चिकित्सा मंत्री ने परीक्षा क्यों रद्द कर करवाई, यह तो वे ही जाने, लेकिन प्रदेश के ढाई हजार युवाओं को नौरी से वंचित करने के साथ-साथ केन्द्र सरकार से मिलने वाली राशि भी रुकवा दी। ढाई हजार युवाओं का वेतन भी केन्द्र सरकार द्वारा देय था। हेल्थ वर्करों को ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा का कार्य करना था। यानि चिकित्सामंत्री की वजह से प्रदेश के ग्रामीण भी चिकित्सा सुविधाओं से वंचित हो गए। नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत जो राज्य सरकार अच्छा कार्य करती है उसे केन्द्र की ओर से प्रोहत्सान राशि भी मिलती है, लेकिन जो राज्य योजना के अनुरूप कार्य नहीं करते, उन पर जुर्माना यानि निर्धारित राशि में से 20 प्रतिशत तक की कटौती की जाती है। चूंकि राजस्थान में ढाई हजार हेल्थ वर्करों की भर्ती नहीं हो सकी है, इसलिए जुर्माना भी लगेगा। राजस्थान के लोगों को अच्छी सेवा का वायदा कर कांग्रेस सत्ता में आई है, लेकिन चिकित्सा विभाग में उल्टा हो रहा है।
प्रक्रिया पर आज भी कायम है समित शर्मा:
चिकित्सा महकमे से तबादले के बाद आईएएस समित शर्मा ने प्रदेश के श्रम आयुक्त का पद संभाल लिया है और वे पूरे मनोयोग से प्रदेश के श्रमिकों से जुड़ी योजनाओं की क्रियान्विति में लग गए हैं, लेकिन शर्मा को इस बात का मलाल है कि जो कार्य पूरी ईमानदारी और पारदर्शीता के साथ किया उस पर अंगुली उठाई गई। प्रदेश के ढाई हजार युवाओं को नौकरी मिल जाए, इसके लिए चुनाव आयोग तक से अनुमति ली गई। और कोई वेतन भोगी आईएएस होता तो लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का बहाना कर परीक्षा स्थगित करवा लेता। रघु शर्मा चिकित्सा मंत्री की हैसियत से चाहे जो आरोप लगाएं, लेकिन राज्य सरकार के प्रस्ताव पर ही 31 जनवरी 2019 को भारत सरकार ने 2500 हेल्थ वर्करों की भर्ती की स्वीकृति दी थी। इसको लेकर दिल्ली में 15 जनवरी को नेशनल हेल्थ मिशन की जो बैठक हुई उसमें राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकित्सा रोहित कुमार भी मौजूद थे। इसके बाद रोहित कुमार की अध्यक्षता में ही एनएचएम की कार्यकारी कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में भर्ती की प्रक्रिया निर्धारित की गई। ऑन लाइन आवेदन मांगने के बाद ही 22 जून को परीक्षा निर्धारित की गई। यदि परीक्षा गुपचुप तरीके से करवाई जाती तो दैनिक भास्कर राजस्थान पत्रिका जैसे बड़े अखबारों में विज्ञापन नहीं दिया जाता। भर्ती का विज्ञापन देकर अभ्यर्थियों से आवेदन मांगे गए। इतना जरूर है कि प्रक्रिया में किसी दबाव और सिफारिश को नहीं माना गया। सरकार के जो नियम थे उसी के मुताबिक प्रक्रिया को अपनाया गया। इतनी मेहनत, ईमानदारी और पारदर्शिता दिखाने के बाद भी मुझे अकेले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया।
मुख्यमंत्री कर चुके हैं प्रशंसा:
आईएएस समित शर्मा के बारे में चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा कुछ भी राय रखते हों, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समित शर्मा की ईमानदार और मेहनत के कायल हैं। विधानसभा के बजट सत्र के समापन पर गहलोत ने प्रदेश में नि:शुल्क दवा योजना के संदर्भ में कहा कि समित शर्मा उन आईएएस में से हैं जो होली दीवाली मिठाई का डिब्बा भी किसी से नहीं लेते हैं। मुख्यमंत्री के इस कथन के बाद समित शर्मा को किसी अन्य से ईमानदारी का सर्टिफिकेट लेने की जरुरत नहीं है।
नीट 2019 को लेकर भी विवाद:
रघु शर्मा के अधीन वाले चिकित्सा महकमे द्वारा आयोजित नीट 2019 की प्रवेश परीक्षा के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई उस पर 16 अगस्त को हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। एमबीबीएस में एडमिशन के मामले में मेडिकल कॉलेजों में 17 व 18 अगस्त को मॉपअप राउंड की काउंसलिंग होनी थी, लेकिन अब काउंसलिंग पर रोक लग गई है। सरकारी और गैर सरकारी कॉलेजों में 705 सीटे खाली रह गई है। आरोप है कि प्रक्रिया में मंत्री का दखल रहा, इसलिए नियमों में बदलाव किए गए। इससे परेशान अभ्यर्थियों ने अदालत की शरण ली और काउंसलिंग पर रोक लगवा दी। सवाल उठता है कि चिकित्सा विभाग में सभी गड़बडिय़ां मंत्री स्तर पर क्यों हो रही है, जाहिर है कि मंत्री अपना दखल चाहते हैं। चिकित्सा विभाग में इन दिनों जो घटनाएं घट रही है, उससे कांग्रेस सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
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