कांग्रेस के मौजूदा हालातों में क्या सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से हटाया जा सकता है?

कांग्रेस के मौजूदा हालातों में क्या सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से हटाया जा सकता है? अविनाश पांडे की सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अटकलें। 

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30 अगस्त को राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे ने कांगे्रस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से दिल्ली में मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद पांडे ने कहा कि प्रदेश में होने वाले स्थानीय निकायों और पंचायतीराज के चुनावों को लेकर विचार विमर्श हुआ। पांडे ने माना कि प्रदेशाध्यक्ष के पद को लेकर भी बात हुई है। सूत्रों की माने तो सोनिया गांधी ने प्रदेशाध्यक्ष को लेकर पांडे के साथ लम्बी मंत्रणा की है। असल में मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट राज्य सरकार में डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 25 सीटों पर हार के बाद कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद की मांग उठने लगी। अब जब श्रीमती सोनिया गांधी फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गई है तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की स्थिति को और मजबूत माना जा रहा है। हालांकि प्रदेशाध्यक्ष के मुद्दे पर गहलोत ने सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है। गहलोत ने सिर्फ इतना ही कहा है कि यह काम राष्ट्रीय नेतृत्व के देखने का है। सब जानते हैं कि गहलोत एक मजे हुए राजनीतिज्ञ हैं। विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में करना जानते हैं। सचिन पायलट और उनके समर्थकों के लाख दबाव के बाद भी राजनीतिक नियुक्तियां नहीं की गई है। गत 19 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समारोह में पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से कार्यकर्ताओं की पीड़ा भी मुख्यमंत्री के सामने रखी। तब भी यही लगा कि दोनों के बीच मन मुटाव तो है ही। लेकिन सवाल उठता है कि क्या मौजूदा हालातों में पायलट को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाया जा सकता है? प्रदेश में नवम्बर में कुछ स्थानीय निकायों तथा फिर जनवरी में पंचायतीराज के चुनाव होने हैं। पायलट गत पांच वर्ष से प्रदेशाध्यक्ष के पद पर विराजमान हैं। यही वजह है कि पायलट ने सभी जिलाध्यक्षों के पद पर अपने चहेतों की नियुक्ति कर रखी हैं। यानि संगठन पर पूरी तरह पायलट का कब्जा है। लेकिन सब जानते हैं कि कार्यकर्ता की वफादारी सत्ता के साथ होती है। चूंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अशोक गहलोत बैठे हैं, इसलिए मानसिकता बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। वैसे भी गहलोत की मिलन सारिता का कोई मुकाबला नहीं है। गहलोत पहले ही कह चुके हैं कि तीन बार प्रदेशाध्यक्ष और चार बार केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बननने का अवसर मिला था। अब गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। यदि सचिन पायलट से प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाया जाता है तो यह कांग्रेस के बड़ी बात होगी। सवाल यह भी है कि क्या पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष के पदों में से एक पद चुनने की छूट दी जाएगी? सूत्रों की माने तो पायलट प्रदेशाध्यक्ष के पद का चयन करेंगे? क्योंकि भविष्य में प्रदेशाध्यक्ष ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच सकता है। कांग्रेस के दिल्ली दरबार में एप्रोच रखने वालों का मानना है कि पायलट को ऐसी छूट नहीं मिलेगी। यानि पायलट सिर्फ डिप्टी सीएम ही बने रहेंगे। पायलट को अपनी राजनीति डिप्टी सीएम के पद से ही चलानी होगी। यह भविष्य ही बताएगा कि पंचायतीराज पीडब्ल्यूडी, आईटी आदि विभागों के मंत्री रह कर पायलट अपनी राजनीति को कितना चला पाएंगे। पर इतना जरूर है कि आने वाले दिनोंमें कांग्रेस की राजनीति में अशोक गहलोत की एक छत्र चलेगी।
एस.पी.मित्तल) (31-08-19)
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