सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के तबादलों पर विद्यार्थियों का हंगामा क्यों?

सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के तबादलों पर विद्यार्थियों का हंगामा क्यों?
राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में अजीब स्थिति।

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3 अक्टूबर को राजस्थान के दौसा में एक सरकारी स्कूल की छात्राओं ने स्कूल के शिक्षकों के तबादलों पर धरना प्रदर्शन किया। उमस भरी गर्मी की वजह से प्रदर्शन के दौरान कई छात्राएं बेहोश हो गई। अनेक छात्राओं को प्राथमिक इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। दौसा के जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम मीणा का कहना है कि कुछ स्कूलों में शिक्षकों के दौरान ऐसा हंगामा करवाया जा रहा है। अब ऐसे शिक्षकों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई जाएगी। दौसा जैसे हालात प्रदेशभर में बने हुए हैं। शिक्षा विभाग ने गत दिनों बड़े पैमाने पर शिक्षकों के तबादले किए हैं। जिन शिक्षिकों का तबादले हुए हैं। उनका कहना है कि सरकार ने द्वेषतापूर्ण तरीके से तबादले किए हैं। कई स्कूलों में विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों ने तालाबंदी कर दी है। अपने शिक्षकों का तबादल निरस्त करवाने की मांग को लेकर छात्र छात्राए धरने पर बैठे हुए हैं और अभिभावकों ने स्कूल में ताला लगा दिया है। इससे विद्यार्थियों की पढ़ाईभी प्रभावित हो रही है। वहीं शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा ने कहा है कि तबादले शिक्षा विभाग की नीति के अनुरूप हुए हैं। वहीं पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि तबादलों में पारदर्शिता नहीं है और भेदभाव बरता गया है, इसलिए विद्यार्थियों को अभिभावकों में रोष है। किसी भी विभाग में तबादला सामान्य प्रक्रिया है। सरकार बदलती है तब ऐसे तबादले होते ही है। भाजपा के शासन में राजनीतिक सिफारिशों के आधार पर जिन शिक्षकों के तबादले हुए उन्हें अब कांग्रेस के राज में इधर-उधर किया जा रहा है, भाजपा के शासन में यह व्यव्स्था थी कि क्षेत्रीय विधायकों की सिफारिश पर तबादले हुए, इसी प्रकार अब कांग्रेस सरकार में विधायकों के साथ-साथ गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारे हुए प्रत्याशियों की सिफारिश पर ही शिक्षकों के तबादले किए जा रहे हैं। जब तबादले सामान्य प्रक्रिया है तो फिर हंगामा क्यों करवाया जा रहा है? सरकारी स्कूलों की स्थिति पहले से ही बहुत दयनीय है। इस पर यदि अब शिक्षकों के लिए विद्यार्थी धरना प्रदर्शन करेंगे तो हालात और बिगड़ेंगे। जहां तक पढ़ाई का सवाल है तो सरकारी स्कूलों के शिक्षक एक समान हैं। सरकारी स्कूलों की जो बिगड़ी हुई व्यवस्था है उसी के अंतर्गत पढ़ाई होती है। अधिकांश शिक्षक तो नेतागिरी मे लगे रहते हैं। शिक्षकों के इतने संघ बन गए हैं कि राजनीति प्रत्येक सरकारी स्कूल में हो रही है। ऐसे शिक्षक संघों को राजनेताओं का भी समर्थन रहता है। कांग्रेस के शासन में कांग्रेस विचार धारा वले शिक्षक संघ सक्रिय होते हैं, जबकि भाजपा के शासन में भाजपा विचार धारा वाले शिक्षक संघ सक्रिय रहते हैं।  सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षकों की राजनीति की वह से विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसा नहीं हो। प्रदेश भर मेंजो हालात बिगड़े हुए हैं उन पर शीघ्र नियंत्रण पाना चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (03-10-19)
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