तो क्या आम जनता में राजस्थान की कांग्रेस सरकार की छवि खराब हो गई है?
तो क्या आम जनता में राजस्थान की कांग्रेस सरकार की छवि खराब हो गई है?
निकाय प्रमुखों का चुनाव अब पार्षद ही करेंगे।
आपातकाल में जेल गए भाजपाइयों की पेंशन भी बंद।
14 अक्टूबर को राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने अपना पहले का ही फैसला पलट दिया है। अशोक गहलोत के नेतृत्व में दिसम्बर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने पर फैसला लिया गया कि स्थानीय निकायों के प्रमुखों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होगा। यानि नगर पालिका के अध्यक्ष, नगर परिषद के सभापति और नगर निगम के मेयर के चुनाव में आम मतदाता वोट डालेंगे। लेकिन अब 14 अक्टूबर को हुई गहलोत मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया गया कि जिस प्रकार भाजपा के शासन में पार्षद अपने निकाय प्रमुखों का चुनाव करते थे। उसी प्रकार अब कांग्रेस के शासन में भी होगा। यानि नवम्बर में जिन 52 स्थानीय निकायों में चुनाव होने हैं, वहां अब निर्वाचित पार्षद ही अपने प्रमुख का चुनाव करेंगे। सरकार ने 52 निकायों में वार्डों के आरक्षण का निर्धारण भी कर दिया है। अब निकाय प्रमुखों के आरक्षण का निर्धारण 20 अक्टूबर को किया जा सकता है।
तो क्या डर गई सरकार:
राजस्थान में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की सभी 25 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। यहां तक कि जोधपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी चुनाव हार गए। सभी 25 संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस के प्रत्याशी लाखों मतों के अंतर से पराजित हुए। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दोबारा से केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी तो जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला लिया गया। माना जा रहा है कि मोदी सरकार के इस फैसले का असर आम मतदाता पर जबर्दस्त हैं। ऐसे में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आम मतदाता से सामना करने से डर रही है। पूरे शहर के चुनाव में आम मतदाता पर 370 जैसे मुद्दों का असर हो सकता है, जबकि वार्ड स्तर के चुनाव में प्रत्याशी की छवि का भी असर होगा। चूंकि राज्य में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए पार्षदों के निर्वाचन के बाद जोड़तोड़ की नीति अपना कर अनेक निकायों में कांग्रेस को सफलता मिल सकती है। अब देखना होगा कि कांग्रेस की इस रणनीति का भाजपा किस तरह मुकाबला करती है।
मीसा बंदियों की पेंशन बंद:
आपातकाल के दौरान मीसा कानून में बंद रहे भाजपा कार्यकर्ताओं की पेंशन को कांग्रेस सरकार ने बंद करने का फैसला लिया है। 14 अक्टूबर को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया को जानकारी देते हुए नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि मीसा बंदियों को देश के स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पेंशन नहीं दी जा सकती है। देश की आजादी में योगदान देने वालों को ही पेंशन की व्यवस्था है। इसलिए सरकार ने एक हजार 130 मीसा बंदियों की पेंशन सुविधा को बंद कर दिया है। मीसा बंदियों को पेंशन देने का निर्णय भाजपा की सरकार में लिया गया था।
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