अजमेर के कांग्रेस नेताओं के पास अब मेयर बनने का भी विकल्प।
अजमेर के कांग्रेस नेताओं के पास अब मेयर बनने का भी विकल्प।
भाजपा के धर्मेन्द्र गहलोत भी बन सकते हैं तीसरी बार मेयर।
राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ही अजमेर के कांग्रेस नेताओं के मन में अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने की इच्छा रही। लेकिन सरकार और संगठन में आपसी तालमेल के अभाव में राजनीतिक नियुक्तियों का मामला टलता रहा है। हालांकि सरकार बने दस माह पूरे हो रहे हैं। लेकिन अब जब सरकार ने पार्षद बने बगैर ही निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे का फैसला किया है तब अजमेर के कांग्रेस नेताओं के पास मेयर बनने का विल्कप भी आ गया है। प्राधिकरण के अध्यक्ष से ज्यादा महत्व रखता है, नगर निगम के मेयर का पदा। यदि मेयर चुनाव में टिकिट मिल जाए तो आसानी से मेयर बना जा सकता है। हालाकि लॉटरी निकलने के बाद तय होगा कि किस वर्ग का मेयर बने, लेकिन कांग्रेस के नेता अपनी सरकार के फैसले से उत्साहित हैं। जो नेता अब तक प्राधिकरण के अध्यक्ष पर नजर लगाए हुए थे, उनकी नजर अब मेयर पद पर भी लग गई है। ऐसे नेताओं का मानना है कि पार्षदों का बहुमत नहीं होने पर भी जोड़ तोड़ कर मेयर बना जा सकता है। सरकार के ताजा फैसले से शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन, कांग्रेस के प्रदेश महासचिव ललित भाटी, गत विधानसभा चुनाव में उत्तर क्षेत्र के प्रत्याशी रहे महेन्द्र सिंह रलावता, पूर्व विधायक और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह चुके डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, चार बार के पार्षद सुनील केन, नौरत गुर्जर, प्रताप यादव, दीपक हासानी, समीर शर्मा, श्रवण टोनी, गिरधर तेजवानी, सुरेश गर्ग आदि उत्साहित हैं। कांग्रेस के नेता मेयर बनने की अपनी संभावनाओं को तलाश रहे हैं। अजमेर में नगर निगम के चुनाव अगले वर्ष अगस्त में होंगे, उम्मीद है कि दिसम्बर, जनवरी में पंचायतीराज के चुनाव के बाद प्राधिकरण के अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी जाए। जो नेता प्राधिकरण के अध्यक्ष नहीं बनेंगे, उन्हें मेयर बनाने का भरोसा दिलाया जा सकता है।
गहलोत बन सकते हैं तीसरी बार मेयर:
सब जानते हैं कि राज्य सरकार का ताजा फैसला निकाय प्रमुखों के चुनाव में धनबल और जोड़ तोड़ की राजनीति को बढ़ावा देगा। जिस बाहुबली के पास सबसे ज्यादा पार्षद होंगे, वो ही प्रमुख बन जाएगा। भले ही ऐसा पार्षद किसी दल के उम्मीदवार के तौर पर जीता हो। राज्य की कांग्रेस सरकार ने अपने राजनीतिक फायदे को देखते हुए पार्षद चुने बगैर ही अध्यक्ष, सभापति और मेयर का चुनाव लडऩे की छूट दे दी हैं। लेकिन लोकसभा और विधानसभा की तरह दल बदल विरोधी कानून लागू नहीं किया है। इसलिए यदि कोई बाहुबली निर्वाचित पार्षदों को अगवा कर अपने ठिकाने पर ले गया तो वही निकाय प्रमुख बन जाएगा। सब जानते हैं कि पार्षदों को अपने पक्ष में रखने की सभी तरकीब अजमेर के मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को आती है। गहलोत भले ही भाजपा के मेयर हों, लेकिन कांग्रेस के पार्षद गहलोत को मेयर के तौर पर ज्यादा पसंद करते हैं। हालांकि गहलोत कोई बाहुबली राजनेता नहीं है, लेकिन इसे उनकी राजनीतिक कुशलता ही कहा जाएगा कि कांग्रेस पार्षद कभी विरोध नहीं करते। 60 में से 22 कांग्रेस के पार्षद हैं, लेकिन सभी कांग्रेसी पार्षद गहलोत को पसंद करते हैं। ऐसे में यदि मेयर का पद सामान्य या ओबीसी वर्ग के लिए निर्धारित होता है तो गहलोत तीसरी बार भाग्य आजमा सकते हैं। कोई सवा चार साल पहले हुए मेयर के चुनाव में भाजपा के पार्षद सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने ही बगावत कर कांग्रेस का समर्थन लेकर गहलोत को चुनौती दी थी। तब गहलोत ने तबके शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी के साथ मिलकर न केवल बगावत को कुचला, बल्कि कांग्रेस पार्षदों के वोट भी हासिल किए। यानि कांग्रेस पार्षदों के वोट हासिल करने का गहलोत को पुराना अनुभव है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर गहलोत पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर निलंबन की तलवार लटकाई गई, लेकिन गहलोत आज भी अजमेर के मेयर हैं। असल में गहलोत को हर विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करना आता है। वैसे भाजपा में भी मेयर बनने की लम्बी लाइन है। जो कभी सांसद और विधायक के दावेदार थे, वे अब मेयर पद पर नजर लगाए हुए हैं। ऐसे भाजपा नेताओं में शहर भाजपा के अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा, भंवर सिंह पलाड़ा, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन, पूर्व जिलाध्यक्ष अरविंद यादव, डॉ. प्रियशील हाड़ा, आनंद सिंह रजावत, सुभाष काबरा, एडवोकेट गजवीर सिंह चूंडावत, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, सोमरत्न आर्य, पार्षद जेके शर्मा, रमेश सोनी, नीरज जैन आदि शामिल हैं।
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