सुन्नी वक्फ बोर्ड को मंदिर निर्माण के पक्ष में करना सरकार की बड़ी उपलब्धि।

सुन्नी वक्फ बोर्ड को मंदिर निर्माण के पक्ष में करना सरकार की बड़ी उपलब्धि। इधर, कोर्ट में वकील लड़ते रहे, उधर मध्यस्थता कमेटी के सामने बोर्ड के पदाधिकारियों ने सहमति  जता दी। जब आपसी समझौते से हाल निकल गया तो अब विवाद क्यों?

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17 अक्टूबर को सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अयोध्या के राम जन्म भूमि विवाद में मध्स्थता कमेटी की रिपोर्ट का अध्ययन किया। कोई डेढ़ सौ वर्ष पुराने इस प्रकरण में मध्यस्थता कमेटी की रिपोर्ट बहुत मायने रखती है, क्योंकि इसी रिपोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड का हलफनामा लगा हुआ है। इस हलफनामे में बोर्ड ने विवादित भूमि से अपना हक छोडऩे की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता में मध्यस्थता कमेटी बनाई थी। सभी पक्ष कह रहे थे कि आपसी समझौते से विवाद का हल निकलना चाहिए। लेकिन टीवी चैनलों पर जिस तरह मुस्लिम प्रतिनिधि विरोध जता रहे थे, उससे नहीं लगता था कि आपसी सहमति बनेगी, लेकिन इसे केन्द्र की नरेन्द्र मोदी और यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार की सफलता ही माना जाना चाहिए कि आपसी सहमति से विवाद खत्म हो गया है। इस पूरे प्रकरण में महत्वपूर्ण बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में वकील लड़ते रहे और सुन्नी वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों ने समझौता कर लिया। अब जब बोर्ड ने 2.77 एकड भूमि पर से अपना मालिकाना हक त्याग दिया है तो विवाद की कोई गुंजाइश ही नहीं है। बोर्ड विवादित भूमि पर हक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था। जब कोर्ट से मिले हक को ही छोड़ा जा रहा है तो अयोध्या में भगवान राम के जन्म स्थान पर मंदिर निर्माण की सभी बाधाएं दूर हो गई है। अब कुछ लोग सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहमति पर ऐतराज कर रहे हैं। असल में ऐसे लोग देश में अमन चैन नहीं चाहते हैं। ये वो ही लोग हैं जो जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध कर रहे हैं। आलोचना अपनी जगह है, लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को मंदिर निर्माण पर सहमत करवाना कोई आसान काम नहीं था। हालांकि समझौते के प्रयास कांग्रेस के शासन में भी हुए, लेकिन नियत साफ नहीं होने की वजह से दोनों पक्षों में सहमति नहीं बन सकती। अब जब भगवान राम के मंदिर पर सहमति बन गई है तो सभी को स्वागत करना चाहिए। अब कोई तर्क और कुतर्क मायने नहीं रखता है। जब विवादित भूमि के मालिक ने ही अपना हक छोड़ दिया है, तब विरोध की कोई गुंजाइश नहीं हंै। सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहमति का सभी पक्षों को स्वागत करना चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (17-10-19)
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