तो क्या प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट का यह विरोध अशोक गहलोत की सरकार पर असर डालेगा?

तो क्या प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट का यह विरोध अशोक गहलोत की सरकार पर असर डालेगा? सरकार के दस माह के कार्यकाल में पहला मौका रहा जब खुला विरोध किया है। 

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राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने पार्षद चुने बगैर निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे का जो फैसला किया उस पर 18 अक्टूबर को मैंने ब्लॉग संख्या 6127 लिखा था। इस ब्लॉग में मैंने अपने पत्रकारिता के अनुभव से लिखा कि सरकार के इस फैसले पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट की राय सामने आनी चाहिए। मैं यह तो दावा नहीं करता कि मेरा ब्लॉग पढऩे के बाद पायलट ने अपनी राय दी, लेकिन यह सच है कि ब्लॉक पोस्ट होने के बाद पायलट ने अपनी राय से मीडिया को अवगत करवा दिया। पायलट ने साफ कहा कि सरकार ने पार्षद चुने बगैर निकाय प्रमुख बनाने का जो निर्णय लिया है, वह लोकतंत्र को कमजोर करने वाला है। इस निर्णय से पहले न तो विधायक दल की बैठक हुई और न ही मंत्रिमंडल में विचार हुआ। पायलट ने साफ कहा कि वे इस फैसले से सहमत नहीं है। यानि अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जो फैसला लिया है, उससे कांग्रेस संगठन ही सहमत नहीं है। इसलिए यह सवाल उठा है कि पायलट का यह विरोध क्या अब कांग्रेस सरकार पर असर डालेगा? कांग्रेस सरकार के दस माह के कार्यकाल में यह पहला अवसर  है, जब पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से सरकार के फैसले का खुला विरोध किया है। हालांकि अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही पायलट नाराज चल रहे थे, लेकिन पायलट ने अपनी नाराजी खुल कर व्यक्त नहीं की। ताजा विरोध से जाहिर है कि सरकार जो महत्वपूर्ण फैसले ले रही है उसमें प्रदेशाध्यक्ष की कोई भागीदारी नहीं है। यानि निकाय प्रमुख के चुनाव का फैसला सचिन पायलट की अनदेखी कर लिया गया। पायलट बार बार कहते रहे हैं कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के शासन में पांच वर्ष तक जो खून पसीना बहाया उसकी बदौलत प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी है। यानि जिन पायलट ने सरकार बनवाई, अब सरकार में उन्हीं को महत्व नहीं दिया जा रहा है। पायलट के मिजाज से प्रदेशभर के कार्यकर्ता वाकिफ हैं, ऐसे में देखना होगा कि अपनी उपेक्षा पर अब पायलट क्या प्रतिक्रिया देते हैं। इतना तो जरूर है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत की खुली जंग से खींवसर और मंडावा के उपचुनावों में कांग्रेस को नुकसान होगा। भले ही नवम्बर में होने वाले 52 निकायों के चुनावों को टाल दिया गया हो, लेकिन दिसम्बर में होने वाले पंचायतीराज के चुनावों में भी कांग्रेस को खामियाजा उठाना पड़ेगा। पायलट सरकार में डिप्टी सीएम भी हैं, लेकिन फिर भी अहमद मुद्दों पर पायलट से विचार विमर्श नहीं किया जा रहा है, इससे स्वयं पायलट को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। सवाल यह भी है कि अपनी उपेक्षा के चलते पायलट अब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश करेंगे?
एस.पी.मित्तल) (19-10-19)
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