सरकार एम्बुलैंस कर्मियों की नौकरी सुनिश्चित करें-हाईकोर्ट।

सरकार एम्बुलैंस कर्मियों की नौकरी सुनिश्चित करें-हाईकोर्ट।
एम्बुलैंस कर्मी सरकार के कर्मचारी नहीं। सख्ती से निपटेंगे-चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा।
तो क्या मंत्री ने हाईकोर्ट की अवमानना की है?

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एक नवम्बर को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति ने प्रदेश में चल रही 108 एम्बुलैंस कर्मियों की हड़ताल पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश यादव ने एक नवम्बर को प्रात: 10 बजे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष याचिका प्रस्तुत की और हड़ताल को खत्म करवाने में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। याचिका में एडवोकेट यादव का कहना था कि प्रदेश भर में एम्बुलैंस कर्मियों की हड़ताल से मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह मानवीय मुद्दा है, इसलिए हाईकोर्ट को आदेश जारी करने चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश महांति ने दोपहर 2 बजे एम्बुलैंस कर्मियों के यूनियन अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह और चिकित्सा एवं स्वास्थ विभाग के प्रमुख शासन सचिव रोहित कुमार सिंह को तलब किया। दोपहर 2 बजे जब हाईकोर्ट में सुनवाई हुई तो न्यायाधीश महांति ने दोनों पक्षों को फटकार लगाई साथ ही यूनियन के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह से हड़ताल को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने के आदेश दिए। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से कहा कि एम्बुलैंस कर्मियों की नौकरी सुनिश्चित की जाए। साथ ही मौजूदा वेतन को भी बढ़ाया जाए। कोर्ट ने माना कि मौजूदा समय में एम्बुलैंस कर्मियों को बहुत कम वेतन मिल रहा है। इस पर रोहित कुमार ने भरोसा दिलाया कि आज ही एम्बुलैंस कर्मियों के प्रतिनिधियों से वार्ता कर समस्या का हल निकाला जाएगा। इससे पहले एडवोकेट यादव ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने हाल ही में जो नई निविदा निकाली है उसमें कार्यरत एम्बुलैंस कर्मियों को नौकरी से हटाने की बात है। कोर्ट का कहना रहा कि सरकार को मौजूदा कार्मिकों की नौकरी का ख्याल रखना चाहिए। कोर्ट के आदेश के बाद यूनियन के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह ने हड़ताल को समाप्त करने को लेकर साथी कर्मचारियों से विचार विमर्श किया है।
सख्ती से निपटेगी सरकार-शर्मा
वहीं एक नवम्बर को ही प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा है कि एम्बुलैंस कर्मचारियों की हड़ताल से सरकार सख्ती से निपटेगी। इस संबंध में उन्होंने विभाग के अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं। शर्मा ने कहा कि सरकार ने 108 सेवाओं वाली एम्बुलैंस के संचालन का ठेका जीवीके कंपनी से कर रखा है। इन कार्मिको की नियुक्ति जीवीके कंपनी ने की है। ऐसी स्थिति में एम्बुलैंस कर्मचारी सरकार के कर्मचारी नहीं है। इसलिए वे सरकार की एम्बुलैंस सेवाओं को ठप नहीं कर सकते हैं। सरकार ने जो निविदा निकाली है उसमें अन्य कंपनियों को भी आमंत्रित किया है। सरकार इन एम्बुलैंस कर्मियों को नौकरी देने की गारंंटी नहीं दे सकती है। एम्बुलैंस कर्मियों को जीवीके कंपनी के समक्ष अपनी बात रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी स्थिति में एम्बुलैंस कर्मियों के सामने नहीं झुकेगी।
हाईकोर्ट की अवमानना?:
एक नवम्बर को सुबह दस बजे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष जनहित याचिका प्रस्तुत कर दी गई थी। इस याचिका की गंभीरता को देखते हुए ही कोर्ट ने दोपहर दो बजे सरकार और यूनियन के प्रतिनिधियों को तलब किया था, लेकिन इस बीच प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने एक तरफा बयान दे दिया। सवाल उठता है कि जब एम्बुलैंस कर्मियों की हड़ताल का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन था, तब मंत्री ने एक तरफा बयान क्यों दिया? मंत्री के बयान से प्रतीत होता है कि हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना हो रही है। सवाल यह भी है कि एक ओर मंत्री कह रहे हैं कि सरकार एम्बुलैंस कर्मियों के साथ सख्ती से निपटेगी और दूसरी ओर जयपुर में यूनियन के प्रतिनिधियों और सरकार के अधिकारियों के बीच वार्ता हो रही है।
एस.पी.मित्तल) (01-11-19)
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