वाकई सारे जहां से अच्छा है हिन्दुस्तान हमारा।
वाकई सारे जहां से अच्छा है हिन्दुस्तान हमारा।
अयोध्या में मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला आने पर देशभर में अमन-चैन रहा।
यह न किसी की हार है और न किसी की जीत।
पिछले चार माह में 9 नवम्बर को यह दूसरा अवसर रहा, जब देशवासियों ने वर्षों पुरानी आशंकाओं को धराशाही कर दिया। अब जो राजनेता हिन्दू मुसलमानों के नाम पर राजनीति करते आ रहे थे, उन्हें अब अपने भविष्य के बारे में सोचना पड़ेगा। भारत का नागरिक हिन्दू हो या मुसलमान, उसने जाता दिया है कि उसके लिए देश पहले हैं। 9 नवम्बर को प्रात: 11 बजे सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जब यह साफ हो गया कि अयोध्या में विवादित भूमि पर भगवान राम का मंदिर ही बनेगा तो देशभर में सामान्य स्थिति रही। कहीं से भी अप्रिय वारदात की खबर नहीं आई। न्यूज चैनलों को छोड़ कर आम व्यक्ति अपने सामान्य कामकाज में लगा रहा। न किसी ने खुशी जताई तो न किसी ने गम का इजहार किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले देशभर में सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए गए थे। 8 नवम्बर तक ऐसा लग रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भूचाल आ जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। चार माह पहले पांच अगस्त को जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया गया, तब भी देश में अनेक आशंकाएं जताई गई थीं, लेकिन आज पूरा देश देख रहा है कि कश्मीर घाटी के कुछ जिलों को छोड़कर सामान्य स्थिति है। हिन्दू ही नहीं लाखों मुसलमान भी चाहते थे कि अयोध्या में भगवान राम के जन्म स्थान पर मंदिर ही बनें। सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रयास किए कि आपसी सहमति से विवाद का हल निकल जाए, लेकिन जो राजनेता इस विवाद में राजनीति कर रहे थे उन्होंने आम सहमति बनने नहीं दी। 9 नवम्बर को जब सुप्रीमकोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से अयोध्या में विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दे दिया तो राजनीति करने वाले नेताओंको भी अपनी हैसियत का पता चला गया। देश के नागरिकों ने अमन-चैन बनाए रख कर यह जता दिया कि सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ में जस्टिस एसए नजीर भी शामिल थे। भारत की न्याय प्रणाली जाति धर्म से प्रभावित नहीं होती है, यह बात भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जाहिर होती है। जस्टिस नजीर भी संविधान पीठ के इस फैसले में शामिल रहे कि अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि मुस्लिम पक्षकारों को अन्यत्र दे दी जाए। इतना ही नहीं सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी खारिज कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या के 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन भागों में विभाजित कर दिया था। एक भाग मस्जिद बनने के लिए मुस्लिम पक्षकारों को दिया था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने सम्पूर्ण विवादित भूमि हिन्दुओं को देने का आदेश दिया है।
केन्द्र सरकार बनाएगी ट्रस्ट:
अयोध्या में मंदिर और मस्जिद बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को बोर्ड ऑफ ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया है। यानि अयोध्या में भगवान राम का जो भव्य मंदिर बनेगा, उसका संचालन ट्रस्ट के द्वारा होगा। सरकार के इस ट्रस्ट में कोई अड़चन नहीं आए, इसके लिए कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा भी खारिज कर दिया। निर्मोही अखाड़े ने मंदिर के प्रबंधन का दावा किया था। अब मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी भी केन्द्र सरकार की होगी, ऐसे में विश्व हिन्दू परिषद की भूमिका भी इंतजार करना पड़ेगा। विहिप ने ही देश में मंदिर निर्माण के लिए आंदेलन चलाया था और आज भी अयोध्या में मंदिर के पत्थरों को तराशने का काम जारी है। अब देखना होगा कि विहिप अपने पत्थरों को सरकार को किस प्रकार सौंपती है।
पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट आधार बनी:
सुप्रीम कोर्ट ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को अपने फैसले का आधार माना। इस रिपोर्ट से ही पता चलता है कि बावरी मस्जिद के नीचे हिन्दू देवी देवताओं की प्रतिमाओं के अवशेष निकले हैं। बावरी मस्जिद के निर्माण के बाद भी अंदर के हिस्सों में पूजा पाठ होती रही। मुस्लिम पक्ष ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर सका, जिससे यह पता चलता हो कि मस्जिद में नमाज होती थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि पुरातत्व विभाग द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में मुख्य भूमिका केके मोहम्मद की रही। जो भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। मोहम्मद का कहना रहा कि विवादित स्थल पर जो लम्बी दीवार और जो गुंबदनुमा ढांचे मिले है वो किसी इस्लामिक निर्माण के नहीं है क्योंकि उनमें मूर्तियां है जिनका इस्लामिक इबादतगाह में होने का सवाल ही नहीं उठता है।
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