दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के बारे सरकार सख्त फैसला करे।

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के बारे सरकार सख्त फैसला करे।
विद्यार्थियों का आंदोलन देश के लिए घातक।

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18 नवम्बर को जब दिल्ली में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ तो जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के कथित विद्यार्थियों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया। कहा तो यही गया कि यह प्रदर्शन फीस वृद्धि के विरोध में है, लेकिन सुनियोजित प्रदर्शन से साफ जाहिर था कि यह प्रदर्शन किसी खास मकसद से किया गया है। सवाल यह नहीं है कि कथित विद्यार्थियों के आंदोलन के पीछे राजनीतिक दल खड़े हैं। बड़ा सवाल यह है कि यह आंदोलन देश के लिए घातक है। कथित विद्यार्थियों की आड़ में देश के खिलाफ साजिश की जा रही है। सब जानते हैं कि  इसी यूनिवर्सिटी से भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर की आजादी को लेकर रहेंगे, जैसे देश विरोधी नारे लगे हैं। यानि इस आंदोलन के पीछे वे ताकते खड़ी हैं जो देश की एकता और अखंडता को तोडऩा चाहती है। फीस वृद्धि का तो एक बहाना है। असल में फीस वृद्धि की आड़ में कथित विद्यार्थियों को आगे कर दिया गया है। फीस वृद्धि का विरोध भी बेमानी है कि कन्हैया कुमार जैसे वामपंथी पिछले कई वर्षों से बेवजह है विद्यार्थी बने हुए हैं। मात्र 10 रुपए मासिक किराए में यूनिवर्सिटी के आलीशान छात्रावास में रह रहे हैं। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रावास शुल्क 10 रुपए से बढ़ाकर 300 रुपए मासिक किया है। यूनिवर्सिटी के आम विद्यार्थियों को इस फीस वृद्धि पर कोई एतराज नहीं है, लेकिन यूनिवर्सिटी में फैली गुंडागर्दी की वजह से ऐसे विद्यार्थी खामोश है। अब जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा कर देश की एकता को मजबूत किया जा रहा है तथा अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण की पहल अधिकांश मुसलमान ही कर रहे हैं, तब दिल्ली में टुकड़े टुकड़े वाली गैंग सक्रिय होकर कथित विद्यार्थियों की आड़ में आंदोलन कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि जब ऐसे आंदोलनों से सख्ती के साथ निपटा जाए। जेएनयू के इस आंदोलन को सिर्फ विद्यार्थियों के आंदोलन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। सरकार को उन तत्वों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए जो अपनी कथित पढ़ाई की आड़ में देश विरोधी कामों के लिए यूनिवर्सिटी का इस्तेमाल कर रहे हैं। देश को ऐसी यूनिवर्सिटी नहीं चाहिए जो देश विरोधी ताकतों का अड्डा बने। जिन राजनीतिक दलों को लोकसभा चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा है वो अब दिल्ली में भड़काने वाली कार्यवाहियां कर रहे हैं। संभवत: हो तो इस यूनिवर्सिटी को दो चार साल के लिए बंद कर दिया जाए। यदि जेएनयू यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं पर समय रहते कार्यवाही नहीं की गई तो हालात और बिगड़ेंगे। जो लोग पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों से मुकाबला कर रहे हैं वे किसी यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी नहीं हो सकते हैं।
एस.पी.मित्तल) (18-11-19)
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