राज्यपाल ने किसी को सड़क से उठा कर मुख्यमंत्री की शपथ नहीं दिलवाई है।
सुप्रीम कोर्ट के सवाल के जवाब में मुकुल रोहतगी ने कहा।
विधायकों की शपथ के बाद ही होगा फ्लोर टेस्ट।

24 नवम्बर को महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में रोचक क्षण भी नजर आए। जब कांग्रेस के नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल शिवसेना व एनसीपी की ओर से पक्ष रख रहे थे, तब जस्टिस एनवी रमन्ना ने सवाल किया कि क्या ऐसा भी हो सकता है कि राज्यपाल किसी को भी मुख्यमंत्री की शपथ दिलवा सकते हैं? इस पर कुछ भाजपा विधायकों की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने किसी को सड़क से उठा कर शपथ नहीं दिलवाई है। देवेन्द्र फडऩवीस पांच वर्ष तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे और 105 भाजपा विधायकों के नेता भी हैं। राज्यपाल ने आश्वस्त होने के बाद ही फडऩवीस को शपथ दिलवाई है। इस पर जस्टिस रमन्ना ने मुस्कुराते हुए कह कि याचिका में कोई कुछ भी मांग कर सकता है, लेकिन कोर्ट न्यायिक परिधि में रह कर निर्णय देगी।
शपथ के बाद होगा फ्लोर टेस्ट:
कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट 24 नवम्बर को ही देवेन्द्र फडऩवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने के आदेश दे देगा। लेकिन तीनों दलों की यह उम्मीद पूरी नहीं हुई। यह जरूरी नहीं कि 25 नवम्बर को भी कोर्ट का फैसला आ ही जाए। जानकारों की माने तो फ्लोर टेस्ट से पहले सभी 288 विधायकों को विधानसभा में शपथ लेनी होगी। इस संवैधानिक प्रक्रिया के बाद ही फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया शुरू होगी। 288 विधायकों की शपथ में दो तीन दिन लग सकते हैं। बहुमत साबित करने से पहले विधानसभा में स्थायी अध्यक्ष का चुनाव भी होगा। विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव और विधायकों की शपथ के बाद ही दल बदल विधेयक के प्रावधान विधायकों पर लागू होंगे। जब तक विधायक विधानसभा में शपथ नहीं लेते, तब तक दल बदल विधेयक के कानूनी प्रावधान भी लागू नहीं होंगे। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस भले ही अपने विधायकों को छिपाए रखे, लेकिन बहुमत का सही फैसला विधानसभा में ही होगा। फिलहाल सबकी निगाहें 25 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर लगी है।
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