मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के बीच इतने मतभेद के बाद भी राजस्थान में चल रही है कांग्रेस की सरकार।
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21 जनवरी को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर रिकॉर्ड छह वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर सचिन पायलट ने एक बार फिर अपनी ही सरकार पर निशाना साधा। इन दिनों प्रदेशभर में पंचायती राज संस्थाओं में सरपंच और वार्ड पंच के चुनाव हो रहे हैं। पायलट ने सवाल उठाया कि जब सरपंच के चुनाव हो सकते हैं तो पंचायत समिति और जिला परिषद के सदस्यों के क्यों नहीं? पायलट ने पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्य के चुनाव सरपंच के चुनाव के साथ नहीं करवाए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। हालांकि चुनाव करवाने का कार्य राज्य निर्वाचन विभाग का है, लेकिन निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार ही करती है। पायलट प्रदेशाध्यक्ष के साथ साथ सरकार में डिप्टी सीएम भी हैं और पंचायती राज विभाग भी पायलट के पास ही है। पंचायत चुनावों को लेकर पायलट और सरकार के बीच जिस प्रकार से मतभेद सामने आएं हैं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार और संगठन में हालात कितने बिगड़े हुए हैं। इससे पहले निकाय चुनाव में भी हाईब्रिड सिस्टम को लेकर पायलट और सरकार में जोरदार विवाद हुआ था। पंचायतीराज के चुनाव दो भागों में होने से सरकार पर आर्थिक बोझ भी पड़ेगा। चाहे कोटा का जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला हो या फिर पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह द्वारा अपने विभाग के अफसरों पर गंभीर आरोप लगाने का मामला हो। सभी मामलों में गहलोत सरकार पायलट के निशाने पर रही है। 21 जनवरी को भी मीडिया के सामने पायलट ने कहा कि जिन मुद्दों को वे विपक्ष में रहते उठाते आए हैं, उन्हें अब भी उठाते रहेंगे, क्योंकि उनके लिए प्रदेश की जनता पहले हैं। अपनी ही सरकार में चल नहीं पाने का दर्द पायलट का समय समय पर झलकता है। पायलट ने कहा कि 2013 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस को 200 में से 21 सीटें मिली थीं, तब लोगों ने कहा था कि राजस्थान में अब कांग्रेस 10-20 वर्ष सत्ता में नहीं आएगी। तब कांग्रेस का कार्यकर्ता भी हताश और निराश था। लेकिन प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद मैंने कार्यकर्ताओं की हौंसला अफजाई की और जनता का भरोसा जीता। यही वजह रही कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटों पर जीत मिली। इसलिए आज हम सत्ता में हैं। हमारा दायित्व है कि हम जनता की समस्याओं का समाधान करें।
पांडे की भूमिका में होंगे साहू:
सूत्रों की माने तो सचिन पायलट को राजनीतिक दृष्टि से कमजोर करने में प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे की भूमिका रही। पांडे ने भी कांग्रेस आलाकमान के सामने हमेशा पायलट का नकारात्मक पक्ष रखा। पांडे की भूमिका को लेकर पायलट कभी भी संतुष्ट नहीं रहे। पायलट की नाराजगी को देखते हुए ही कांग्रेस हाईकमान ने अब सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल के लिए छत्तसीगढ़ के वरिष्ठ नेता ताम्रध्वज साहू को राजस्थान का प्रभारी नियुक्त किया है। माना जा रहा है कि साहू अब अविनाश पांडे की भूमिका में होंगे। साहू की नियुक्ति से पायलट का खेमा उत्साहित है।
फिर भी चल रही है सरकार :
सीएम गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष पायलट के बीच इतने मतभेद के बाद भी राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चल रही है। असल में दोनों के अपने अपने राजनीतिक हित हैं। 21 से 100 विधायक करने के बाद भी भले ही पायलट सीएम नहीं बन सके हों, लेकिन पायलट के लिए यह भी बड़ी उपलब्धि है कि वे प्रदेशाध्यक्ष के साथ डिप्टी सीएम भी बने हुए हैं। हालांकि पायलट को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाने के लिए काफी प्रयास हुए, लेकिन विरोधियों को सफलता नहीं मिली है। पायलट को दोनों पदों पर बनाए रखकर हाईकमान अशोक गहलोत पर भी नियंत्रण रख रहा है।
एस.पी.मित्तल) (22-01-2020)
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