अजमेर के प्रमुख समाजसेवी सुरेश शर्मा का 51 वर्ष की उम्र में निधन

अजमेर के प्रमुख समाजसेवी सुरेश शर्मा का 51 वर्ष की उम्र में निधन।
23 जनवरी को जयपुर के इंटर्नल हॉस्पिटल में लगवाए थे दो स्टैंड।
हॉस्पिटल से घर आने की तैयारी कर रहे थे। 

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यूं तो मृत्यु जीवन का सत्य है। जो जीव इस संसार में आया है उसे एक दिन जाना भी है।  इंसान अपने विज्ञान से प्रकृति को कितनी भी चुनौती दे दे, लेकिन ऐसे ताकतवर इंसान को भी एक दिन प्रकृति के चक्र में मृत्यु को गले लगाना ही पड़ता है। लेकिन जब कभी कोई अच्छा इंसान समय से पहले अचानक चला जाता है तो समाज में दु:ख की लहर होती है। ऐसी दु:ख की लहर अजमेर के राम नगर निवासी प्रमुख समाजसेवी सुरेश शर्मा के निधन पर है। मात्र 51 वर्ष की उम्र में शर्मा का निधन 25 जनवरी को सुबह साढ़े आठ बजे जयपुर के सुप्रसिद्ध इंटर्नल हॉस्पिटल में हो गया। इसे ईश्वर की रचना ही कहा जाएगा कि सुरेश शर्मा ने अस्पताल के स्पेशल रूम में तब अंतिम सांस ली, जब वे अस्पताल से घर आने की तैयारी कर रहे थे। 23 जनवरी को ही डॉक्टर रॉय ने हार्ट में दो स्टैंड लगाए थे और भरोसा दिलाया था कि चिकित्सा क्रिया सफल रही है। इसी भरोसे से उत्साहित परिजन भी सुरेश शर्मा को अजमेर लाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन किसी को पता नहीं था कि सुरेश शर्मा को नहीं, बल्कि उनके शव को अजमेर ले जाना पड़ेगा। अचानक मृत्यु पर परिजन पर क्या बीती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। परेशान दु:खी परिजन और मित्रों ने 25 जनवरी को दोपहर को ही सुरेश शर्मा का पुष्कर रोड स्थित श्मशान स्थल पर अंतिम संस्कार कर दिया। शर्मा रजिस्ट्री लेखन से अपने परिवार का भरण पोषण करते थे, लेकिन केशव माधव परमार्थ मंडल, शहीद भगत सिंह नौजवान सभा आदि संस्थाओं से जुड़ कर समाज सेवा का कार्य भी करते थे। सुरेश शर्मा की सामाजिंक सेवाओं को कभी नहीं भुलाया जा सकता। यूं तो सुरेश शर्मा भाजपा से जुड़े रहे, लेकिन समाज सेवा  के क्षेत्र में वे राजनीति से ऊपर उठ कर सोचते थे। यही वजह रही कि कांग्रेस और अन्य दलों में भी अनेक प्रशंसक हैं। सुरेश शर्मा के अचानक निधन से सम्पूर्ण समाज को छति हुई है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति और परिजन को इस दु:ख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। युवाओं को सुरेश शर्मा की सामाजिक सेवाओं और जीवन की सादगी से प्रेरणा लेनी चाहिए। जीवन और मृत्यु के सत्य को किसी कवि की इस पंक्तियों से अच्छी तरह समझा जा सकता है।
क्षणभंगुर जीवन की कलिका,
कल प्रात: को जान खिली न खिली।
मलियानल की शुचि मंद सुगंध समीर भी जान चली न चली।
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन कोमल चोट झिली न झिली।
जपले प्रभु नाम अरि रसना,
जाने अंत में जान हिली न हिली।
 
(एस.पी.मित्तल) (25-01-2020)
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