घर बैठे इतना सस्ता सामान मिलेगा तो गली-मोहल्लों के छोटे किराना दुकानदारों का क्या होगा?
घर बैठे इतना सस्ता सामान मिलेगा तो गली-मोहल्लों के छोटे किराना दुकानदारों का क्या होगा? इससे तो बेरोजगारी और बढ़ेगी।
8 फरवरी को राजस्थान पत्रिका में पूरे पृष्ठ का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। ऑन लाइन सामान खरीदने वाले ग्राहक अब तक अमेजन जैसी मशहूर कंपनियों के बारे में ही जानते थे, लेकिन पत्रिका के विज्ञापन में ऐसी किसी कंपनी नाम भी नहीं है। ग्राहक बिना नाम वाली कंपनी का एप अपने मोबाइल पर डाउनलोड करे और घर बैठे सस्ता सामान प्राप्त कर ले। बीकाजी की जो एक किलो भुजिया 240 रुपए में मिलती है उसे मात्र 159 रुपए में घर पर उपलब्ध करवाया जाएगा। इसी प्रकार अमूल का एक लीटर प्योर घी 520 की जगह 475, फॉरचून एक लीटर ऑयल 120 की जगह 106 रुपए, पारले 800 ग्राम बिस्कुटस 130 की जगह 118 रुपए में उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। घर की रसोई में रोजमर्रा में आने वाली सभी सामग्री बेहद ही सस्ती दर पर उपलब्ध करवाई जा रही है। गली मोहल्लों के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए 2 हजार की खरीद पर 100 प्रतिशत केशबैक जैसी सुविधा भी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सस्ता सामान लेने के लिए ग्राहक लालायीत रहता है, लेकिन सवाल उठता है कि घर बैठे इतना सस्ता सामान उपलब्ध करवाएगी तो फिर गली मोहल्लों के छोटे किराना दुकानदारों का क्या होगा। एक छोटा दुकानदार रोज सुबह अगरबत्ती जला कर ईश्वर से अच्छे कारोबार की प्रार्थना करता है। एक दुकान से परिवार के चार पांच सदस्यों की पढ़ाई आदि के साथ-साथ साग सब्जी, रोटी आदि का प्रबंध भी होता है। छोटे दुकानदार की वजह से थोक व्यापारी आदि तक के कई लोगों को रोजगार मिलता है। यदि घर बैठे सस्ता सामान मिलेगा तो बाजार में लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। ग्राहकों को सस्ता सामान मिले, यह अच्छी बात है, लेकिन सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे छोटा दुकानदार बेरोजगार नहीं हो। अमेजन जैसी विदेशी कंपनियों की गतिविधियों से छोटे बड़े शो रूम वाले पहले ही संकट में है। प्रमुख बाजारों में भी अब पहले जैसी रौनक नहीं है। प्रमुख बाजारों में बड़ी दुकान चलाने वाले व्यापारियों के खर्चे पहले जैसी ही है, जबकि बिक्री लगातार घट रही है। ऐसे में दुकानों पर काम करने वाले श्रमिकों की छंटनी की जा रही है, ताकि किसी तरह दुकान, शोरूम आदि का संचालन हो सके। आज सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोजगार उपलब्ध करवाने की है। यदि परंपरागत रोजगार भी छीनने लगेगा तो एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। बड़े शहरों में रिलायंस फ्रेश, डी मार्ट, विशाल मेगा मार्ट आदि की वजह से छोटे दुकानदारों पर असर पड़ रहा है। अब किसी कड़ी में ऑनलाइन कंपनियों की गतिविधियों ने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। दुकानदारों को तो बिजली, पानी, श्रमिक स्टाफ आदि सभी का ख्याल रखना होता है, जबकि ऑनलाइन कंपनियों को तो दुकान भी नहीं खोलनी पड़ती। गली मोहल्लों से लेकर बाजारों तक बेरोजगार बना रहे, इस पर सरकार को खास ध्यान देना चाहिए।
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