तो फिर आरोप लगने पर मीडिया में भी खबरों का प्रसारण नहीं होना चाहिए।

तो फिर आरोप लगने पर मीडिया में भी खबरों का प्रसारण नहीं होना चाहिए।
पोस्टर लगाने से ज्यादा निजता का हनन खबरों से होता है।
ऐसी खबरों पर भी सुप्रीम कोर्ट रोक लगाए। 

==============

उत्तर प्रदेश की सरकार ने जब सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचने, सरेआम गुंडागर्दी करने, दहशत फैलाने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर फायरिंग आदि करने के आरोपियों के पोस्टर लगाए तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे पोस्टर हटाने के निर्देश दिए। हाईकोर्ट ने इसे निजता का हनन मानते हुए सरकार के अधिकारियों को फटकार भी लगाई। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अब 12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर तीन सदस्यीय पीठ के गठन के निर्देश दिए हैं, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई है। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि व्यक्ति तब तक कुछ भी कर सकता है, जब तक वह कानून द्वारा वर्जित न हो। सरकारें वहीं कर सकती है, जिसकी कानून इजाजत देता है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि व्यक्ति तब तक कुछ भी कर सकता है, जब तक वह कानून द्वारा वर्जित न हो। सरकारें वहीं कर सकती है जिसकी कानून इजाजत देता है। मैं हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फैसले पर तो कोई टिप्पणी नहीं कर रहा, लेकिन यदि सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाने और दहशत के लिए फायरिंग करने वालों की निजता की भी रक्षा होनी चाहिए तो फिर मात्र आरोप लगाने पर मीडिया में प्रसारित होने वाली खबरों पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। किसी भी मीडिया को यह अधिकार नहीं कि वह अदालत के फैसले से पहले किसी व्यक्ति को बलात्कारी, भ्रष्टाचारी, दंगाई,हत्यारा आदि कहे। आमतौर पर देखा जाता है कि किसी महिला द्वारा बलात्कार का आरोप लगा देने भर से मीडिया में संबंधित व्यक्ति का नाम और फोटो ऐसे प्रसारित होता है जैसे बलात्कार कर ही दिया हो। सरकारी कार्यालयों में छेड़छाड़ की शिकायत होने पर भी मीडिया ऐसा ही रुख अपनाता है। भले ही बाद में महिला अपने आरोपो ंसे मुकर जाए या फिर अदालत संबंधित व्यक्ति को बा-इज्जत बरी कर दें। जब अदालतों को उत्तर प्रदेश के आरोपित अपराधियों की निजता की चिंता है तो फिर देश भर के उन आरोपियों की चिंता होनी चाहिए जो मीडिया की वजह से बदनाम हो जाते हैं। यदि अदालत के फैसले से पहले यूपी सरकार आरोपियों के पोस्टर नहीं लगा सकती तो फिर कोई मीडिया समूह भी अपने अखबार अथवा न्यूज चैनल पर आरोपी का फोटो और नाम का उल्लेख नहीं कर सकता है। यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश अमल में आता है तो आने वाले दिनों में मीडिया समूहों पर भी न्यायिक कार्यवाही हो सकती है। इस संबंध में उन लोगों को जागरुक होने की जरुरत है जो सिर्फ आरोप लगने पर मीडिया की वजह से बदनाम हो रहे हैं। यूपी सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जो फैसला देगा उसके दूरगामी परिणाम होंगे। देश में ऐसे हजारों लोग मिल जाएंगे, जो अदालत से तो बरी हो गए, लेकिन मीडिया की खबरों की वजह से समाज में स्वयं को अपमानित समझते हैं।
(एस.पी.मित्तल) (13-03-2020)
नोट: फोटो मेरी वेबसाइट www.spmittal.in
https://play.google.com/store/apps/details? id=com.spmittal
www.facebook.com/SPMittalblog
Blog:- spmittalblogspot.in
वाट्सएप ग्रुप से जोडऩे के लिए-95097 07595
M-09829071511 (सिर्फ संवाद के लिए)
Print Friendly, PDF & Email

You may also like...