राज्यसभा चुनाव में लखावत की उम्मीदवारी से भाजपा, कांग्रेस में असंतोष का टेस्ट कर लेगी।
राज्यसभा चुनाव में लखावत की उम्मीदवारी से भाजपा, कांग्रेस में असंतोष का टेस्ट कर लेगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए मुसीबत का समय।
संगठन के प्रति वफादार रहे हैं लखावत।
राज्यसभा के लिए राजस्थान से तीन सदस्यों का चुनाव होना है। संख्या बल के हिसाब से कांग्रेस के दो तथा एक सदस्य भाजपा का चुना जाना है, लेकिन भाजपा ने 13 मार्च को ऐनवक्त पर औंकार सिंह लखावत को चौथे उम्मीदवार के तौर उतार कर चुनाव को कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण बना दिया है। सवाल कांग्रेस के उम्मीदवार केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी की जीत का नहीं है, क्योंकि कांग्रेस अपने 106 विधायकों के दम पर दोनों उम्मीदवारों की जीत तय मान रही है, लेकिन सवाल भाजपा की रणनीति का है। भाजपा के 72 और 3 हनुमान बेनीवाल वाली आरएलपी के 75 विधायक होते हैं। भाजपा के प्रथम प्रत्याशी राजेन्द्र गहलोत को 51 वोट प्रथम वरीयता के मिलने के बाद लखावत को भी 25 वोट प्रथम वरीयता के आसानी से मिल जाएंगे। हालांकि लखावत को भी जीत के लिए 51 वोट चाहिए। शेष 26 वोट जुटाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। यह तभी संभव है, जब 13 निर्दलीय, 2 बीटीपी तथा दो सीपीएम के विधायकों के वोट के साथ-साथ कांग्रेस के कुछ विधायकों के वोट मिले। भाजपा को उम्मीद है कि कांग्रेस में इन दिनों जो असंतोष है उसका फायदा भी मिल सकता है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट चले ही अपनी नाराजगी खुल कर नहीं जताएं, लेकिन सूत्रों के अनुसार पायलट के नीरज डांगी की जगह किसी जाट गुर्जर या फिर मुस्लिम समुदाय से उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन कांगे्रस हाईकमान ने मुख्यमंत्री गहलोत की राय को तवज्जों देते हुए डांगी को उम्मीदवार बनाया। ऐसे में दोनों उम्मीदवारों को जितवाने की जिम्मेदारी पूरी तरह सीएम गहलोत के कंधों पर हैं। गहलोत यह दावा करते रहे हैं कि सरकार को सभी 13 निर्दलीय विधायकों एवं बीटीपी व सीपीएम के चारों विधायकों का समर्थन है। ऐसे में कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 123 वोट मिलने चाहिए। हो सकता है कि इन 123 विधायकों को एकजुट रखने के लिए गहलोत को राजस्थान में बाड़ेबंदी करनी पड़े। सीएम गहलोत की गणित अपनी जगह है, लेकिन भाजपा के नेताओं का मानना है कि असंतोष के चलते कांग्रेस की गणित गड़बड़ा जाएगी। लखावत की उम्मीदवारी से कांग्रेस के असंतोष का टेस्ट भी हो जाएगा। यह भी पता चल जाएगा कि जाट और गुर्जर विधायकों का सरकार के प्रति क्या रुख है? वैसे तो किसी भी प्रकार के चुनाव में संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन राजस्थान में राज्यसभा चुनाव में अहम भूमिका सीएग गहलोत की ही है। ऐसे में 123 विधायकों के वोट हासिल करने की जिम्मेदारी भी अब गहलोत की हो गई है। देखना होगा कि इस जिम्मेदारी को निभाने में गहलोत को कितनी सफलता मिलती है।
संगठन के प्रति वफादार रहे हैं लखावत:
जहां तक भाजपा उम्मीदवार औंकार सिंह लखावत का सवाल है तो वे हमेशा से ही संगठन के प्रति वफादार रहे हैं। मौजूदा समय में भी नगर निगम के चुनाव की रणनीति बनाने में जुटे हैं। भैरोसिंह शेखावत के मुख्यमंत्री काल में लखावत अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष बने तो वसुंधरा राजे के दोनों कार्यकाल में राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे। इस बीच एक बार राज्यसभा के सदस्य भी चुने गए। चारण समुदाय के लेखकों, कवियों के साहित्य को एकत्रित करने में भी लखावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सबसे खास बात यह है कि राजनीति रहते लखावत पर कभी भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे।
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