क्या किसान आंदोलन को मंडियों के कमीशनखोरों ने हाईजैक कर लिया है? सरकार जब एमएसपी सहित 8 मुद्दों पर संशोधन के लिए तैयार है तो फिर तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की जिद क्यों? कान्टे्रक्ट फार्मिंग में किसान को फायदा ही फायदा।
आंदोलनरत किसानों के प्रतिनिधियों और केन्द्र सरकार के मंत्रियों के बीच पांचवें दौर की वार्ता 5 दिसम्बर को होगी। 4 दिसम्बर को जो चौथे दौर की वार्ता हुई उसमें किसानों के प्रतिनिधियों की ओर से उठाई गई आशंकाओं के अनुरूप 8 मुद्दों पर कानून में संशोधन करने पर सरकार की ओर से सहमति जताई गई है, इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का मुद्दा भी शामिल रहा। यानि सरकार भी चाहती है कि एमएसपी से कम दर पर कोई खरीद नहीं हो। किसानों की मुख्य मांग यही है। लेकिन इसके बावजूद भी कुछ किसान लगातार मांग कर रहे हैं कि तीनों कृषि सुधार कानून रद्द होने चाहिए। सवाल उठता है कि जब सरकार किसानों की आशंकाओं को समाप्त कर रही है तब कानून को वापस लेने की जिद क्यों की जा रही है? क्या किसान आंदोलन को कृषि मंडियों के कमीशन खोरों ने हाईजैक कर लिया है? ऐसे कमीशनखोर नहीं चाहते है कि मेहनत कर किसान को फायदा हो। सब जानते हैं कि मंडियों में ऐसे कमीशनखोर बैठे हैं जो किसान और उपभोक्ता के बीच मालामाल हो रहे हैं। किसान से सस्ती दर पर अनाज खरीद कर उपभोक्ता को महंगी दर से बेचा जाता है। ऐसे कमीशनखोर एक रुपया भी नहीं लगाते, लेकिन कमीशन के नाम पर करोड़ों रुपया कमाते हैं। नए कृषि कानून में ऐसे कमीशनखोरों की भूमिका को समाप्त करने की कोशिश की गई है। जब मेहनतकश्त किसान अपनी शर्तों पर फसल का कॉन्टे्रक्ट कर लेगा तो उसे मंडी में जाने की जरुरत ही नहीं होगी। खेत पर ही से फसल की मुंह मांगी कीमत मिल जाएगी। फसल बोने के साथ ही उसे राशि मिलना शुरू हो जाएगी। भ्रम फैलाया जा रहा है कि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग से किसान की जमीन बिक जाएगी। जबकि हकीकत यह है कि कान्ट्रेक्ट (अनुबंध) सिर्फ फसल का होगा। किसान की जमीन के कान्ट्रेक्ट का कोई प्रावधान नहीं है। जब कोई कारोबारी फसल के लिए किसान से कॉन्ट्रेक्ट करेगा तो उत्तम किस्म का बीज, तकनीक आदि की सुविधा भी उपलब्ध करवाएगा। कान्ट्रेक्टर का प्रयास होगा कि वह अच्छी किस्म की फसल प्राप्त करे, ताकि किसान को भी अधिक मुनाफा हो। यह सही है कि जब किसान मुंह मांगी रकम पर फसल का सौदा खेत पर ही कर लेगा तो वह मंडी में क्यों जाएगा? असल में मंडियों के कमीशनखोर यह नहीं चाहते हैं कि किसान की फसल मंडी में न आए। यदि किसान अपनी फसल मंडी में नहीं लाएगा तो फिर करोड़ों रुपए के कमीशन का क्या होगा? जब किसान और कॉन्टे्रक्टर का सीधा संबंध होगा तो उपभोक्ता को भी सस्ती दर पर सामग्री मिलेगी। नए कृषि कानून में किसान को तो फायदा ही फायदा है। आंकड़े बताते हैं कि देश के 90 प्रतिशत किसानों के पास दो एकड़ से अधिक जमीन नहीं है। दो एकड़ जमीन पर फसल उगाते उगाते किसान कंगाल हो जाता है। मंडी में बैठे कमीशनखोरों ने कभी किसान की दशा सुधारने की कोशिश नहीं की। लेकिन नए कानून में दो एकड़ या इससे भी कम जमीन के मालिकों का समूह बनेगा और अनुबंध होगा। यानि खेत का दायरा बढ़ जाएगा। इसका फायदा भी किसान को होगा। जब बडे बड़े खेतों में आधुनिक तकनीक से खेती होगी तो किसान की आय दोगुनी नहीं बल्कि चार गुनी होगी। नए कृषि कानूनों से किसान को कई झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी। जब किसान खुशहाल होगा तो देश का विकास भी होगा। किसानों को कमीशनखोरों के चक्कर में आने के बजाए कानून के प्रावधानों को अच्छी तरह समझना चाहिए। किसान यह भी समझे कि पंजाब में मंडी व्यवस्था पर राजनीतिक दलों से जुड़े परिवारों का ही कब्जा है। ऐसे में ताकतवर परिवार किसानों को आगे रख कर मंडी व्यवस्था को कायम रखना चाहते हैं। सवाल यह भी है कि कोई किसान अपनी फसल का कॉन्ट्रेक्ट नहीं करना चाहता है तो उस पर सरकार को कोई ऐतराज नहीं है। किसान चाहे तो पहले की तरह अपने स्तर पर फसल उगाए और मंडी में बेचे। सरकार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करती रहेगी। लेकिन कमीशनखोरों को पता है कि अधिकांश किसान नए कानून का फायदा उठाएंगे, इसलिए कानूनों को रदद करने की जिद की जा रही है।
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