पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू हो या फिर केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती। चार माह बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव ममता बनर्जी के शासन में निष्पक्ष नहीं हो सकते। राज्यपाल को कुछ समझती नहीं और अब केन्द्र सरकार के अधिकारों को भी चुनौती दे रही है मुख्यमंत्री।
14 दिसम्बर को भी पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ता सुखदेव का शव एक तालाब के किनारे पड़ा मिला है। सत्तारुढ़ टीएमसी के दंगाइयों ने वर्धमान में भाजपा कार्यालय को आग लगा दी। बंगाल में अब तक भाजपा और संघ के 130 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। एक ओर बंगाल में हिंसा का दौर जारी है तो दूसरी ओर ममता बनर्जी की सरकार सीधे तौर पर केन्द्र के अधिकारों को चुनौती दे रही है। 14 दिसम्बर को ही बंगाल के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली में गृह मंत्रालय में उपस्थित होना था, लेकिन इन दोनों अधिकारियों को राज्य सरकार ने दिल्ली जाने की अनुमति नहीं दी। इससे पहले तीन आईपीएस को प्रति नियुक्ति पर दिल्ली बुलाया था, लेकिन इन अधिकारियों को भी राज्य सरकार ने रिलीव नहीं किया। असल में पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष अप्रैल में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से पहले चारों तरफ सत्तारुढ़ टीएमसी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का विरोध हो रहा है। इस विरोध से ममता बनर्जी घबराई हुई है और वो सब हथकंडे अपना रही है जिससे लोगों को डराया धमकाया जा सके। टीएमसी के कार्यकर्ता किस विचारधारा के हैं यह सबको पता है, इसलिए आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही है। बंगाल में कितनी अराजकता वाला माहौल है, इसका अंदाजा 10 दिसम्बर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले से पता चलता है। नड्डा को जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है, लेकिन इसके बाद भी बंगाल में उनकी कार पर पत्थर फेंके गए। इससे पत्थर फेंकने वालों की हिम्मत का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब केन्द्र सरकार ने नड्डा की सुरक्षा में लगे तीन आईपीएस को प्रति नियुक्ति पर दिल्ली बुलाया तो ममता बनर्जी ने रिलीव करने से इनकार दिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि केन्द्र सरकार अपने अधिकारों के तहत किसी भी राज्य के आईएएस और आईपीएस को प्रति नियुक्ति पर बुला सकती है। ममता बनर्जी पहले ही राज्यपाल को कुछ भी नहीं समझती थी और अब केन्द्र को सीधे चुनौती दे रही है। ममता को लगता है कि पश्चिम बंगाल उनका और उनके समर्थकों का देश है, इसलिए वे अपनी मर्जी से शासन करेंगी। लेकिन ममता को यह समझना चाहिए कि पश्चिम बंगाल भारत का एक राज्य और इस राज्य की रक्षा करना केन्द्र सरकार की दायित्व है। यदि पश्चिम बंगाल में देश विरोधी ताकतें सक्रिय होंगी तो केन्द्र को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। ममता बनर्जी के भरोसे बंगाल को यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता है। ममता बनर्जी को लगता है कि मतदाताओं को डरा धमका कर तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली जाए। यह सही है कि मौजूदा हालातों में बंगाल में निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं। ऐसे में या तो राष्ट्रपति शासन लागू करने की जरुरत है या फिर केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती। केन्द्र सरकार को राज्यपाल जगदीश धनकड़ की रिर्पोटों को गंभीरता से लेना चाहिए। धनकड़ ने समय समय पर पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था को लेकर रिपोर्ट भेजी है। ममता ने कई बार राज्यपाल धनकड़ का भी अपमान किया है। किसी भी राज्य में राज्यपाल देश के राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं। राज्यपाल के अपमान का मतलब राष्ट्रपति का अपमान है। सब जानते हैं कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में भी आपत्तिजनक टिप्पणी करती है। यानि ममता बनर्जी सत्ता के नशे में राष्ट्रपति ओर प्रधानमंत्री तक का अपमान कर रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी किस सोच के साथ पश्चिम बंगाल में शासन कर रही है। जबकि पश्चिम बंगाल की सीमा बांग्लादेश से लगी हुई है। बांग्लादेश के हालातों के बारे में सब जानते है। सीमावर्ती प्रदेश में यदि अराजकता होगी तो देश विरोधी ताकतों को लाभ मिलेगा। पश्चिम बंगाल के प्रति लापरवाही या अनदेखी अब भारी पड़ेगी। केन्द्र सरकार को तत्काल सख्त कदम उठाने चाहिए। S.P.MITTAL BLOGGER (14-12-2020)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogBlog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9509707595To Contact- 982907
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