राजस्थान में भारतीय ट्राइबल पार्टी से गठबंधन का प्रस्ताव कर असदुद्दीन ओवैसी लखनऊ पहुंचे। ओवैसी ने भाजपा के गढ़ से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौती दी। बिहार में पांच सीटें जीत कर देशभर में दौड़ रहे हैं ओवैसी।
16 दिसम्बर को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहे। यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन ओवैसी ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी है। 16 दिसम्बर को ओवैसी ने दलित वर्ग के नेता ओम प्रकाश राजभर से मुलाकात कर गठबंधन के प्रस्ताव पर विचार किया। ओवैसी ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के समक्ष भी गठबंधन का प्रस्ताव किया जाएगा। ओवैसी को अब तक हैदराबाद तक ही सीमित माना जाता था, लेकिन हाल के बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद ओवैसी पूरे देश में दौड़ लगा रहे हैं। बिहार में कई स्थानों पर कांग्रेस की हार का कारण ओवैसी के उम्मीदवार ही बने। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी की सोच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिहार में जिन विधानसभा क्षेत्रों में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या 60 प्रतिशत से ऊपर थी, वहां कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू की अनदेखी कर एआईएमआईएम के उम्मीदवार को वोट मिले। यही वजह है कि अब ओवैसी अच्छे और बुरे मुसलमान का मुद्दा उठा रहे है। भाजपा के गढ़ माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ओवैसी ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौती दी। बंगाल में चार माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। ओवैसी ने बंगाल में अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर रखी है। इस घोषणा पर ही ममता बनर्जी ने कहा कि अल्पसंख्यकों के वोट खरीदने के लिए भाजपा ने पैसा दिया है। 16 दिसम्बर को ओवैसी ने लखनऊ से कहा कि मुझे पैसे से कोई नहीं खरीद सकता है। ममता बनर्जी का अच्छे मुसलमानों से पाला नहीं पड़ा है। ममता बनर्जी बताएं कि टीएमसी के बड़े बड़े नेता भाजपा में क्यों शामिल हो रहे हैं। ममता अब अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा नहीं कर सकती है। असल में ममता को डर है कि ओवैसी के आने से अल्पसंख्यकों के वोट विभाजित हो जाएंगे, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा।
बीटीपी के समक्ष प्रस्ताव:
राजस्थान में 2023 के अंत में चुनाव होने हैं, लेकिन बिहार चुनाव की सफलता से उत्साहित ओवैसी ने राजस्थान में अभी से नजरें गढ़ा दी हैं। प्रदेश के आदिवासी बहुल्य क्षेत्र बांसवाड़ा, डूंगरपुर आदि में तेजी से प्रभाव जमा रही भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के समक्ष गठबंधन का प्रस्ताव रख दिया है। बीटीपी ने भी ओवैसी के प्रस्ताव को खारिज नहीं किया है। असल में बीटीपी इन दिनों सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी से खफा है। डूंगरपुर जिला परिषद के चुनाव में 21 सदस्यों में से 13 बीटीपी के जीते हैं। बीटीपी का जिला प्रमुख बनना तय था। बीटीपी को उम्मीद थी कि कांग्रेस के पांच सदस्य भी समर्थन देंगे, लेकिन ऐनमौके पर कांग्रेस ने भाजपा से हाथ मिला लिया। भाजपा के पास 9 सदस्य थे, इसलिए बीटीपी का जिला प्रमुख नहीं बन सका। कांग्रेस की इस हरकत से खफा बीटीपी ने अशोक गहलोत की सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। बीटीपी के दो विधायक हैं। हालांकि इन दोनों विधायक राजकुमार रोत और राम प्रसाद ढिंढोर ने समर्थन वापसी के लिए अभी तक भी विधानसभा अध्यक्ष को लिख कर नहीं दिया है। जब तक ये दोनों विधायक लिख कर नहीं देंगे, तब तक समर्थन वापसी की घोषणा कोई मायने नहीं रखती है। अब बीटीपी से समर्थन को लेकर कांग्रेस के सामने भी संकट खड़ा हो गया है। एक बीटीपी ओवैसी के साथ गठबंधन पर विचार कर रही है, तो दूसरी ओर उसी बीटीपी के समर्थन से कांग्रेस की सरकार चल रही है।
S.P.MITTAL BLOGGER (16-12-2020)
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