भाजपा में रहते हुए वसुंधरा राजे ने तो भैरोसिंह शेखावत तक का स्वाभिमान कुचल दिया था। जबकि राजनीति में शेखावत का कद बहुत ऊँचा था। क्या टीम बना कर वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति में अपना वजूद कायम रख पाएंगी? किसी नेता के वजूद से पार्टी नहीं है-पूनिया।

कहने को तो राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अभी भी भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि 8 जनवरी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजस्थान के प्रमुख भाजपा नेताओं को आमंत्रित किया, उसमें वसुंधरा राजे शामिल नहीं थी। वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद ही वसुंधरा राजे भाजपा की राजनीति में अलग थलग हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए भी वसुंधरा राजे ने जो घमंड पूर्ण रवैया प्रकट किया, उससे राष्ट्रीय नेतृत्व नाराज ही रहा। हालांकि पार्टी में अपनी उपेक्षा के लिए खुद वसुंधरा राजे जिम्मेदार हैं, लेकिन वे अभी भी सच को स्वीकार नहीं कर रही हैं और दबाव की राजनीति कर रही हैं। अब प्रदेश भर में टीम वसुंधरा राजे तैयार की जा रही है। टीम के सदस्यों को स्वयं वसुंधरा राजे उकसा रही हैं। हालांकि टीम वसुंधरा में भाजपा के जिम्मेदार कार्यकर्ता की संख्या बहुत कम है। टीम में वो ही लोग शामिल हो रहे हैं, जिन्होंने वसुंधरा के मुख्यमंत्री रहते हुए फायदा उठाया। सवाल उठता है कि क्या टीम बनाकर वसुंधरा राजे भाजपा की राजनीति में अपना वजूद कायम रख सकती हैं? वसुंधरा राजे को पहले भैरोसिंह शेखावत की स्थिति को देख लेना चाहिए। राजस्थान की राजनीति में रुचि रखने वाले वाले जानते हैं कि वर्ष 2007 में राष्ट्रपति का चुनाव हारने के बाद शेखावत राजस्थान की राजनीति में लौट आए। तब वसुंधरा राजे प्रदेश की भाजपा सरकार की सीएम थीं। वसुंधरा को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में शेखावत की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वसुंधरा तो राजस्थान में बहु बनकर आई थी, लेकिन शेखावत ने वसुंधरा को प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करवाया। इसीलिए शेखावत को उम्मीद थी कि वसुंधरा के शासन में राजस्थान में मान सम्मान मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालात इतने बिगड़े की शेखावत को वसुंधरा राजे के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाना पड़ा। तब शेखावत ने अजमेर सहित प्रदेश के कई बड़े शहरों का दौरा कर वसुंधरा के खिलाफ सभाएं की। लेकिन वसुंधरा ने शेखावत के स्वाभिमान को कुचल दिया। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि तब वसुंधरा की भाजपा पर पकड़ थी। राजनीति में शेखावत का कद वसुंधरा से काफी बड़ा था। शेखावत तीन बार राजस्थान के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे तो एक बार देश के उपराष्ट्रपति भी बने। भाजपा के चुनिंदा नेताओं में से शेखावत की गिनती होती थी। जब शेखावत जैसे राजनीतिक कद के व्यक्ति को ही पार्टी से बाहर वजूद कायम रखने में सफलता नहीं मिली तो फिर वसुंधरा राजे की क्या हैसियत हैं? पहले विधानसभा चुनाव और कांग्रेस के राजनीतिक संकट में वसुंधरा राजे भाजपा को जितना नुकसान पहुंचा सकती थी, उतना पहुंचा दिया। राजस्थान में अब भाजपा वसुंधरा राजे के कंधों से उतर कार्यकर्ताओं के पैरों पर खड़ी हैं। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने न केवल कार्यकर्ताओं को एकजुट किया है, बल्कि बड़े नेताओं के साथ तालमेल बैठाया है। 8 जनवरी को भी प्रदेशाध्यक्ष प्रमुख नेता एकजुट होकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले।

अजमेर में हुआ था शानदार स्वागत:

वर्ष 2007 में जब भैरोसिंह शेखावत अजमेर आए, तब सावित्री कॉलेज के सामने स्थित एक समारोह स्थल पर सैय्यद अब्दुल बारी, एडवोकेट पूर्णाशंकर दशोरा, शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के प्रमुख नेता एसएन गर्ग आदि ने भीड़ जुटाने में मेहनत की। तब शेखावत ने समारोह स्थल पर ही एक सभा को भी संबोधित किया। शेखावत के अजमेर यात्रा के फोटो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखे जा सकते हैं।

नेता के वजूद से पार्टी नहीं:

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने टीम वसुंधरा राजे की खबरों पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन पूनिया ने कहा कि किसी नेता के वजूद से पार्टी नहीं है, पार्टी तो संगठन विचार और कार्यकर्ताओं से बनती है। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता का वजूद संगठन से हैं। वैसे भी राजस्थान के हालातों पर राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (09-01-2021)

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