कृषि कानूनों पर रोक लगाने के बाद भी जिद पर अड़े किसानों के सामने सुप्रीम कोर्ट लाचार नजर आया। सीजेआई ने कहा कि कमेटी हम अपने लिए बना रहे हैं। सुनवाई शुरू होने से पहले ही किसान संगठनों ने कह दिया कोर्ट की कमेटी में शामिल नहीं होंगे। रोक नहीं, कानून रद्द हो। 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली की आड़ में दिल्ली में आतंकवादी घुस आए तो कौन जिम्मेदार होगा?-हरीश साल्वे।
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार द्वारा बनाए तीनों कृषि कानूनों की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही कानून की समीक्षा के लिए चार सदस्यीय कमेटी बनाने की घोषणा भी की। सीजेआई एसए बोबड़े ने स्पष्ट कहा कि यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट अपने लिए बना रहा है। कृषि कानूनों पर रोक लगाने के बावजूद भी 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट उन किसानों के सामने लाचार नजर आया, जो पिछले 48 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर धरना देकर बैठे हैं। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और आंदोलन के प्रमुख नेता राकेश टीकेत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की रोक उनके लिए कोई मायने नहीं रखती है। दिल्ली की सीमाओं से किसान तभी हटेंगे जब केन्द्र सरकार तीनों कानूनों को रद्द करने का निर्णय लेगी। असल में सीजेआई बोबड़े को उम्मीद थी कि उन्होंने 11 जनवरी को सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार पर जो तल्ख टिप्पणी की और किसानों के प्रति जो सहानुभूति जताई उसे देखते हुए आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधि सकारात्मक रुख अपनाएंगे। लेकिन 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में उल्टा माहौल नजर आया। 11 जनवरी को किसान यूनियनों की ओर से जिन वकील दुष्यंत दवे ने पैरवी की वो 12 जनवरी को कोर्ट में उपस्थित ही नहीं हुए। सीजेआई बोबड़े ने जानना चाहा कि आज दुष्यंत दवे कहां हैं। हालांकि कोर्ट में दिल्ली के नागरिकों की ओर से दायर याचिकाकर्ताओं के वकील हरीश साल्वे उपस्थित रहे। साल्वे ने कहा कि सरकार ने आंदोलनकारी किसानों को समझाने के बहुत प्रयास किए। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। साल्वे ने सवाल उठाया कि 26 जनवरी को किसानों की ट्रेक्टर रैली की आड़ में यदि आतंकवादी दिल्ली में घुस आए तो कौन जिम्मेदार होगा? साल्वे ने कहा कि किसान आंदोलन को सिक्ख फॉर जस्टिस का समर्थन प्राप्त है। सब जानते हैं कि यह संगठन खालिस्तान का समर्थक है। देश के लिए यह चिंता की बात है। सुनवाई के दौरान ही केन्द्र सरकार की ओर से एक हलफ़नामा पेश किया गया, जिसमें कहा गया कि कानूनों को लेकर गलत फहमी फैलाई जा रही है। किसान यूनियनों के साथ लम्बे विचार विमर्श के बाद ही सरकार ने तीन कानून बनाए हैं। कानून में स्पष्ट है कि किसी भी जमीन का कान्ट्रेक्ट नहीं होगा। कॉन्ट्रेक्ट सिर्फ किसान की फसल का होगा। यह कॉन्ट्रेक्ट भी किसान की सहमति से होगा। यदि कोई किसान अपने फसल का कान्ट्रेक्ट नहीं करना चाहता है तो वह अपने फसल को पहले की तरह कृषि मंडियों में बेचने के लिए स्वतंत्र है। कानून में कॉन्ट्रेक्ट तोडऩे का अधिकार भी सिर्फ किसान को ही दिया गया है। प्राकृतिक आपदा के बाद भी बड़ा कारोबारी कान्ट्रेक्ट का पालन करने के लिए बाध्य है। सरकार की ओर से कहा गया कि कानून में किसानों के हित सुरक्षित रखे गए हैं।सुप्रीम कोर्ट की रोक के क्या मायने हैं?:12 जनवरी को भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर रोक लगा दी हो, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कोर्ट की इस रोक के क्या मायने हैं? जो किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हुए हैं उन्होंने कोर्ट की ऐसी रोक पर पहले ही असहमति जता दी है। यानि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन जारी रहेगा। इतना ही नहीं 26 जनवरी को बड़ी संख्या में किसान अपने ट्रेक्टर लेकर दिल्ली में प्रवेश करेंगे। अब जब आंदोलनकारी किसान अपनी जिद पर अड़े हुए हैं, तब सवाल उठता है कि समस्या का समाधान कैसे होगा?सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से एक सकारात्मक पहल की है, लेकिन यह पहल भी आंदोलनकारी किसानों को मंजूर नहीं है। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि जिन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की जा रही है, उन कानूनों को संसद से मंजूर करवाया गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद और न्याय पालिका का अपना महत्व है। लेकिन आज लोकतंत्र की ये दोनों संस्थाएं लाचार और बेबस नजर आ रही है। S.P.MITTAL BLOGGER (12-01-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9509707595To Contact- 9829071511