सीमा पर चीन और पाकिस्तान को मात देने वाले हमारे जवान 26 जनवरी को दिल्ली में बेबस और लाचार नजर आए। यदि सीमा की तरह छूट होती तो क्या कोई लालकिले पर तिरंगे को उतारने की हिमाकत कर सकता था? किसानों के नेता अब न्यूज चैनलों पर बैठ कर माफी मांगने का ढोंग कर रहे हैं।
सब जानते हैं कि भारतीय जवानों ने सीमा पर दुश्मन देश चीन और पाकिस्तान को सबक सिखाया है, दुनिया का सबसे ताक़तवर देश माने जाने वाले चीन को भी लद्दाख सीमा पर हमारे जवानों ने नियंत्रित कर रखा है। कश्मीर में हार जाने के बाद पाकिस्तान तो अब चीन के कंधों पर सवार हो गया है, लेकिन ये दोनों देश मिलकर भी हमाारे जवानों का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। सीमा पर जवानों को जो छूट मिली हुई है, उसी का परिणाम है कि चीन और पाकिस्तान हरकतों का मुंह तोड़ जवाब दिया जाता है। लेकिन 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन सबने देखा कि दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले से हमारे तिरंगे को उतार दिया गया। सवाल उठता है कि यदि दिल्ली में तैनात हमारे जवानों को छूट मिली होती तो क्या कोई व्यक्ति लाल किले से तिरंगे को उतार सकता था? हम सबने देखा कि किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को जिस तरह देश की राजधानी दिल्ली में उपद्रव किया गया। न्यूज़ चैनलों पर हमारे जवानो को पिटता हुआ दिखाया जा रहा है। हमारे जवान लाचार और बेबस नजर आए। पिटने के बाद भी हमारे जवान हाथ जोड़कर खड़े रहे। अराजकतत्वों को जितना हुड़दंग करना था उतना किया। तलवार, फर्से, भाले, लाठियां आदि हथियारों से अराजकतत्व पुलिस और आम लोगों को देश की राजधानी में डराते और धमकाते रहे। जो टे्रक्टर खेत में काम आता है उस ट्रेक्टर से पुलिस के वाहन और डीटीसी की बसों को तोड़ा गया। पुलिस के बेरीकेड ट्रेक्टरों से हटा दिया गया। यहां तक कि डिवाइडर पर लगी लोहे की रैलिंग भी तोड़ दी गई। ऐसा लगा कि दिल्ली में अराजकतत्वों ने कब्जा कर लिया है। हमारे जवान अराजकतत्वों के सामने भी इसलिए बेबस बने रहे कि देश में लोकतंत्र हैं। इतनी छूट और आजादी के बाद कई मौकों पर कुछ लोगों को लगता है कि भारत में विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। ऐसे लोग अब दिल्ली में अराजकता करने वालों की निंदा क्यों नहीं करते हैं? तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पंजाब के किसान दिल्ली की सीमाओं पर दो माह से धरना दिए बैठे हैं और अपने आंदोजन के अंतर्गत ही 26 जनवरी को दिल्ली में टे्रक्टर मार्च की जिद्द की थी। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने किसान यूनियन के नेताओं को चेताया था कि टे्रक्टर मार्च की आड़ में अराजकतत्व दिल्ली का माहौल खराब कर सकते हैं, लेकिन तब नेताओं ने शांति बनाए रखने का भरोसा दिलाया, लेकिन किसान नेता अपने वायदे पर कायम नहीं रह सके और अब टीवी चैनलों पर बैठक कर माफी मांगने का ढोंग कर रहे हैं। ऐसे नेता अब स्वीकार कर रहे हैं कि जिन लोगों ने दिल्ली में अराजकता फैलाई उनका संयुक्त किसान मोर्चे से कोई संबंध नहीं है। सवाल उठता है कि जब दिल्ली पुलिस आगाह कर रही थी, तब इन किसान नेताओं ने सच्चाई को स्वीकार क्यों नहीं किया? किसान नेता अब भले ही कुछ भी कहें, लेकिन वे अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं, जितना दोष अराजकतत्वों का है, उतना ही दोष किसान नेताओं का भी है। सवाल यह भी है कि जिन लोगों ने अराजकता फैलाई क्या वे किसान है? देश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वाले भी किसान नहीं हो सकते। किसान तो अन्नदाता है, वह तो देश के हर नागरिक को भोजन उपलब्ध करवाना है। किसान तो दयालु प्रवृत्ति का प्रतीक है। 26 जनवरी के उपद्रव के बाद दिल्ली की सीमाओं पर बैठे असली किसानों को अब अपने आंदोलन पर विचार करना चाहिए। जब यह साफ हो गया है कि किसान आंदोलन की आड़ में अराजकतत्व सक्रिय हैं, तब किसान आंदोलन क्या मायने रखता है? दिल्ली के उपद्रव से कई राजनीतिक नेताओं के चेहरे पर से भी नकाब उतर गई है। क्या अब भी ऐसे राजनेता कथित किसान आंदोलन को अपना समर्थन देंगे? यह माना कि कई राजनीतिक दल अपने स्वार्थों के कारण आंदोलन को समर्थन दे रहे थे, लेकिन अब तो सच्चाई सामने आ गई है। राजनीतिक दलों के नेता अब दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सोचे। राजनीतिक दलों के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि अराजकतत्व हमेशा अराजक ही बने रहते हैं, ऐसे तत्व किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। S.P.MITTAL BLOGGER (27-01-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9509707595To Contact- 98290
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