दिल्ली हिंसा को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया। दिल्ली की सीमाओं पर अब किसानों के धरने का क्या औचित्य है? हिंसा फैलाने वाले नेताओं को जेल में होना चाहिए।
29 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति ने लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के बीच कहा कि 26 जनवरी को गणतंत्र के पवित्र दिन दिल्ली में जो हिंसा हुई वह दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस तरह तिरंगे का अपमान किया गया, वह भी दुर्भाग्यपूर्ण है। यह तब हुआ जब केन्द्र सरकार किसानों के लिए बहुत कुछ कर रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि तीन कृषि कानूनों के लागू होने से किसानों को नया बाजार उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों पर रोक लगा दी है, तब हिंसा की कोई जरुरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अपनी वाजिब मांगों के लिए किसानों को आंदोलन का अधिकार है, लेकिन ऐसे आंदोलन में हिंसा की कोई गुंजाईश नहीं है। एक ओर संसद में राष्ट्रपति ने अपने विचार व्यक्त किए तो वहीं दूसरी ओर दिल्ली की सीमाओं पर 29 जनवरी को भी धरना प्रदर्शन का जोर रहा। हालांकि स्थानीय प्रशासन ने ऐसे धरनों को अवैध घोषित कर दिया है और धरनों को हटाने के आदेश जारी कर दिए हैं। सवाल उठता है कि 26 जनवरी को दिल्ली में जिस प्रकार हिंसा हुई और लालकिले पर तिरंगे का अपमान हुआ, उसे देखते हुए क्या अब किसान आंदोलन का कोई औचित्य है? हालांकि दिल्ली हिंसा के बाद कई किसान संगठनों ने आंदोलन से अलग होने की घोषणा की है, लेकिन अभी भी हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने 28 जनवरी को जिस तरह आंसू बहाए उससे लगता है कि किसानों का धरना प्रदर्शन लम्बा चलेगा। टिकैत ने रोते हुए कहा कि वे अपने समर्थकों के साथ दिल्ली की सीमाओं पर जमे रहेंगे। सवाल यह भी है कि जिन किसान नेताओं पर दिल्ली में हिंसा फैलाने का आरोप है, उन्हें क्या अब धरना देने का अधिकार है। कानून के हिसाब से तो ऐसे नेताओं को जेल में होना चाहिए। सब जानते हैं कि दिल्ली की हिंसा में पुलिस के 400 जवान जख्मी हुए जो अब अपना इलाज अस्पतालों में करवा रहे हैं। क्या पुलिस जवानों पर हमला करने वाले लोग आंदोलन चलाने के हक़दार हैं। जहां तक कृषि कानूनों का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही रोक लगा चुका है और कानूनों की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी भी बना दी है। यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देगी, एक तरह से तीनों कानून न्यायिक समीक्षा की परिधि में आ गए हैं, इसलिए संवैधानिक तौर पर भी इन कानूनों को लेकर आंदोलन की कोई जरूरत नहीं है।
S.P.MITTAL BLOGGER (29-01-2021)
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