ममता बनर्जी अब भले ही व्हीलचेयर पर रोड शो करें, लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति बदल चुकी है।
14 मार्च को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में व्हीलचेयर पर बैठ कर चुनावी रोड शो किया। पैर में चोट लगने के बाद ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल में यह पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था। ममता का आरोप है कि नंदीग्राम से नामांकन के समय उन पर हमला हुआ और पैर में चोट आ गई। हालांकि हमले की बात को प्रत्यक्षदर्शियों ने नकार दिया है, लेकिन विधानसभा चुनाव में राजनीतिक फायदा उठाने के लिए ममता चोट ग्रस्त पैर के साथ ही व्हीलचेयर पर रोड शो कर रही हैें। ऐसे रोड शो से ममता की टीएमसी को कितना फायदा होगा, यह तो दो मई को मतगणना वाले दिन ही पता चलेगा, लेकिन अब पश्चिम बंगाल की राजनीति का चरित्र बदल गया है। बंगाल की राजनीति का इतिहास बताता है कि कांग्रेस से लेकर टीएमसी तक के शासन में राजनीतिक हिंसा होती रही। पहले वामपंथियों ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के सत्तारूढ़ नेता कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या करवाते हैं और फिर जब वामपंथियों की सरकार बनी तो ममता बनर्जी ने टीएमसी के कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप लगाया। ऐसे आरोप लगाकर ही ममता ने कम्युनिस्टों के 20 वर्ष पुराने किले को ढहा दिया। लेकिन ममता के शासन में भी राजनीतिक हत्याओं का दौर नहीं थमा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्याएं की गई। इसे बंगाल की राजनीति का चरित्र ही कहा जाएगा कि हत्या करने वालों को सरकार का संरक्षण रहा। फिर चाहे सरकार कांग्रेस की हो या कम्युनिस्टों की। यह कहा जा सकता है कि आपराधिक प्रवृत्तियों के लोग परंपरागत तरीके से सत्ता का संरक्षण पाते रहे। लेकिन इस बार पश्चिम बंगाल की राजनीति बदल गई है। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को भी इस बात का अहसास हो गया है। यदि ममता बनर्जी पर सही मायने में हमला हो जाता तो चुनाव के मौके पर आग लग जाती। लेकिन इसके उलट अब अपने पैर की चोट को सहानुभूति में बदलने की कोशिश की जा रही है, यही बंगाल की राजनीति में बदलाव का संकेत हैं। ममता को भी अहसास हो गया है कि संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्या से टीएमसी को भारी नुकसान हुआ। जिस भाजपा को 2016 के विधानसभा चुनाव में मात्र दो सीटे मिली थी, उसी भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 115 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, जबकि बंगाल में 294 सीटें हैं और लोकसभा की बढ़त से ताजा विधानसभा चुनाव के परिणाम का अंदाजा लगाया जा सकता है। जितनी क्रूरता से टीएमसी के लोगों ने हत्याएं की, उतनी ही ताकत से बंगाल के लोगों ने लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी को सबक सिखाया। यानि कांग्रेस कम्युनिस्ट और टीएमसी के शासन में हत्या का बदला हत्या से लेने की परंपरा के बजाए अपराधियों को वोट से सबक सिखाया जा रहा है। ममता बनर्जी को अपनी स्थिति का अंदाजा इसी से लगा लेना चाहिए कि लोकसभा की 42 में से 18 सीटे भाजपा को मिली है। जबकि टीएमसी 38 सीटों से सिमट कर 22 सीटों पर आ गई। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी के शासन में जो हालात थे वैसी ही अब बंगाल के हैं। लेकिन यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद गुंडा तत्वों के हालात देखे जा सकते हैं। ममता बनर्जी माने या नहीं लेकिन बंगाल के लोग भी अब गुंडा तत्वों के खिलाफ सख्त कार्यवाही ही चाहते हैं, ताकि शांति और भाईचारे के साथ रहा जा सके। यहां यह खास तौर से उल्लेखनीय है कि मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में तो टीएमसी के प्रभावशाली नेता भाजपा में शामिल नहीं हुए थे। विधानसभा चुनाव के आते आते टीएमसी के सांसद, मंत्री, विधायक भी बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल हो गए हैं। इससे ममता की टीएमसी और कमजोर हुई है। ममता ने तुष्टीकरण के खातिर धर्म के आधार पर निर्णय लिए उससे भी बंगाल में राजनीति में बदलाव हो रहा है।
S.P.MITTAL BLOGGER (14-03-2021)
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