जिन ऑडियो क्लिप को आधार बनाकर महेश जोशी ने राजद्रोह के मुकदमें दर्ज करवाए, वो क्लिप मुख्यमंत्री के ओएसडी लोकेश शर्मा के पास कहां से आई? आखिर एसओजी ने लोकेश शर्मा से पूछ ताछ करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाई? मुख्यमंत्री बनने से पहले भी अशोक गहलोत का सोशल मीडिया लोकेश ही चलाते थे। क्या भरत मालानी और अशोक सिंह हथियारों व विस्फोटक पदार्थों के कारोबार से जुड़े थे?
राजस्थान की राजनीति में हलचल मचाने वाले फोन टैपिंग के प्रकरण में केन्द्र बिन्दू मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा हो गए हैं। 17 मार्च को सरकार के वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल ने स्वीकार किया कि ऑडियो क्लिप लोकेश शर्मा के मोबाइल फोन से ही वायरल हुई। इस तथ्य को स्वीकार कर सरकार ने वाकई ईमानदारी का परिचय दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि यह क्लिप लोकेश शर्मा के पास कहां से आई? धारीवाल ने अपने जवाब में स्वीकार कर के पुलिस इंस्पेक्टर विजय कुमार राय ने जयपुर के अशोक सिंह और अजमेर ब्यावर के भरत मालानी के फोन नियमों के तहत टेप किए थे। फोन टैपिंग की बातों को बहुत गोपनीय रखा जाता है, तो फिर इंस्पेक्टर विजय कुमार द्वारा फोन टैपिंग की ऑडियो क्लिप लोकेश शर्मा के मोबाइल में कैसे आई? क्या इंस्पेक्टर विजय कुमार ने ऑडियो क्लिप लोकेश को भेजी? सब जानते हैं कि लोकेश की अपनी कोई हैसियत नहीं है। गहलोत जब मुख्यमंत्री नहीं बने थे, तब लोकेश ही जयपुर में गहलोत को सोशल मीडिया पर सक्रिय रखते थे। यही वजह रही कि जब गहलोत सीएम बने तो लोकेश को ओएसडी का दर्जा दे दिया। गहलोत ने लोकेश जैसे कम से कम 10 ओएसडी बनाए होंगे। भले ही लोकेश की स्वयं की कोई हैसियत नहीं हो, लेकिन वो कहलाएंगे तो मुख्यमंत्री के ओएसडी। चूंकि लोकेश सोशल मीडिया के जानकार हैं, इसलिए उन्होंने पहले ऑडियो क्लिप हासिल की और न्यूज चैनलों और अखबारों के रिपोटर्स को भेज दी। न्यूज चैनलों पर प्रसारित ऑडियो क्लिप को आधार बना कर ही सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी ने एसओजी में तीन मुकदमें दर्ज करवाए। इन मुकदमों के दम पर ही मुख्यमंत्री के अधी नकाम करने वाली एसओजी ने सचिन पायलट और उनके समर्थक 18 विधायकों पर दबाव बनाए रखा गया। एसओजी की टीम कांग्रेस के बागी विधायकों को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली तक पहुंच गई। कांग्रेस के और विधायक नहीं भागे इसलिए कोरोना की आड़ लेकर प्रदेश की सीमाएं तक सील कर दी गई। यानि कांग्रेस के राजनीति में लोकेश शर्मा द्वारा ऑडियो क्लिप ही महत्वपूर्ण रही। एसओजी कांग्रेस के विधायकों को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली तक पहुंच गई, लेकिन लोकेश शर्मा से कोई पूछताछ नहीं की। क्या यह लोकेश का मुख्यमंत्री का ओएसडी होने का रुतबा नहीं था? यदि लोकेश के पास ऑडियो क्लिप नहीं होती तो महेश जोशी किस आधार पर मुकदमा दर्ज करवाते? शांति धारीवाल भले ही कुछ भी दावा करें, लेकिन इस बात की जांच होनी ही चाहिए कि लोकेश के पास ऑडियो क्लिप कहां से आई? और इस मामले में फोन टेप करने वाले इंस्पेक्टर विजय कुमार राय की क्या भूमिका है? आखिर इंस्पेक्टर राय ने किस उच्च अधिकारी को ऑडियो क्लिप दीं? स्वाभाविक हैं कि इन सवालों की जांच मुख्यमंत्री के अधीन काम करने वाली राजस्थान पुलिस तो करेगी नहीं। इसलिए अब विपक्ष सीबीआई की जांच की मांग कर रहा है। सवाल भरत मालानी और अशोक सिंह के फोन टेप कराने का भी है। धारीवाल ने कहा कि अवैध हथियारों और विस्फोटक पदार्थों की तस्करी की सूचनाएं लेने के लिए मालानी और अशोक सिंह के फोन टेप किए। सवाल उठता है कि क्या मालानी और अशोक सिंह के कारोबार की पृष्ठभूमि हथियारों और विस्फोटक पदार्थ के कारोबार की रही है? यदि मामला इतना ही गंभीर था तो फिर तीनों मामलों में एफआर क्यों लगाई गई? जाहिर की सारी कवायद सरकार को राजनीतिक संकट से बचाने के लिए की गई और इसमें पुलिस का इस्तेमाल किया गया।