राजस्थान पत्रिका ने फिर झुठलाया ऑक्सीजन की उपलब्धता पर अजमेर प्रशासन के दावों को। जवाहर फाउंडेशन के कोविड केयर और वेटिंग वार्ड बनने के बाद भी तड़पते मरीजों को अजमेर के जेएलएन अस्पताल के बाहर इंतजार करना पड़ रहा है। कोई ई-रिक्शा में पड़ा है तो कोई कुर्सी पर।
10 मई को अजमेर के जिला प्रशासन ने दावा किया था कि अब जेएलएन अस्पताल के बाहर कोरोना संक्रमित मरी ज को भर्ती होने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अब अस्पताल में वेटिंग वार्ड तैयार कर दिया है। मरीज के पहुंचते ही वेटिंग वार्ड के बेड पर ले जाया जाएगा। मरीज का टिकट बनाने के बाद उसे कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा और फिर ऑक्सीजन से लेकर जरूरी दवाएं भी नि:शुल्क दी जाएंगी। 13 मई को भी प्रमुख दैनिक अखबारों में छपा कि जवाहर फाउंडेशन के सहयोग से जेएलएन अस्पताल में 60 बेड का कोविड केयर वार्ड तैयार हो गया है। वातानुकूलित इस वार्ड में मरीजों का इलाज भी शुरू हो गया है। अखबारों में वार्ड के फोटो भी छपे, लेकिन प्रशासन के इन सब दावों की पोल 13 मई को ही राजस्थान पत्रिका ने खोल दी। अखबार के अजमेर संस्करण के पृष्ठ दो पर जेएलएन अस्पताल के बाहर पड़े चार कोविड मरीजों की फोटो सहित खबर छपी हैं। अजमेर के गुर्जर धरती निवासी 55 वर्षीय ललिता देवी भर्ती होने के इंतजार में ई-रिक्शा में पड़ी है तो चांद बावड़ी निवासी बुजुर्ग महिला कुर्सी पर बेसुध है। फॉयसागर रोड निवासी 60 वर्षीय मुन्नी बेगम और भूडोल निवासी सूरमा देवी की भी यही स्थिति है। राजस्थान पत्रिका प्रदेश का प्रतिष्ठित अखबार है। सबूतों के आधार पर ही खबर प्रकाशित होती है। सवाल उठता है कि जब जेएलएन अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए प्रशासन ने वेटिंग वार्ड और जवाहर फाउंडेशन ने 60 बेड वाला कोविड केयर वार्ड बनवा दिया है तो फिर अभी भी मरीजों को जेएलएन अस्पताल के बाहर घंटों क्यों पड़े या खड़े होना पड़ रहा है? जाहिर है जो कहा जाता है वो हकीकत में है नहीं। जब मरीजों की केयर ही नहीं हो रही तो फिर जवाहर फाउंडेशन के कोविड केयर वार्ड का क्या फायदा? क्या सिर्फ 15 लाख रुपए का सामान उपलब्ध करवा देने से कोविड मरीजों का इलाज हो जाएगा? वाहवाही लूटने के लिए तो यह अच्छा है, लेकिन अस्पताल के फर्श पर इसका लाभ देखने को नहीं मिल रहा है। बेड की तो सरकारी खासकर अजमेर के जेएलएन अस्पताल में कोई कमी नहीं है। प्रशासन माने या नहीं, लेकिन जेएलएन अस्पताल में अभी भी ऑक्सीजन की कमी है। प्रशासन चाहे जितने वेटिंग वार्ड या कोविड केयर वार्ड बनवा ले, लेकिन जब तक जरूरी ऑक्सीजन नहीं होगा, तब तक जेएलएन अस्पताल कोविड मरीजों की ऐसी ही दुर्दशा होगी। जेएलएन अस्पताल आने से पहले परिजन अपने मरीज को लेकर निजी अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं और निजी अस्पताल मना कर देते हैं तो परिजन भी थक हार कर मरीज को जेएलएन अस्पताल के बाहर पटक देते हैं। जो लोग कोरोना काल में सेवा के नाम पर अखबारों में बड़े बड़े फोटो छपवा रहे हैं उन्हें यदि सेवा ही करनी है तो अजमेर के जेएलएन अस्पताल के बाहर खड़े हो जाएं और फिर सांसों के लिए संघर्ष करते लोगों की मदद करें। पैसे के दम पर भीलवाड़ा में बैठे बैठे मानव सेवा नहीं हो सकती। यदि कोई समाजसेवी एक मरीज की जान बचाने में भी सफल होता है तो बहुत बड़ी मानव सेवा होगी। आज जेएलएन अस्पताल में तकिये गद्दे नहीं चाहिए, अस्पताल में सेवाभावी कार्यकर्ता चाहिए जो स्वास्थ्य कर्मियों के साथ मिलकर मरीजों की सेवा कर सकें। अजमेर के जेएलएन अस्पताल की यह दुर्दशा तब है जब प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा अजमेर के हैं। खुद रघु शर्मा ने माना है कि ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति बद से बदतर है। शायद ही कोई गांव होगा, जहां दो चार लोग रोज नहीं मर रहे हों। जवाहर फाउंडेशन जैसे संगठनों का गांवों में भी अपनी सक्रियता बढ़ानी चाहिए।S.P.MITTAL BLOGGER (13-05-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9602016852To Contact- 9829071511